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अभी महज एक अंकुर हैं कोख के बंद पिटारे में
जो बस एक अदृश्य सुख की हल्की सी अनुभूति हैं !
हालाँकि सब कुछ अनिश्चित हैं अभी
एक निराकार नन्ही सी आहट हैं बस
जिसे सिर्फ़ महसूस कर सकती हैं एक भावी माँ !
हाँ भगवान ने आत्मा ज़रूर सौंप दी हैं उसे
अब दे रहा हैं आकार उस आत्मा को धीरे धीरे
पर उसे ज़रूरत नही बाहरी हवा पानी की
बस भीतर का राज भीतर का भगवान ही जानता है
उस अदृश्य सुख का लालन पालन
अब उस अदृश्य शक्ति के हवाले हैं
रहता हैं हरदम उपरवाला उसके इर्द गिर्द ही !
आख़िर वही निर्णय करेगा लड़का लड़की का
देगा वही आकार जो उसको अच्छा लगेगा
उसे पता हैं क्या अच्छा दिखता हैं
और क्या सच में अच्छा होता हैं !
आख़िर वो सृष्टि का रचीयता हैं !
हम सिर्फ़ लगा सकते हैं अटकलबाज़ियाँ
पेट का आकार देख कर
बस कुछ हरकते देखकर
बस कुछ आहटें देखकर
हमे चाहिए बस अपनी आशा के अनुरूप
हम कल्पना में भी सिर्फ़ वही देखते हैं
हम बस वही चाहते हैं
जो समाज को अच्छा लगता हैं
जो हमारी परंपरा को शोभा देता हैं
अगर लड़का हुआ तो जमकर जश्न होगा
भाँति भाँति की मिठाइयाँ बँटेगी
आदान प्रदान होगा बधाइयों का
घर में जमघट होगा रिश्तेदारों का,
दोस्तो का और मेहमानों का
खूब उपहार भी दिए जाएँगे
आख़िर पागल जो हैं हम परम्परा के नाम पर !
वही दूसरी और अगर लड़की हुई तो
ना मिठाइयाँ, ना बधाइयाँ
ना जमघट और ना ही जश्न कोई
सिर्फ़ सन्नाटा, शोक और बेवजह का मातम
शायद किसी का जन्म नही कोई मृत्यु हुई हो !
अच्छा होता अगर हम खुद बता देते उस खुदा को
अपनी इस परंपरा के बारे में
उसको पता होता तो नही होने देता शायद वो ये अनहोनी
उसको क्या पता यहाँ इतना फ़र्क होता हैं लड़का और लड़की में !
समाज की सोच भी बहुत बेरहम हैं !
एक मान्यता जो बस मन का वहम हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
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