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टोपी की आवश्यकता ?

RAJESH _ REPORTER
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रजा नामुराद ने ईद के मौके पर शिवराज सिंह चौहान के सामने ही नरेन्द्र मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा की टोपी पहने से किसी का धर्म नहीं बदल जाता है लेकिन हाल ही में उसी मध्य प्रदेश में जब मदरसे में गीता के कुछ श्लोक पढाये जा रहे थे तो जैम कर बबाल हुआ और अंतत सिवराज सरकार को कदम पीछे हटाना पड़ा था गौरतलब हो की
कक्षा पहली की किताब है उर्दू भारती जिसके अध्याय पंद्रह के पाठ का अंत नियतं कुरू कर्म त्वमं से होता है. ये गीता के श्लोक का अंश है. जिसका अर्थ है अपना तय काम रोज करना चाहिये. यानि कि खेलकूद के अलावा पढाई का काम रोज किया जाये. इसी प्रकार दूसरी कक्षा की उर्दू भारती का पाठ सोलह है जिसमें अंधे और लंगडे मित्र की कहानी है जो नर्मदा नहाने जाना चाहते है मगर एक दूसरे की मदद के बिना ये संभव नहीं है. पाठ की समाप्ति इस सीख के साथ होती है. परस्परं भावयन्तं श्रेय यानिकि एक दूसरे से मिलकर रहें. ये दोनों पाठ की ये पंक्तियां कहीं से भी आपत्तिजनक और सांप्रदायिक रंग में रंगी नहीं है. फिर क्यों इन पर हंगामा हो गया. यही नहीं आप को याद होगा जब नितीश सरकार ने बिहार के सभी स्कूल में सूर्य नमस्कार को अनिवार्य किया था तब भी इन्ही लोगो ने बबाल मचाया था और नितीश कुमार को भी यह फैसला वापस लेना पड़ा था आखिर यह कैसे हो सकता है की हम सहिष्णु बन कर बार बार टोपी पहनते रहे और ना पहने तो सम्पर्दायिक हो जाते है वही मुश्लिम वर्ग वन्दे मातरम का विरोध करे …गीता का विरोध करे …हमारे सूर्य नमस्कार का विरोध करे तो वो धर्म निरपेक्ष हो जाते है ? क्या टोपी से ही सियासत है ?

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