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खुसनसीब है मेरे वो दोस्त जिनके पास माँ है

RAJESH _ REPORTER
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खुसनसीब है मेरे वो दोस्त जिनके पास माँ है
में तो उनकी यादो में ही जी रहा है
जिन हाथो के स्पर्श मात्र से ही रोम रोम पुलकित हो उठते थे
उन हाथो को ढूंढता फिर रहा हु कि तुम हो यही कही हो
जेठ कि तपती दुपहरी में आँचल में छुपा लेना तुम्हारा
कि कही से कोई किरण ना पड़ जाये मेरे चेहरे पर
कभी आँचल के कोरो से टपकते लार को पोछना
कभी ललाट पर पड़ आई सिकन को अपनी बाहों में समेट लेना
सब याद आता है आज लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी यादे है

खुसनसीब है मेरे वो दोस्त जिनके पास माँ है
में तो बस तुम्हारी यादो में ही जी रहा हु

कभी सोचा ना था तुम यु हाथ छुड़ा कर चली जाओगी
अभी तो में अबोध था आखिर कौन सुलाएगा मुझे
हर अच्छे और बुरे से परिचित तुम्ही तो करवाती थी मुझे
कही से आता तो तुम्हे ढूंढता रहता तब तो एक आश थी कि
तुम हो यही कही हो
अब तो सिर्फ अनुभूतियो के सहारे
जिए जा रहा हु
खुस नसीब है मेरे वो दोस्त जिनके पास माँ है
में तो तुम्हारी याद में ही जिए जा रहा हु .
——————————- माँ तुम्हे सत सत नमन

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