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दो सौ कुत्ते झुंड में करने एक शेर का शिकार चले हैं !
पीछे भोँकती ममता माया, आगे इनके सरदार चले हैं !
छह दशकों में बदल ना पाये बदहाली के हालात
वो बदलने अब देश की अच्छी सरकार चले हैं !
लुटेरों की तरह लूटा सोने की भोली चिड़ियाँ को
वो बनने अब जनता के बीच साहूकार चले हैं !
वो चन्द लोग जो बेईमान बता रहे हैं मोदी को
कुकर्म की काली कमाई से जिनके परिवार चले हैं !
जब सत्ता में थे तब ग़रीबों का गाँव तक नही देखा
आज वो नंगे पाँव पैदल ग़रीबों के घरबार चले हैं !
पिछाड़ दिया भारत को विश्व की कतार में जिन्होने
देखने दरिंदे अब वो बेंकों की कतार चले हैं !
खुद से खुद जो लड़ नही पाया “रामकिशन ग्रेवाल”
ठहराने बेशर्म उसको शहादत का हकदार चले हैं !
कयामत आतंक की आती रोज जिनके राज में
वो करने कायर सेनानी का अंतिम संस्कार चले हैं !
कन्हैया भाई लगता हैं जो भारत माँ का बलात्कारी हैं
लाज शर्म अब ये मतलबी सारी उतार चले हैं !
मूर्ख जो आलू भी कारखाने में बनाते फिरते हैं
समझने राहुल खुद को वो अति होशियार चले हैं !
हज़ारों करोड़ का चुना जो लगाते हर चुनाव में
बदलवाने अब वो महाशय अपने चार हज़ार चले हैं !
आरक्षण की आग में शहर झुलसा दिए जिन्होने
संसद में अब जनता की वो रखने पुकार चले हैं !
किसानों को ग़रीबी के दलदल से निकाल नही पाएँ
अब वो करने किसानों पर झूठा उपकार चले हैं !
सिंहासन सोने के बैठा करते थे जो सत्ताधारी
अब वो बेजमीर हो खटिया पर सवार चले हैं !
बाते जो कोरी कर रहे समाज सुधार की
उनके ही आदेशों पर शराब गोमांस के व्यापार चले हैं !
वोटो की गरज में दंगे दादरी जैसे करवा दिए
बनने अब ढोंगी वही धर्म के ठेकेदार चले हैं !
रोना अब वो रोते हैं किसानों की ज़मीनों का
जीजा जिनके रॉबर्ट हो बड़े ज़मींदार चले हैं !
बुरहान की मौत का मातम मनाया इन्होने
अब तो निर्लज्ज लोग ये कर हदें पार चले हैं !
डुबों दिया मुल्क घोटाले के गहरे समंदर में
बनने अब दिखावटी लोग वही पतवार चले हैं !
कर्ज़ विश्व का लेकर अब तक देश चलाया
बनने अब वही सरकार के सलाहकार चले हैं !
शहीदों से अब हमदर्दी उनको शोभा नही देती
जो कश्मीर घाटी को मौत के घाट उतार चले हैं !
ग़रीब को अपाहिज बनाया पर कभी पाला नही
शरण में इनकी बस आस्तीन के साँप और गद्दार पले हैं !
नकाब अब उठा हैं चोरों और बेईमानों का “जीत”
खुश हूँ बहुत कि पहली दफ़ा लोग ईमानदार चले हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई
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