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32 रुपये की अमीरी

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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2G-scam-cartoon-indiaकल यूं ही इंटरनेट बाबा की शरण में गए थे कि 32 रुपए की अर्थशास्त्र समझने का फार्मुला समझ आ गया. दरअसल हुआ यह कि मोंटी सिंह और उनकी योजना आयोग ने सरकारी कैंटीन के भाव से दाम तय कर दिए. और जब ऐसा किया गया तब तो यह होना ही था. 32 रुपए में दो क्या आप चाहें तो सरकारी कैंटीन में 3 बार का खाना खा सकते हैं और वह भी मजेदार और स्वादिष्ठ खाना. चलिए आप भी वह शास्त्र पढ़िए जिसे पढ़ मेरे नैन खुले हैं.


(लेखक का नाम तो पता नहीं पर यह ब्लॉग नवभारत टाइम्स के लिया हुआ है. )


20 cart 1पत्नी ने 32 रुपये पकड़ाए और कहा कि दोनों टाइम का खाना-पीना करके ही घर में दाखिल होना। मैंने आपत्ति की और बताया कि दिल्ली में सबसे सस्ता बर्गर 28 रुपये का है। पिज्जा की तो बात ही नहीं कर रहा हूं, वह तो सौ रुपये से शुरू होता है, वह तो 32 रुपये की अमीरी रेखा से बहुत-बहुत ऊपर है। दिल्ली की परांठे वाली गली में अगर सिर्फ 32 रुपये लेकर घुसे, तो दो टाइम तो छोड़िए एक टाइम के परांठे भी ना मिलेंगे। मतलब यह कि 32 रुपये में एक टाइम का नाश्ता सा हो जाए, वह बहुत है। दोनों टाइम का खाना कैसे होगा!

इस पर और डांट पड़ी – तुम ज्यादा चपड़चूं कर रहे हो। तुम ज्यादा पढ़े-लिखे हो या प्लानिंग कमिशन वाले लोग ज्यादा पढ़े-लिखे हैं! इत्ते-इत्ते इकोनॉमिस्ट मिलकर सरकार चला रहे हैं। उन्हें ज्यादा पता है कि तुम्हें ज्यादा पता है! वो लोग कह रहे हैं कि 32 रुपये रोज खर्च करके तो बंदा अमीर सा हो जाता है।

मैंने समझाने की कोशिश की, देखो! प्लानिंग कमिशन जैसी जगह की कैंटीनों में सरकारी सस्ती रेट पर खाना मिलता है। वहां तो 32 रुपये में आदमी तीन दिन का खाना खा ले। प्लानिंग कमिशन वाले अपनी कैंटीन के रेट से ही तो तय कर देते हैं, 32 रुपये की अमीरी रेखा… वो तो अच्छा है कि उन लोगों ने अपने ससुराल जाकर गरीबी रेखा तय नहीं की। ससुराल वाले शरीफ दामादों को खाना भी खिलाते हैं, फिर कुछ देते भी हैं। इसी बेसिस पर प्लानिंग कमिशन वाले कहने लग जाते हैं कि एक बार के खाने में जो 101 की कमाई करता है, वह गरीब कैसे! वह तो अमीरी रेखा के बहुत ऊपर है। मतलब जी… तुम रखो 32 रुपये और मुझे एक ही टाइम का खाना दे दिया करो।

Clipboard01इस पर पत्नी ने बताया कि छज्जूपुर, शामपुर की टंकी के पास एक दुकान है, वहां पे 32 रुपये में तीन टाइम का खाना मिलता है। मैंने पूछा, छज्जूपुर कहां है, यह तो बता दो। उसने बताया कि एक एक्सपर्ट एक टीवी चैनल पर बता रहा था, उसने भी सिर्फ इतना ही बताया। पर ये है कहां, यह नहीं बताया।

इधर, टीवी एक्सपर्ट भी प्लानिंग कमिशन के एक्सपर्टों जैसे हो रहे हैं। वो बता देते हैं कि इत्ते रुपये जेब में हों, तो गरीबी कट जाती है। पर कैसे कट जाती है, यह नहीं बताते। ये बताने का काम दूसरे एक्सपर्टों का है, तो वो वाले दूसरे एक्सपर्ट कहां हैं? जी… वो लोंबाबर्ग गए हैं, गरीबी की स्टडी करने। पर ये लोंबाबर्ग कहां है? जी यह नहीं बता गए। प्लानिंग कमीशन के एक्सपर्ट कभी पूरी बात नहीं बताते। 32 रुपये में अमीर हो गए, इत्ताभर बता कर जाते हैं। पर इस अमीरी को कहां-कहां यूज किया जा सकता है, यह खुलकर नहीं बताते।

रास्ते में एक भिखारी को एक रुपये का सिक्का देने की कोशिश की। वह बोला नहीं, अभी हम अमीर हो गए हैं, 32 रुपये हो गए हैं। एक बार की चाय का इंतजाम हो गया, डिनर का इंतजाम बाद में करेंगे। साउथ दिल्ली के भिखारी वैसे भी सिक्कों वाली भीख को आमतौर पर पसंद नहीं करते। मैंने उसे बताया कि मेरी बीबी ने दो टाइम के खाने के लिए 32 रुपये दिए हैं। भिखारी हंसने लगा। बोला, मेरे साथ यहीं बैठ जाओ। जब मैं रेस्ट करने जाया करूं, तो तुम मांग लिया करना, इंतजाम हो जाएगा। मुझे उसकी बात में दम नजर आ रहा है। प्लानिंग कमिशन के सहारे रहे, तो दो टाइम का इंतजाम नहीं हो जाएगा। साउथ दिल्ली के भिखारियों के सहारे तो तीन टाइम का हो जाएगा… नहीं क्या!


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