‘राजनैतिक अछूत’ बनता सवर्ण समाज
बीते दिनों एससी-एसटी एक्ट में संशोधन और जातिगत आरक्षण के खिलाफ सवर्णो द्वारा बुलाया गया भारत बंद, सवर्णो के साथ हो रहे भेदभाव का ताज़ा उदाहरण है। नेताओं द्वारा हो रहे वोट बैंक की राजनीति के शिकार हुए सवर्णो के गुस्से की बानगी इस बंद में व्यापक रूप से दिखी। लेकिन कोई नेता या राजनीतिक दल सवर्णो के हक में बोलने की हिम्मत नही कर पाया। आज सवर्णो की तकलीफ समझने वाला कोई नही। दलितों का विकास हो ये सही है लेकिन क्या समाज के एक तबके के साथ ज्यादती हो ये सही है? कहते हैं गरीबी जाती देख कर नही आती फिर सवर्णो और दलितों में भेदभाव क्यों? क्या सवर्ण होना पाप है? आज गरीब को गरीब के नजर से नही सवर्ण और दलित के नज़र से देखा जाता है। सवर्णो में एक बड़ा तबका है जो गरीब हैं, जिनके पास ना जमीन है ना कोई आय का श्रोत। लेकिन एक नेता भी सवर्ण के हक में बोलते नजर नही आता। सिर्फ इसलिए क्योंकि नेताओं को इसमे वोट बैंक नही दिखता। आरक्षण को समाज में समानता के लिए लाया गया था लेकिन इस जातिगत आरक्षण का क्या मतलब जब सही लाभार्थी तक लाभ ही ना पहुंचे। जिन्हें जरूरत नही वो आरक्षण का लाभ लेते हैं और जिस गरीब को जरूरत है चाहे वो सवर्ण हो या दलित उसे आरक्षण का लाभ नही मिलता। आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण को भी आरक्षण तथा अन्य सरकारी सुविधाएं दी जानी चाहिए। राजनैतिक रूप से अछूत बना देने के कारण सवर्णो के दर्द की आवाज़ अब आंदोलन का रूप ले रही है। इसलिए राजनीतिक दलों को वोट बैंक की राजनीति छोड़कर सभी गरीबो के हित की बात करनी चाहिए ताकि कोई भी वर्ग खुद को अछूत ना महसूस करे और समाज में बिखराव की स्थिति ना बने।
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