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आज गाँव के एक मित्र समान बड़े भाई (जो फिलहाल विदेश में रहते हैं) से फ़ेसबुक पर बात हो रही थी …सबसे पहले मैने उनकी तबीयत की खबर ली ..बाद में उन्होने मेरी तबीयत की खबर ली जैसे कि आपको पता हैं कि सबसे पहले बात की शुरुआत इसी विषय से होती हैं ! बातो का सिलसिला आगे बढ़ते बढ़ते उस समय हास्य की हद से गुजर गया जब ना चाहते हुए भी “केजरीवाल” शब्द बातो के बीच में आ गया…जैसे खाना खाते समय बाल का अचानक मुँह में आ जाना….अब जब ये शब्द आ ही गया तो मुझे भी एक बात का खुलासा करना पड़ा जो आज तक मैने कभी नही किया हैं…मैं धीरे से आँख बंद करके बोला भाई साहब हमारा टाइटल भी केजरीवाल ही हैं.. हम भी दुर्भाग्य से केजरीवाल ही हैं…वो बात अलग हैं क़ि हम हमेशा से अग्रवाल लगाते आ रहे हैं….अब कुछ देर तक तो उनको समझ ही नही आया क़ि मैं जो बोल रहा हूँ वो सही बोल रहा हूँ…उनको लगा जैसे मैं मज़ाक कर रहा हूँ…उनकी ग़लती भी नही हैं क्यूकीं फिलहाल हिन्दुस्तान में केजरीवाल शब्द आते ही सबको मज़ाक सूझती हैं मज़ाक ही लगता है…..उनको जल्दी नही समझ आया उसमे भी उनका कोई दोष नही क्यूकीं जिस केजरीवाल को पूरी दिल्ली नही समझ पाई इतने समय में उस केजरीवाल टाइटल को एक अकेला आदमी कुछ पलों में कैसे समझ सकता हैं… अब मुझे रह रह कर मेरा ये केजरीवाल होना सताने लगा…आख़िर मेरे दादा परदादा को क्या पता था क़ि ये केजरीवाल शब्द आगे जाकर ऐसे गुड गोबर करेगा ! भैया ये हाल मुझ जैसे एक अकेले केजरीवाल का नही हैं इस हिन्दुस्तान में बहुत से ऐसे केजरीवाल हैं जिनको अपना केजरीवाल अब खटकने लग गया हैं….वही दूसरी ओर मोदी टाइटल वाले सीना 56 इंच ताने बेधड़क घूमते हैं…घूमे भी क्यूँ नही आख़िर मोदी टाइटल होने का कुछ तो फ़ायदा उन्हे भी मिलना ही चाहिए… अब ये मैं किस किस को समझाने बैठू क़ि देखो भैया नाम में कुछ नही रखा गया हैं….नाम के नरेंद्र मोदी तो बहुत मिल जाएँगे लेकिन काम के नरेंद्र मोदी तो गिने चुने ही हैं…..बाल सफेद हों जाने से हर कोई अब्दुल कलाम थोड़ी बन सकता हैं….नाम तो घरवाले अपने हिसाब से अच्छे पंडित को बुलाकर अच्छा ही निकलवाते हैं…..वो बात अलग हैं बंदा नाम के हिसाब से नाम करता हैं या काम के हिसाब से नाम करता हैं…..अच्छा होता अगर घरवाले पंडितजी से जन्म लेते समय नाम निकलवाने की बजाय कर्म करते समय नाम निकलवाते जिससे कम से कम नाम से हिसाब से काम और काम के हिसाब से नाम तो होता… ये नाम की महिमा आज तक मेरी समझ से परे हैं…आँख का अँधा और नाम नयनसुख…शक्ल पे कोई थुके नही और नाम सुंदरी बाई….खाने को जहर नही और नाम अमीरमल….जब नाम के विपरीत स्थिति हो जाए तो भैया नाम बहुत तकलीफ़ देता हैं आदमी को….कई करोड़ीमल नाम के भाई रात भर ये सोचकर सो नही पाते क़ि सुबह की रोटी का जुगाड़ कहाँ से करना हैं….खैर जो भी हैं अब नाम परिवर्तन करने की बजाय कर्म परिवर्तन कर लेना ही बेहतर है क्यूकीं नाम में कुछ नही रखा हैं भैया कर्म ही सबका नाम तय करता हैं…वही नाम मरणोपरांत रहना हैं….बाकी तो नाम परिवार के राशन कार्ड में पड़े रह जाते है….मेरे एक गुरुजी की ये पंक्ति अब सही लगती है…..” अमरा ने तो मरता देखया, भागत देखया सूरा…आगे से पाछा भला नाम भला लट्टूरा”
विशेष नोट:- जाति और नाम का उपयोग करने के लिए पूर्व क्षमायाचना..
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259
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