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वर्तमान माहौल पर लिखित ताज़ा कविता……

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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दो सौ कुत्ते झुंड में करने एक शेर का शिकार चले हैं !
पीछे भोँकती ममता माया, आगे इनके सरदार चले हैं !

छह दशकों में बदल ना पाये बदहाली के हालात
वो बदलने अब देश की अच्छी सरकार चले हैं !

लुटेरों की तरह लूटा सोने की भोली चिड़ियाँ को
वो बनने अब जनता के बीच साहूकार चले हैं !

वो चन्द लोग जो बेईमान बता रहे हैं मोदी को
कुकर्म की काली कमाई से जिनके परिवार चले हैं !

जब सत्ता में थे तब ग़रीबों का गाँव तक नही देखा
आज वो नंगे पाँव पैदल ग़रीबों के घरबार चले हैं !

पिछाड़ दिया भारत को विश्व की कतार में जिन्होने
देखने दरिंदे अब वो बेंकों की कतार चले हैं !

खुद से खुद जो लड़ नही पाया “रामकिशन ग्रेवाल”
ठहराने बेशर्म उसको शहादत का हकदार चले हैं !

कयामत आतंक की आती रोज जिनके राज में
वो करने कायर सेनानी का अंतिम संस्कार चले हैं !

कन्हैया भाई लगता हैं जो भारत माँ का बलात्कारी हैं
लाज शर्म अब ये मतलबी सारी उतार चले हैं !

मूर्ख जो आलू भी कारखाने में बनाते फिरते हैं
समझने राहुल खुद को वो अति होशियार चले हैं !

हज़ारों करोड़ का चुना जो लगाते हर चुनाव में
बदलवाने अब वो महाशय अपने चार हज़ार चले हैं !

आरक्षण की आग में शहर झुलसा दिए जिन्होने
संसद में अब जनता की वो रखने पुकार चले हैं !

किसानों को ग़रीबी के दलदल से निकाल नही पाएँ
अब वो करने किसानों पर झूठा उपकार चले हैं !

सिंहासन सोने के बैठा करते थे जो सत्ताधारी
अब वो बेजमीर हो खटिया पर सवार चले हैं !

बाते जो कोरी कर रहे समाज सुधार की
उनके ही आदेशों पर शराब गोमांस के व्यापार चले हैं !

वोटो की गरज में दंगे दादरी जैसे करवा दिए
बनने अब ढोंगी वही धर्म के ठेकेदार चले हैं !

रोना अब वो रोते हैं किसानों की ज़मीनों का
जीजा जिनके रॉबर्ट हो बड़े ज़मींदार चले हैं !

बुरहान की मौत का मातम मनाया इन्होने
अब तो निर्लज्ज लोग ये कर हदें पार चले हैं !

डुबों दिया मुल्क घोटाले के गहरे समंदर में
बनने अब दिखावटी लोग वही पतवार चले हैं !

कर्ज़ विश्व का लेकर अब तक देश चलाया
बनने अब वही सरकार के सलाहकार चले हैं !

शहीदों से अब हमदर्दी उनको शोभा नही देती
जो कश्मीर घाटी को मौत के घाट उतार चले हैं !

ग़रीब को अपाहिज बनाया पर कभी पाला नही
शरण में इनकी बस आस्तीन के साँप और गद्दार पले हैं !

नकाब अब उठा हैं चोरों और बेईमानों का “जीत”
खुश हूँ बहुत कि पहली दफ़ा लोग ईमानदार चले हैं !

जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई

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