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रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

आप सभी लोगों ने यूं तो मेरी कई रचनाओं को बहुत पढ़ा है लेकिन जिस तरह से आप पाठकों ने रहीम के दोहे पढ़े उसे द्केह में आश्चर्यचकित हूं. मेरे औसत ब्लॉग जो 100-200 रीडिंग करने में मर जाते हैं वहीं अगर रहीम जी का नाम आए तो यह आकंडा जादुई बन जाता है. इस बात को समझते हुए कि आज की जीवनशैली में भी कई लोग रहीम और कबीर के दोहों को पढ़ना पसंद करते हैं. मैं आप लोगों के लिए कुछ बेहतरीन दोहे अर्थ सहित लेकर आया हूं.


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

  1. अनुचित वचन न मानिए, जदपि गुराइस गाढ़ि।

है ‘रहीम’ रघुनाथ तें, सुजस भरत को बाढ़ि।।

अर्थ : ‘‘कितना भी बड़ा आदमी क्यों न हों उसकी गलत बात नहीं मानिए भले ही वह कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हो। भगवान श्री राम ने अपने पिता की बात मानते हुए वनगमन किया पर फिर भी उनसे अधिक यश उस भरत को प्राप्त हुआ जिन्होंने मां की आज्ञा ठुकराकर राज्य त्याग दिया।’’


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

  1. ‘‘अब ‘रहीम’ मुश्किल बढ़ी, गाढ़े दोऊ काम।

सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम।।

अर्थ: ‘‘दुनियां में दो महत्वपूर्ण काम एकसाथ करना अत्यंत कठिन है। सच का साथ लो तो जग नहीं मिलता और झूठ बोलो तो परमात्मा से साक्षात्कार नहीं हो पाता।


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

  1. जसी परै सो सहि रहै, कहि रहीम यह देह
    धरती पर ही परत है, शीत घाम और मेह

    कविवर रहीम कहते हैं कि इस मानव काया पर किसी परिस्थिति आती है वैसा ही वह सहन भी करती है। इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा ऋतु आती है और वह सहन करती है।

रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

  1. जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह रहीम जग होय
    मंड़ए तर की गाँठ में, गाँठ गाँठ रस होय

    कविवर रहीम कहते हैं कि यह संसार खोजकर देख लिया है, जहाँ परस्पर ईर्ष्या आदि की गाँठ है, वहाँ आनंद नहीं है. महुए के पेड़ की प्रत्येक गाँठ में रस ही रस होता है क्योंकि वे परस्पर जुडी होतीं हैं.


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe
6. जलहिं मिले रहीम ज्यों, कियो आपु सम छीर
अंगवहि आपुहि आप त्यों, सकल आंच की भीर

कविवर रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार जल दूध में मिलकर दूध बन जाता है, उसी प्रकार जीव का शरीर अग्नि में मिलकर अग्नि हो जाता है.


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe

7. फरजी सह न ह्म सकै गति टेढ़ी तासीर
रहिमन सीधे चालसौं, प्यादा होत वजीर

कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम में कभी भी टेढ़ी चाल नहीं चली जाती। जिस तरह शतरंज के खेल में पैदल सीधी चलकर वजीर बन जाता है वैसे ही अगर किसी व्यक्ति से सीधा और सरल व्यवहार किया जाये तो उसका दिल जीता जा सकता है।


रहीम के दोहे अर्थ सहित: rahim ke dohe
8. प्रेम पंथ ऐसी कठिन, सब कोउ निबहत नाहिं
रहिमन मैन-तुरगि बढि, चलियो पावक माहिं

कविवर रहीम कहते हैं कि प्रेम का मार्ग ऐसा दुर्गम हे कि सब लोग इस पर नहीं चल सकते। इसमें वासना के घोड़े पर सवाल होकर आग के बीच से गुजरना होता है।

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