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उज्जैन नगरी में महासेन नाम का राजा राज्य करता था। उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जिसके गुणाकर नाम का बेटा था।
गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुए में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया।
वह दूसरे नगर में पहुंचा। वहां उसे एक योगी मिला। उसे हैरान देखकर उसने कारण पूछा तो उसने सब बता दिया।
योगी ने कहा, ‘लो, पहले कुछ खा लो।’
गुणाकर ने जवाब दिया, ‘मैं ब्राह्मण का बेटा हूं। आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूं?’
इतना सुनकर योगी ने सिद्धि को याद किया। वह आई। योगी ने उससे आवभगत करने को कहा। सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकर उसमें रात को अच्छी तरह से रहा। सबेरे उठते ही उसने देखा कि महल आदि कुछ भी नहीं है।
उसने योगी से कहा, ‘महाराज, उस स्त्री के बिना अब मैं नहीं रह सकता।’
योगी ने कहा, ‘वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने से मिलेगी और वह विद्या जल के अंदर खड़े होकर मंत्र जपने से मिलेगी। लेकिन जब वह लड़की तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या प्राप्त करके क्या करोगे?’
गुणाकर ने कहा, ‘नहीं, मैं स्वयं वैसा करूंगा।’
योगी बोला, ‘कहीं ऐसा न हो कि तुम विद्या प्राप्त न कर पाओ और मेरी सिद्धि भी नष्ट हो जाए!’
पर गुणाकर न माना। योगी ने उसे नदी के किनारे ले जाकर मंत्र बता दिए और कहा कि जब तू जप करते हुए माया से मोहित हो जाओगे तो मैं तुम पर अपनी विद्या का प्रयोग करूंगा।
उस समय तुम अग्नि में प्रवेश कर जाना।’
गुणाकर जप करने लगा। जब वह माया से एकदम मोहित हो गया तो देखता क्या है कि वह किसी ब्राह्मण के बेटे के रूप में पैदा हुआ है। उसका ब्याह हो गया, उसके बाल-बच्चे भी हो गए। वह अपने जन्म की बात भूल गया। तभी योगी ने अपनी विद्या का प्रयोग किया।
इस तरह सोचता हुआ वह आग में घुसा तो आग ठंडी हो गई और माया भी शांत हो गई। गुणाकर चकित होकर योगी के पास आया और उसे सारा हाल बता दिया।
योगी ने कहा, ‘मालूम होता है कि तुम्हारे करने में कोई कसर रह गई।’
राजा का उत्तर सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका।
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