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घोटालें…..

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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लालू खा लिए चारा अब बड़का बबुआ मिट्टी खाएँ
गाये मर रही भूखी अब बेचारे ग्वाले क्या करें?
आज़म बेच दिए कौड़ी में ज़मीन करोड़ो की
माँ वसुंधरा को अब और लुटेरों के हवाले क्या करे?
गायत्री कुकर्म करके खुद कालिख पोत लिए
इज़्ज़त लूट रही पर क़ानून के रखवाले क्या करे?
आम आदमी सत्येंद्र कर रहे व्यापार हवाला का
करोड़ो लगाएँ ठिकाने अब आयकर वाले क्या करे?
केजरी जनधन को लूटा रहे बड़े बड़े वकीलों को
बेईमान बादशाह के वज़ीर अब दिल्लीवाले क्या करे?
जीजा रॉबर्ट जा रहे भरने पेशी अदालत की
अस्वस्थ अब सासू माँ, सत्ताहीन राहुल साले क्या करे?
मायावती माया बहुत हथिया ली चढ़ चढ़ हाथी
कुदरती कालों के जनता अब और मुँह काले क्या करे?
किस्से असंख्य हैं “जीत” बेशुमार घोटालों के
घर में छिपे हो चोर तो लगे तिजोरी के ताले क्या करे?
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”

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