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जमाना आजकल…….कविता

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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नज़र का नज़रिया कुछ गिरा इस कदर
गिरा हुआ हर आदमी अब बुलंद नज़र आता हैं !

मान भगवंत बैठे हैं नशेबाजों को लोग यहाँ
लड़खड़ाता हुआ जो रोज रात घर जाता हैं !

हो खुदा मौजूद क्यों भला मंदिर मस्जिद में
जब दरिंदो के पाँवो में आदमी सर झुकाता हैं !

पेट पलता नही मेहनती उन किसानो का
जो होकर बंधक ज़मीदार के जहर ख़ाता हैं !

शोहरतें हासिल तो उन कलाकारों को हैं
जिस्मफरोशी का आजकल जिनको हुनर आता हैं !

हैं नसीब सिंहासन यहाँ बेशर्म बेशुमारों को
जिंदा रहते जिनका जमीर मर जाता हैं !

देश की राजनीति भी लूटते खजाने सी हैं
फट गया चौला आख़िर सेर में सवाया किधर आता हैं !

जी रहा हैं जिंदगी आदमी नर्क सी यहाँ
हूँ बेख़बर बाद मरने के आदमी किधर जाता हैं !

छुप रही अंधेरे में भूत की परछाईयाँ
आदमी ही आदमी से यहाँ जो डर जाता हैं !

मर्ज कोई हो असर दवा का होता नही
दारू का मगर जल्दी कितना असर आता हैं !

रिश्ता होता नही अब गाँव के गोपालों का
गाँव की लाडली को भी ससुराल शहर भाता हैं !

दिल ही जानता नही अब दिल की हसरते
दौलत की चाह में जिस्म कही भी पसर जाता हैं !

रंग चढ़ता हैं देशभक्ति का महज चन्द मौको पर
अवसर जाते ही रंग मेहन्दी सा उतर जाता हैं !

गेंद सीमा पार करने वाले को रत्न भारत
महज चक्र अशोक उसको जो सीमा पर गुजर जाता हैं !

हौसला पस्त सा फिरता हैं हर नेक आदमी
झूठ का सामना आजकल सच कहाँ कर पाता हैं !

करते कर्म पुण्य के शुरू “जीत” जब तक
घड़ा पाप का तब तलक सबका भर जाता हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259

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