- 247 Posts
- 1192 Comments
‘‘एक नवाब साहब ने अपनी नवाबी का रोब जमाया,
जैसे ही ट्रेन में ‘टीटी’ टिकट चेक करने आया,
उसे एक की बजाय दो-दो टिकट थमाया।
‘टीटी‘ ने कहा, आप अकेले, दो-दो टिकट का क्या करेंगे?
नवाब साहब बोले, हम कोई बेवकूफ हैं जो एक टिकट खो जाए, तो 500 रूपए जुर्माना भरेंगे।
‘टीटी’ ने कहा, अगर दोनों टिकट खो जाएँ, तो आप क्या कीजिएगा?
जेब में हाथ डालते हुए नवाब साहब बोले,
ये रहा एक महीने का मुफ्त रेल पास,
आप बस इस पर साइन कर दीजिएगा।”
यह तो हमारे नवाबों की नवाबी का एक नमूना. भारत में ठेठ नवाबों की बेशक कमी है लेकिन तथाकथित नवाबों से यह देश भरा हुआ है. भारत इतना विशाल देश है, करोड़ों की जनसंख्या है, अगर नवाबों की खोज करने की बात आए, तो भारत में एक ढूँढने चलेंगे तो सौ मिल जाऐंगे! लखनऊ का शहर तो झूठा दिखावा करने वाले नवाबों, और नवाब के पुत्रों यानी ‘नवाबज़ादों की भूमि’ माना गया है।
नवाबी शान – अब नवाबी तो वही कर सकता है, जिसके पास पूर्वजों की जोड़ी गाढ़ी कमाई हो, बस देख-रेख करनी हो। पता चला बढ़ियाँ चिकन का कुर्ता-पैजामा पहन कर, बालों में चमेली का तेल लगाए चल दिए। जब पैसे हैं, तो दिखावे की कोई कमी ही नहीं, रंग-ढंग से ही रहीसी झलकती है। रिक्शा और साइकिल की तो बात ही मत करो। अगर बस चले, तो एक कमरे से दूसरे कमरे भी कार से जाएँ। नवाबी कोई कला नहीं है, न ही कोई गुण है, जो बचपन में उपजता है। एक तरह से देखा जाए तो नवाबी गलत भी नहीं है। पैसा हमारा है, हम चाहे जैसे उपयोग करें। हमारे पास अपने लिए पैसा भरा पड़ा है, पर गरीबों को देने के लिए एक फूटी-कौड़ी भी नहीं है। पाऐं तो नौकरों से तेल मालिश तक करवा डालें। नवाब तो ऐसे भी हैं, जो एक गिलास पानी तक हाथ से उठाकर नहीं पीते।
नवाबी कैसी- कैसी- एक नवाब साहब ऐसे थे, जो स्वयं अपनी गाड़ी का दरवाज़ा तक नहीं खोलते थे। पता चले जब वे जाते थे तो नौकर दरवाज़ा खोलता था, और जब लौटते तब भी खोलता था। एक नवाब साहब तो जूते के फीते भी नौकर से खुलवाते-बंधवाते थे। अगर किसी दिन ढूँढा जाए, तो शायद कोई ऐसा नवाब भी मिल जाएगा, जो नहाते समय साबुन भी नौकर से लगवाता होगा! एक भाई साहब के यहां मैने देखा टेबल पर 15-20 बोतलें रखी थीं। कुछ पानी से पूर्णतः भरी थीं, कुछ खाली थीं। मैनें पूछ ही लिया यह कौन सी नई कला है? तब पता चला की नवाबी इस कदर बढ चुकी है की लोग फ्रिज में बोतल लगाने के लिए, स्वयं पानी भी नहीं भरते हैं। एक नौकर आकर 30-40 बोतलें भर जाता है। फिर क्या, एक पिया, एक लगाया।
नवाबी, कुछ तो गलत है-हम डाक्टर को फीस देने में तो कोई कटौती नहीं करते हैं, विद्यालय के शुल्क का चेक तुरन्त काटकर दे आते हैं। वहाँ पर कोई भी छूट नहीं लेते, जहाँ बोलना चाहिए वहाँ हम नहीं बोल पाते क्योंकि ये हमसे भी बड़े नवाब हैं। पर एक गरीब जो सब्ज़ी बेंचता है, अथवा फल बेंचता है, यहाँ तक की मजदूर, हम इनसे बहस कर लेते हैं। 20 रूपए का समान 10 रूपए में माँगते हैं। रिक्शेवाले को कम पैसे देते हैं। हम एक गरीब का शोषण कर रहे हंै। यहाँ हम गलत हैं।
Source: Internet
Read Comments