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अनेकता में एकता

RAJESH _ REPORTER
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अनेकता में एकता हमारे देश की पहचान रही है हमने गर्व से सम्पूर्ण विश्व को अपनी ” अलग भाषा अलग भेष फिर भी अपना एक देश ” का नारा दिया है लेकिन आज ऐसा प्रतीत हो रहा है की कुछ स्वार्थी लोगो के स्वार्थ के चलते यह एकता भंग होने के कगार पर पहुच गई है २४ जुलाई को आसाम में भड़की हिंसा तो तत्कालीन कारन है लेकिन इसके बीज बर्षो पहले बोये गए 1947 में जब द्वि राष्ट्रवाद के सिधांत पर इस देश का बटवारा हुआ और देखते देखते हिन्दुस्तानी कहलाने वाले इस देश के नागरिक २ कौम में बट गए जो कल तक भाई हुआ करते थे एक दुसरे के सुख दुःख में शामिल रहते थे वो दुश्मन बन बैठे बटवारा सिर्फ दो मुल्को का ही नहीं वरन दो दिलो का हो गया तभी से इस देश की एकता में जंग लग गई लेकिन हम अपने आप को अत्यधिक सहिष्णु दिखाने के चक्कर यह भूल गए की जो मैल एक बार दिल में बैठ जाती है उसे धोया नहीं जा सकता जिसका नतीजा आज हमारे सामने है कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक आज आये दिन चाहे वो राजनितिक स्तर पर हो या सांस्कृतिक स्तर पर हमारे ऊपर हमले हो रहे है और इन हमलो की प्रतिकिर्या सम्पूर्ण भारत वर्ष में होती है ना की सिर्फ कुछ स्थानों पर जैसा की अभी देखा भी जा रहा है और इससे पूर्व के घटना कर्मो में भी देखा गया आसाम में हुई हिंसा के विरोध में मुंबई ,लखनऊ ,इलाहाबाद ,बिहार ,केरल ,पश्चिम बंगाल , कर्नाटक सहित देश के अलग अलग हिस्सों में विरोध किया गया और किया जा रहा है मुंबई में हुई हिंसा में २ लोगो की मौत हुई लखनऊ में व्यापक प्रदर्शन किया गया क्या ये विरोध पर्दर्शन जायज है आखिर म्यामार की हिंसा का विरोध भारत में क्यों . अभी तक जिस प्रकार से प्रदर्शन हुई उसमे यह चेतावनी कई अर्थ लिए हुए है जिससे आम जन मानस में भय का वातावरण बना हुआ है गली की चाय दुकान से लेकर बड़े बड़े मॉल तक में भय आम जनता में साफ तौर पर देखा जा सकता है सरकार ने sms और mms पर अगले १५ दिनों तक रोक लगा रखी है और भडकाऊ लेख और अफवाह फ़ैलाने वालो पर सख्त करवाई की बात कह रही है लेकिन इसके लाभ कही नजर नहीं आ रहे है क्योकि कल जब सरकार सदन में चर्चा कर रही थी वही दूसरी और कई स्थानों पर इन लोगो द्वारा हिंसा किया जा रहा था और सरकार मूकदर्शक बन देख रही थी जबकि आसाम में हुई हिंसा का मुख्या कारन क्या है यह सभी जानते है की आसाम में हिंसा क्यों और कैसे हुई और इसके पीछे कौन लोग है लेकिन सिर्फ वर्ग विशेष होने का लाभ उठाते ये लोग हिंसा करते रहे और हमारी सरकार मुक्स्दर्शक बन देखती रही ऐसे में अनेकता में एकता का दंभ हम कैसे भर सकते है जबकि हमारे ऊपर हमले हो और हम सहिष्णु बने रहे आखिर कब तक , क्या यह जबाब देही सिर्फ एक समुदाय की है या फिर दोनों समुदायों की आज पुरे देश से जिस प्रकार पूर्वोतर के नागरिको का पलायन हो रहा है लोग अपना काम धंधा ,पढाई छोड़ जैसे -तैसे ट्रेनों में लद कर चले आ रहे है सिर्फ इस भय से की उनके ऊपर हमले होने वाले है इसलिए उन्हें वापस अपने घर चले जाना चाहिए यह कहा का न्याय है की करे कोई भरे कोई आखिर अपने राज्य से बहार रह कर अपनी जिंदगी को सवारने गए इन नवयुवको का क्या कसूर है क्या ये गए थे आसाम में दंगा करने . तो फिर इनके साथ इस प्रकार का कुकृत क्यों ?अभी तक पुरे देश से लगभग ३०,००० पूर्वोतर के नागरिको को पलायन करना पड़ा है और अभी भी लोग अलग अलग स्थानों से पलायन कर ही रहे है और देश के गृह सचिव एक बार फिर इसमे पाकिस्तान का हाथ बताने से नहीं चुके / क्या इनके सुरक्षा की जबाब देही हमारे सरकार की नहीं है यदि है तो क्यों नहीं इन्हें पुख्ता सुरक्षा मुहय्या नहीं करवाया गया सिर्फ बयान बाजी ही क्यों की जा रही है और तो और गृह मंत्री इनके लिए स्पेशल ट्रेन चला कर ही अपनी पीठ खुद ही थपथपा रहे है क्या ये समय राजनितिक स्वार्थ सिद्धि का है या फिर इस देश की एकता को खंडित होने से बचाने का क्या ऐसे में एकता बनी रह सकती है जब की भगवान बुद्ध की प्रतिमा को खंडित किया जाये , भारत की स्वाभिमान तिरंगे को खुले आम जलाया जाये और उसके स्थान पर पाकिस्तान का झंडा लहराया जाये तो फिर हम एक कैसे हो सकते है एक रहने के लिए कुछ तुमको बदलना होगा कुछ हमको तभी हम एक रह सकते है अन्यथा मेरे विचार से यह संभव नहीं की हम एक रह सके इसलिए अनेकता में एकता के दावे अब मुझे इस देश में खोखले साबित होते दिख रहे है यह तभी संभव है जब देश का मुश्लिम्वर्ग पहले खुद को भारतीय समझे फिर किसी धर्म विशेष का पैरोकार “सारे जहा से अच्छा हिन्दुस्ता हमारा “केवल कविता की पंक्तिया बन कर रह गई है आइये ये सिर्फ कविता की पंक्तिया बन कर ही ना रह जाये इस लिए कुछ ऐसा प्रयाश करे की हमारी एकता बनी रहे और हम “कश्मीर हो या गौहाटी अपना देश अपनी माटी” नारे को चरितार्थ करे ताकि हम एक बार पुनह विश्व के फलक तक पहुचे और यह तभी संभव है जबकि हम और आप साथ होंगे …

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