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चूना और चुनाव…

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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जहाँ एक तरफ हादसें और तरह तरह की घटनाएँ, वही दूसरी तरफ चुनावी रैलिया, जुलूस और सभाएँ और इन दोनो के बीच शांति तलाशता मानव जीवन ! हर तरफ अशांति इस कदर बढ़ गयी हैं क़ि मानव की इन्द्रियाँ अपनी वैधता तिथि से पहले ही काम आ रही हैं ! कभी लोकसभा चुनाव तो कभी विधानसभा चुनाव, कभी दिल्ली का चुनाव तो कभी हरियाणा का चुनाव, कभी पंचायत के चुनाव तो कभी नगरपालिका के चुनाव, कभी कॉलेज के चुनाव तो कभी उपचुनाव, ये चुनाव चुनाव में इतना चूना लगा दिया जाता हैं क़ि आम आदमी के घर का चून (आटा) महँगा हो जाता हैं व इसी चुनाव चुनाव में चुन चुन कर ऐसे लोग चुन लिए जाते हैं जो सिवाय चूना लगाने के कुछ भी जानते और समझते नही हैं ! कही अखिलेश भैया साइकल चलाते हुए जनता से रूबरू होते दिखते हैं तो कही केजरीवाल भाई साहब झाड़ू फेरते नज़र आते हैं ! वही दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी वाले हाथ में कमल का फूल लिए कॉंग्रेस वालो के खाली हाथ की तरफ ऐसे देख रहे होते हैं जैसे हाथ हाथ में अभी हाथापाई पर उतर आएँगे ! कही मायावती का हाथी चल रहा होता हैं तो कही अंधेरे में लालू की लालटेन जल रही होती हैं ! जनता के अरमानों की खिचड़ी करने सबकी अपनी अपनी दाल गल रही होती हैं ! मीडीया के चमचे जगह जगह केमरा और माइक लिए घूमते रहते हैं इसलिए ये सब तरीके अपनाएँ जाते हैं ताकि उन्हे जनता देखे और उनका वोट बेंक मजबूत हो जाए ! ये चूना लगाने वाले चुनाव के चक्कर में हम अपने जीवन में कुछ भी अच्छे का चुनाव नही कर पाते जैसे अच्छी पढ़ाई का चुनाव, अच्छी संगति का चुनाव, अच्छे व्यापार या नौकरी का चुनाव, अच्छे जीवनसाथी का चुनाव क्योंकि चुनाव का नाम आते ही हम मात्र औपचारिकता पर आ जाते हैं क्योंकि हमे अपनी सूझ बुझ सही चुनाव में नही लगानी होती हैं हम वहाँ सूझ बुझ दिखाते हैं जहाँ सूझ बुझ दिखाने की ज़रूरत नही रहती जैसे हमे बालों की कटिंग करवानी हैं वहाँ हम चार सेलुन में से अपनी पूरी सूझ बुझ लगाकर वो सेलुन का चुनाव करेंगे जहाँ पर आधुनिक तरीके की कटिंग की जाती हैं भले ही चार पैसे ज़्यादा क्यूँ ना लगे क्यूकीं हमे आधुनिकता बहुत ज़्यादा भाती हैं अब ये नही पता क़ि कटने तो आख़िर बाल ही हैं चाहे किधर भी चले जाओ ! हमारे इस औपचारिक व आलसी मन को ये राजनेता बड़ी अच्छी तरह से भाँप लेते हैं और चुनावी समय में बड़ी सक्रियता के साथ ये लोग मेहनत करते हैं क्योंकि इनको अच्छे से पता हैं क़ि चन्द दिनों मेहनत करनी हैं बाकी तो अपने को मलाई ही खानी हैं घर बैठकर ! चुनावी माहौल में सब राजनेता मुख्यमंत्री के रास्ते मंत्री होते हुए प्रधानमंत्री बनने तक के सुंदर स्वपन देखने लग जाते हैं ! चुनावी नतीजे आने तक सबको अपने अपने मंत्री प्रधानमंत्री बनने की शंका रहती हैं ! वही दूसरी ओर जनता बुरे सपनो से रोज रात रूबरू होती रहती हैं जैसे लघु शंका नही करने की स्थिति में बुरे और डरावने स्वपन बच्चों को आते हैं अक्सर ! चुनावी नतीजे आने तक तो जनता को मात्र बुरे स्वपन ही आते हैं बाद में धीरे धीरे वो स्वपन हक़ीकत का रूप ले लेते हैं ! वही बेरोज़गारी, भुखमरी, ग़रीबी, बीमारी, भ्रष्टाचारी और गंदगी ! सॉफ सुथरा अगर कुछ दिखता हैं तो नेताजी का पायज़ामा और चौला दिखता हैं एकदम निरॅमा की सफेदी सा सफेद ! थोड़े दिनों पहले जो दाग चौले और पायज़ामें में लगे थे वो दाग अब वहाँ से गायब होकर नेताजी के चरित्र पर लग गये ! विज्ञापनों की दुनिया में आजकल सब अपना अपना विज्ञापन अच्छे तरीके से करते हैं ! अब चुनाव एक प्रतिस्पर्धा बन गया हैं और उसमे सब मेहनत करके तरह तरह के हथकंडे अपनाकर जीतना चाहते हैं ! इसी हार जीत के खेल में जनता महज दर्शक बनकर सिर्फ़ तालियाँ बजाती रह जाती हैं ! अब ज़रूरत हैं जनता को ताली बजाने वाले उन्ही हाथों से उन लोगो को बजाने की जिन्होने अपने महल खड़े कर लिए हैं ग़रीबों के झोंपड़े जलाकर, जिन्होने अपने घर भर लिए हैं असंख्य भूखे पेटों पर लात मारकर ! वरना ऐसे ही चुनाव होते रहेंगे और हम चूना लगाने वाले ऐसे ही लोगो को चुनते रहेंगे !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”

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