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भ्रष्ट कथा – रजिया फंस गयी एमसीडी में

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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आज देश में भ्रष्टाचार शिष्टाचार का एक हिस्सा बन चुका है. लोगों को रिश्वत देने और लेने में शर्म नहीं बलि गर्व होता है कि उन्होंने दूसरे से अधिक ले लिया और दूसरे से कम दिया. मान लिजिए आज के दौर में अगर कहीं हमारे पूर्वज होते तो लाल किला, ताज महल जैसे स्मारक शायद ही बनते. दिल्ली में एमसीडी का कहर इतना अधिक है कि पूछो ना. अगर इनका बस चले तो आप अपनी जमीन से एक गज भी ज्यादा छज्जा नहीं निकाल सकते और अगर इनका पेट भरा हो तो भाई आप छज्जा क्या पूरा घर ही बाहर निकाल लो.


चलिए आज आपको महसूस कराते है उस समय के दृश्य से जब एमसीडी और रजिया सुल्तान आमने सामने आएं तब क्या-क्या हो सकता है.


50d1d_3monkey.jpg.crop_displayरजिया फंस गयी एमसीडी में
एमसीडी यानी म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन दिल्ली बहुत काबिल लोगों का डिपार्टमेंट था। बड़े-बड़े इंटेलिजेंट लोग एमसीडी के अफसरों के सामने आने में कतराते थे। यह एमसीडी की ही कृपा थी कि कोई अपने घर की छत पर लाल किले जैसी इमारत बनवा सकता था और किसी को अपनी बालकनी में टॉयलेट बनाने तक की परमिशन ना मिला करती थी।

जैसा कि इतिहासकार बताते हैं कि सन् 1236 के आसपास दिल्ली में एक बहुत काबिल किस्म की रानी रजिया सुल्तान के नाम से हुई थीं। रजिया सुल्तान के बुजुर्गों ने कुतुबमीनार नामक इमारत को किस्तों में बनवाया था। मतलब एक ही बार में पूरी इमारत ना बन पायी थी, कई बार धीमे-धीमे करके कुतुबमीनार बनी। इससे पता लगता है कि ईएमआई की प्रॉब्लम उस जमाने में भी थी। महंगाई बढ़ने के साथ तमाम बैंक लोन की ईएमआई बढ़ा दिया करते थे। सो कइयों के लिए यह पॉसिबल नहीं हो पाता था कि वो अपनी बिल्डिंग पूरी करवा लें। कुतुबमीनार के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।

खैर, जैसे तैसे कुतुबमीनार बन गई।


एक दिन रजिया सुल्तान इसके नीचे टहल रही थीं कि कुछ अफसर टाइप लोग आये और बोले, हे सुल्ताना इस बिल्डिंग को हमने बीस साल पहले देखा था तो सिर्फ दो मंजिला थी। अब यह पता नहीं कितने मंजिला हो गयी है। अपने रिकॉर्ड चेक करके हमें पता लगा कि हमें बिना घूस खिलाये आपने यह अवैध निर्माण करा लिया है।


इसे वैध कराने के लिए आप हमें 40,0000 करोड़ की स्वर्ण मुद्राएं दें, वरना हमारी डिमोलिशन टीम (तोड़-फोड़ वाली टीम) आयेगी और ऊपर की मंजिलों को तोड़कर चली जायेगी।

यह सुनते ही रजिया परेशान हो गयी। बुजुर्ग तो मीनार बना गये थे, अब उसे मेंटेन कैसे किया जाये, यह सवाल रजिया को परेशान करने लगा। फिर एक दिन एमसीडी के अफसर रजिया से आकर बोले कि अगर रिश्वत का इंतजाम नहीं हो पा रहा हो तो आप हमें कुतुबमीनार की ऊपर की मंजिलें दे दो, हम वहां शापिंग माल खोल लेंगे।

रजिया यह सोचकर परेशान हो गयी कि उसके बुजुर्गों की इमारत में बनियान और करेले बिका करेंगे।

कोई हल निकलता ना देख रजिया डर कर दिल्ली छोड़कर भाग गयी और जहां भागी वहां गुंडों ने उसे मार डाला।

इस मसले पर कहावत बनी, रजिया फंस गयी एमसीडी में। पर बाद में इसे बदलकर कर दिया गया रजिया फंस गयी गुंडों में। इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि एमसीडी के अफसरों से पंगे नहीं लेने चाहिए।


[नोट: यह मात्र व्यंग्य है, कृप्या इसी किसी अन्य भाव में ना लें. एमसीडी बेशक दिल्ली के सबसे भ्रष्ट महकमों में से एक हो पर राज्य में सफाई करने की दिशा में इस संस्थान द्वारा किए गए कार्य नकारे नहीं जा सकते. इसी तरह भारत में नारी शक्ति की परिचायक रजिया सुल्तान भी हमारे लिए समान आदरणीय हैं. ] 😆

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