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बेटियाँ…

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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उम्मीदों की कसौटी पर जो कम आँकी गयी आज तक बेटियाँ
दबाई गयी आवाज़ सदा मगर करती नही खुद आवाज़ तक बेटियाँ
जिनको उतारा नही हमने कभी घर की दहलीज से नीचे
वो उतर आई ओलम्पिक मैदान में रखने देश की लाज तक बेटियाँ
अगर बेटे हैं रजत बाप के, तो माँ की हैं कनक बेटियाँ
समझते सर दर्द जिनको वो ही दर्द में पोंछती भीगी पलक बेटियाँ
माँ बाप के खाली मस्तक पर आत्म सम्मान का तिलक करने
पहले “साक्षी मलिक” अब “पीवी सिंधु” ला रही हैं पदक पे पदक बेटियाँ !!
जितेंद्र अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो. 08080134259

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