शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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तिरछी झुकी नज़रों से छिपकर वो दीदार करते रहे !
मन ही मन बिना बताएँ हमसे वो प्यार करते रहे !!
जब कभी पूछते उनसे हम क़ि मोहब्बत है या नही?
मन में था इकरार मगर मुँह पर इनकार करते रहे !!
इरादा कुछ इस तरह हमारा भी अटल था “जीत”
सुनकर इनकार भी चाहत पर अपनी एतबार करते रहे !!
अपनी दोस्ती का हवाला देकर उनको मिलने को कहते
मगर ना मिलने के वो भी बहाने हज़ार करते रहे !!
किस्मत से जो एक रोज उनको भी मोहब्बत हो गयी हमसे
मिलने को वो तैयार थी मगर हुआ यूँ क़ि
वो वहाँ इंतजार करती रही और हम यहाँ इंतजार करते रहे !!
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259
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