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राजनीति सर्वशक्तिमान…हर जगह विराजमान !

शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
शब्द बहुत कुछ कह जाते हैं...
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मुंबई की बरसाती सुबह में घर पर गर्म चाय की चुस्कियाँ लेते जब टेलीविज़न चालू किया तो देखते ही आँखे शर्मसार हो गयी जब देखा कि राजनीति की दानवीयता बढ़ते बढ़ते साक्षात सरस्वती की दहलीज तक पहुँच चुकी हैं स्वयं सरस्वती से सौदा करने उन भावी भविष्य रूपी बच्चों का जिन्होने इम्तिहान के तौर पर अभी तक महज बोर्ड की कुछ परिक्षाएँ दी हैं !अच्छे अंकों से सफल होने की प्रतियोगिता के लालच की काली करतूत अब बिहार के जंगल राज से प्रारंभ होते होते महाराष्ट और गुजरात तक पहुँच चुकी हैं ! जहाँ कुछ बच्चे परीक्षा में ग़ैरहाजिर होकर भी अंकतालिओं में सफल हो गये वही कुछ बच्चे जिन्होने सफल होने की उम्मीद तक नही की वो राज्य में टॉप कर गये ! अब दोष किसका हैं ये तो शिक्षा विभाग के उच्च गरिमामय पदों पर बैठे कुछ महानुभाव ही बता सकते हैं जिनकी जेब गर्म हुई हैं या फिर जिन्होने अपनी रिश्तेदारी निभाई हैं ! शाला में जहाँ बच्चे हंसते हुए नज़र आते थे आज वही बच्चे क़ानून की हथकड़ियों में फँसते नज़र आ रहे हैं आख़िर ऐसा क्यूँ ? शायद अभी भी असली गुनाहगारों को पकड़ने से हाथ काँप रहे हैं पुलिस के आख़िर हैं तो एक ही सरकारी बिरादरी के सारे के सारे ! चोर चोर मोसेरे भाई ! एक बात तो अब हर कोई जान चुका हैं कि राजनीति हर जगह मौजूद हैं चाहे वो इंसाफ़ की अदालत हो जहाँ बलात्कार से पीड़ित एक लड़की क़ानून के कटघरे में चीख लगा लगा कर विनती कर रही हैं कि मेरा अब और इम्तिहान मत लो सबूतों के नाम पर या फिर शिक्षा का मंदिर कोई जहाँ से निकलकर लाल बहादुर शास्त्री जैसा एक साधारण बच्चा देश के नवनिर्माण में अपना अहम योगदान देता हैं ! सोचो इस तरह फर्जी दस्तावेज़ों से सफल होने वाले बच्चे आगे भविष्य में देश का क्या भला करेंगे ? क्या अंको की अधिकता ही सब कुछ हैं एक इम्तिहान में ? जिस तरह से ये सच सामने आ रहे हैं वो दिन दूर नही हैं जब हर एक बच्चा जनता के सवालों के कटघरे में होगा जिसने इम्तिहान दिया हैं ! अब वक़्त हैं एक इम्तिहान उनका लेने का जिनके हाथों ने हस्ताक्षर किए हैं काली करतूतों के इन काले कागजों पर ! शायद आप को खुद ब खुद परिणाम देखने को मिल जाएगा आरक्षण का ! ये हाथ भी उन्ही लोगों के होंगे जो खुद सफलता के संकड़े रास्ते से निकल के आए हैं ! अब ये तो सर्वविदित ही हैं कि आज हिन्दुस्तान में आरक्षण का परिणाम हर कोई भुगत रहा हैं कोई एक इंसान ऐसा नही होगा जो अपने जीवन में इस आरक्षण प्रणाली के बुरे अनुभव से नही गुजरा हैं ! अब ज़रूरत हैं एक बार फिर से संविधान की किताब पर जमी धूल की सफाई करने की ..कुछ पन्ने नये जोड़ने की…कुछ पन्ने पुराने फाड़ने की…जब देश बदल रहा हैं…दुनिया बदल रही हैं…तो संविधान में परिवर्तन क्यूँ नही ? आख़िर संतुलन नाम की भी कोई चीज़ होती हैं या नही या फिर हिन्दुस्तान इसी तरह कभी इधर कभी उधर गिरता रहेगा एक तराजू की तरह जिसका एक पलड़ा हल्का तो दूसरा भारी आख़िर असंतुलन का परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा ! खैर जो भी हैं मुझे तो कवि इकबाल की लिखी कविता याद आ रही हैं…..
“रुलाता हैं तेरा नज़ारा
ए हिन्दुस्तान मुझको
कि इबरतखेज हैं तेरा फसाना
सब फसानों में
छुपा कर आस्तीन में
बिजलिया रखी हैं आसमाँ ने
अनादिल बाग के गाफील
न बैठ आशियानों में
वतन की फ़िक्र कर नादान
मुसीबत आने वाली हैं
तेरी बर्बादियों के मशवरे हैं
आसमानों में
ज़रा देख इसको जो कुछ हो रहा हैं
और होने वाला हैं
धरा क्या हैं भला
अबीद-ए-कुहन की दास्तानों में “

लेखक- जितेंद्र हनुमान प्रसाद अग्रवाल “जीत”
मुंबई..मो.08080134259

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