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पड़ोसन का प्यार……दिल्ली लाचार

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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दिल्ली रूपी दुल्हन जिसको दिल्लीवासियों ने सजधज कर बारात निकालकर एक ऐसे अयोग्य अनाड़ी व अक्लरहित वर के साथ ब्याह दिया जो खुद अपनी दुल्हन को खुश तो दूर संतुष्ट भी नही रख पा रहा हैं और अपनी पड़ोसनों के प्रेम में इतना पागल हुआ हैं क़ि आये दिन किसी ना किसी बहाने से पड़ोसनों से मिलने निकल पड़ता हैं ! सुना हैं इन दिनों अपनी पंजाबी पड़ोसन के प्रेम में इतना ज़्यादा मग्न हैं क़ि खुद की दुल्हन की पीड़ाओं का ज़रा भी दूल्हे को भान नही हैं कभी वो डेंगू चिकनगुनिया से जूझ रही हैं तो कभी जहर माफिक हवा से उसका साँस लेना दूभर हो रहा हैं मगर दूल्हा हैं क़ि बाज नही आता अपनी शरारतों से ! उन्हे पड़ोसनें अपनी दुल्हन से ज़्यादा मस्त व मनमोहक लग रही हैं ! अब केजरीवाल महाशय को कौन समझाएँ क़ि भैया आप कोई भगवान कृष्ण तो हो नही जो अपनी 16108 रानियों को भी सप्रेम सआनंद रख पाने में आपको महारथ हासिल हैं ! भला होगा आपका अगर आप अपनी दुल्हन को खुशहाल रखने का प्रयत्न करो और पड़ोसनों के आकर्षण से थोड़ा वंचित रहो !
पिछले एक सप्ताह से टेलीविज़न पर जब भी देखों कतार में खड़े हुए लोग ही दिखाई देते हैं ! लोगो के आस पास ही कोई मीडिया रिपोर्टर माइक पकड़े ऐसे बेचेन दिखाई पड़ता हैं जैसे गुड देखते ही मक्खी भीनभीनाने लगती हैं ! फिर अपना रोना ऐसे रोया जाता हैं जैसे आज ही इनके पिताजी कच्ची उम्र में ईश्वर को प्यारे हुए हैं ! खुद को जो कहना हैं कह देते हैं बाकी दुनिया कोई जाने शून्य दिमाग़ वाली हैं उसकी खुद की कोई समझ नही हैं ! कतार ही कतार, देश में हाहाकार ! कतारे कहाँ नही लगती हैं ? जहाँ जनता इकट्ठी होगी वहाँ कतार लगना लाजमी हैं ! किसी के आमंत्रित करने पर हम शादी में खाना खाने जाते हैं वहाँ भी कतार लगती हैं खाने के लिए.. ये तो देश की समूची अवाम का काम हैं यहाँ कतार लगने पर आश्चर्य क्यों ? यहाँ कतार लगने पर सवाल क्यों ? यहाँ कतार में लगने पर शर्म क्यों ? हम कोई सरकार का मुफ़्त का गेंहूँ चावल लेने कतार में थोड़ी खड़े हैं जो हमे भीख लेते हुए शर्म आ रही हैं ! कतार में खड़े होकर हम इस लड़ाई में सरकार के साथ होने की गवाही दे रहे हैं ! बड़े बड़े मंदिरों में जब भगवान के दर्शनार्थ लोग जाते हैं वहाँ भी कतारे लगती हैं तो क्या भगवान के खिलाफ नारेबाज़ी होगी ? भगवान को गालियाँ दी जाएगीं ? अरे कतारें तो आमजन की सुविधा के लिए लगायी जाती हैं, कतारें अनुशासन हेतु लगायी जाती हैं , कतारे हमारे धैर्य की परीक्षा के लिए लगायी जाती हैं ! क्या इस परीक्षा में हम उतीर्ण नही होना चाहेंगे जब जिंदगी की हर परीक्षा में हम हिन्दुस्तानवासी उतीर्ण होते आएँ हैं तो इस परीक्षा में उतीर्ण क्यों नही होना हमें ? ऐसी परिक्षाएँ जीवन में कम आती हैं लेकिन जब भी आती हैं कोई सकारात्मक परिवर्तन अवश्य लाती हैं !
हमारे देश में गेंहूँ और घून (गेंहूँ में लगने वाले कीट) आपस में इस तरह घुले मिले हुए हैं कि अगर दोनो को अलग अलग करना हो तो अलग अलग करने वालें के पसीना आ जाता हैं ! फिर भी इन्हे अलग अलग करने के लिए मोदी जी ने नोट बंदी करके एक प्रयास की पहल की हैं ! ये नोट बंदी मात्र एक चलनी हैं जिसमे मोदी जी सारे गेंहूँ को डाल कर घूनों की पहचान करेंगे ! हो सकता हैं इस पहले प्रयास में कुछ घून गेंहूँ के साथ चिपक कर रह भी जाएँ लेकिन वो तब तक चलनी में गेंहू छानते रहेंगे जब तक सारे घून अलग ना हो जाएँ ! जिस दिन सारे घून निकल जाएँगे फिर देखना कभी भी घून के साथ गेंहू नही पिसे जाएँगे क्योंकि सफाई तब तक ही होती हैं जब तक गंदगी दूर ना हो ! ईमानदार आदमी तो गेंहू के दाने की तरह हैं उसको कोई फ़र्क नही उसको चाहे जितनी बार चलनी में डाला जाएँ वो तो हर बार अलग ही दिखेगा उसका स्थान कचरे में नही बल्कि रसोई में हैं ! बस सतर्क सिर्फ़ इस बात से रहना हैं कि अगर घून आपसे चिपके तो उसे खुद से अलग आपको करना हैं सुना हैं कभी कभी घून गेंहूँ के अंदर तक घुस जाते हैं !
एक अंतिम बात… जब रास्ता थोड़ा कठिन और काँटों से भरा हो और हमारा मन फिर भी उस पर चलने को बार बार हमसे कहें तो निश्चित ही हम सही रास्ते पर जा रहे हैं ! खुद जागो औरों को जगाओं ! बंदे मातरम !
जो कल रात था आबाद वो बर्बाद होने वाला हैं
बर्बादियों का चमन फिर से आबाद होने वाला हैं
अभी तो वक़्त ज़रा और लगेगा वक़्त बदलने में
आख़िर अब नया भारत जो ईजाद होने वाला हैं !
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई

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