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देश कब शांति का सवेरा देखेगा?

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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हाथ में पत्थर वाले दिल भी अब पत्थर हो गये हैं,
हालात कश्मीर के बद से भी अब बदतर हो गये हैं।
हर दवा बेअसर आतंकी ख़टमलों के ख़ात्मे खातिर,
पैदा कश्मीर में घर-घर अफ़ज़ल व लश्कर हो गये हैं।
सेना के काफिले पर कभी पत्थर मारे जाते हैं,
कभी भोले शिवभक्त मौत के घाट उतारे जाते हैं।

kashmir

भारत की हार पर कहीं जश्न मनाया जाता है,
बुरहान की मौत पर कभी मातम मनाया जाता है।
पाकिस्तानी झंडा कभी सरेआम लहराया जाता है,
कभी जलाकर तिरंगा पैरों तले दबाया जाता है।
विधालय भवनों में अचानक आग लगा दी जाती है,
नन्हें बच्चों के हाथों भारी बंदूक थमा दी जाती है।

कभी सेना को बेवजह सरेआम सताया जाता है,
सेना पर बलात्कार का इल्ज़ाम लगाया जाता है।
कभी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं,
गली-गली अफ़ज़ल के खूब जयकारे लगाए जाते हैं।
हर पल ख़ौफ़ की सुकून की रातें चन्द आती हैं,
बहाया इतना खून क़ि मिट्टी से लहू की गंध आती है।
मां वैष्णो देवी की पवित्र धरा को गंदा करते हैं,
नित नीच हरकतों से देश को शर्मिंदा करते हैं।
चाहे कितनी ही चीखें गूंजें कोई फ़र्क नहीं,
सियासत के तूर्रमख़ां तो बस कड़ी निंदा करते हैं।
जाने कितने घर और उज़ड़ेंगे सियासत की लड़ाई में,
नेता “Z” सुरक्षा और रखवाले हरदम मौत की खाई में।

जान बचाने कूदे जवान जो कश्मीर की हर आफ़त में,
जाने कितने बहादुर गवांए हमने आतंकियों की हिफ़ाज़त में।
दुश्मन शहीदों के शीश तक काटकर ले जाते हैं,
हम आदेशों के इंतजार में दांत पीस रह जाते हैं।
वो निर्दोष “जाधव” पर फांसी का फरमान सुनाते हैं,
हम अंतराष्ट्रीय न्यायालय के फ़ैसले पर ही इतराते हैं।
वो सरहदें लांघकर सेना के कैम्प में घुस अंदर जाते हैं,
हम “जाधव” के जिंदा होने का पता तक नही कर पाते हैं।
वो आका आतंक के यहां चेले अपने रोज बनाते हैं,
हम देश में छिपे गद्दारों को पहचान भी नही पाते हैं।
सियासत के षडयंत्र से आतंक नहीं हरगिज़ घुटने टेकेगा,
मन अशांत ये सोच कि देश कब शांति का सवेरा देखेगा?

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