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करना चाहता होगा वो भी आशाए अपनी पूरी
रही होगी जीने की प्रबल इच्छा उसके अन्दर भी
मृत्यु और जीवन के द्वन्द करते होंगे उसको परेसान
झंझावातो को पार करते करते कब वो मौत की आगोश में चला जायेगा
सायद इसका अंदाजा उसे भी नहीं होगा तभी तो
मौत ने हॉर्न भी नहीं बजाया और समेट लिया उसे अपनी बाहों में
क्या थी सिर्फ ये मानवीय भूल या था विधि का विधान
या फिर समय उसका हो चूका था पूरा इस मृत्यु लोक से पलायन का ……………………… …………..चंद शब्द असमय मौत की गोद में चले गए उन निरीह बिहारिओ के लिए जिन्हें सायद पता ना होगा की आज उनका अंतिम समय है ?सरकार और प्रसाशनिक विफलता का एक और उद्धरण देश वशियो के लिए की कैसे बिहार सरकार बिहार की जनता को असमय मौत के मुह में भेज देती है जिसका नतीजा है खगरिया जिले में हुआ ट्रेन हादसा जहा सरकारी आकड़ो के अनुसार ३७ लोग मरे है जबकि गैर सरकारी आकड़ो के अनुसार यह संख्या १०० से अधिक है ? ॐ शांति
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