शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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वो टूट चुका हैं फिर भी उदास नही हैं !
आख़िर क्या उसमे हैं जो मेरे पास नही हैं !
मैं जीता हूँ छिपकर गम के साये में
आख़िर क्यों हँसी चेहरे पर मेरे आज नही हैं !
रोता वो भी हैं कभी कभी किसी बात पर
उसके आँसुओं में ज़रा भी मगर गम का आभास नही हैं !
मैं कोसता हूँ तकदीर को हर नाकामयाबी पर
मगर उसको तकदीर के फ़ैसले पर कोई एतराज नही हैं !
मैं डरता हूँ क़ि कही नाकाम ना हो जाऊं
जाने क्यों अपने ही इरादों पर मुझे विश्वास नही हैं
सोचा बहुत एक रात मैने तो जाना फ़र्क ये “जीत”
उसके सर आकाश हैं मगर मेरे सर आकाश नही हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259
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