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आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब देश के प्रधान मंत्री को किसी राज्य के मुख्य मंत्री ने खुली चुनौती देते हुए स्वतंत्रता दिवस पर देश को दिए गए संबोधन के मात्र एक घंटे बाद ही जबाब देते हुए पुरे देश का ध्यान आकर्षित किया हो हलाकि कुछ लोग इसे गलत सिद्ध करने में लगे हुए है जबकि जनता का मिजाज इसी से भापा जा सकता है की जितने लोगो ने टी वी पर प्रधान मंत्री का भासन नहीं सुना उससे कई गुना अधिक लोगो ने नरेन्द्र मोदी का भासन सुना . प्रधान मंत्री के भासन में जहा लाचारी दिखी वही मोदी जी का भाषण उत्साह से लबरेज था और कुछ कर गुजरने की चाहत दिखी . चाहे भ्रस्ताचार का मुद्दा हो या फिर पडोसी मुल्को द्वारा किये जा रहे हमलो पर यही नहीं नरेन्द्र मोदी ने महंगाई , आतंकवाद के साथ समवेसी विकाश की अवधारणा को मजबूत करने वाला उत्साह जनक उद्बोधन किया लेकिन समाचार चेनल पर चलने वाली परिचर्चाओ के साथ साथ विपक्षी कांग्रेस के नेताओ ने मोदी को कूप मंडूक की उपाधि दे दी लेकिन प्रशिध समाज सेवी किरण वेदी की माने तो मनमोहन सिंह का भासन राज्य सरकार के अधिकारी की तरह था जो की अपने से बड़े अधिकारिओ के समक्ष लिखा लिखाया रट्टा मार जाता है और अन्दर में एक भय से ग्रषित रहता है की कही कोई गलती ना हो जाये ऐसे समय जब देश तामाम कठिनयियो से गुजर रहा हो तब प्रधान मंत्री का लाल किले से इस प्रकार का संबोधन देश के आम नागरिको के गले नहीं उतरा है ?
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