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पुरुष प्रधान समाज में नारी को सामान अधिकार देने की बात बड़े ही जोर शोर उठाई जाती है और नारी को कई क़ानूनी अधिकार भी हमारे समाज के साथ साथ न्यायपालिका ने दिया है धारा 498 जिसका लाभ महिलाओ को दिया गया है की यदि उन्हें पडताना का शिकार बनाया जाता हो तो वो क़ानूनी अधिकार प्राप्त कर सकती है लेकिन इन अधिकारों का पालन कितने सही ढंग से किया जा रहा है इस पर विरले ही चर्चा होती है कही ऐसा तो नहीं की नारी को जो अधिकार दिए गए है उन अधिकारों का दुरूपयोग किया जा रहा है सामान अधिकार के नाम पर पुरुष वर्ग का शोषण किया जा रहा है .और सिर्फ नारी होने का लाभ इस वर्ग को मिल रहा है जो की न्यायोचित ना होते हुए भी ये खुले आम इसका उपयोग पुरुषो के खिलाफ कर रही है .ऐसे कई मामले मेरे सामने पिछले कुछ दिनों से आ रहे है जिन पर यहाँ चर्चा करना मैंने उचित समझा पहला मामला अमर कुमार का है जिनका विवाह उनके परिवार वालो ने बड़े ही धूम धाम से किया अमर की माँ ने अपने बहु को लेकर कई सपने संजोये रखे थे लेकिन विवाह के कुछ ही दिन बाद उनकी पत्नी अपने मायके चली गई कारन था विवाह तुमसे हुआ है तुम्हारी माँ से नहीं में तुम्हारा ध्यान रख सकती हु तुम्हारी माँ का नहीं अब जिस माँ ने अपने बेटे को नौ महीने पेट में रखा हो यदि बेटा बेगैरत इन्सान हो तो कोई बात नहीं लेकिन यहाँ पुट कपूत नहीं निकला था जिसका नतीजा हुआ की संगीता अपने माता पिता के यहाँ चली गई और अमर और उनके परिवार वालो पर दहेज़ उत्पीडन का मुकदमा दर्ज कर दिया मुकदमा न्यालय में आज भी च रहा है अमर अपने दो छोटे छोटे बच्चो से दूर जीवन यापन करने पर विवश है बच्चो की या में शराब का सहारा है दूसरा मामला इससे बिलकुल अलग है सभ्रांत परिवार का मामला है जहा पति अधिवक्ता और परिवार में माता पिता शिक्षक के पद पर पत्नी का कहना सब नौकरी करते है में भी नौकरी करुँगी लेकिन जैसे ही एक निजी कंपनी में नौकरी लगी रंग दिखाना सुरु कर दिया पति को आये दिन प्रताड़ित करने लगी माता पिता से दूर हो जाओ बेचारा अधिवक्ता पति शरवन कुमार नहीं था सो अलग हो गया लेकिन आये दिन झगडा आरम्भ हो गया और मामला कोर्ट तक पहुच गया तीसरा मामला एक व्यापारी पति का इस मित्र की हालत तो देखते बनती है कई कई दिनों तक पत्नी खुद तो खाना बना कर खा लेती है लेकिन पति महोदय भूखे हो सोने पर मजबूर यही नहीं एक मित्र है हरेन्द्र कुमार बेचारे अभी अभी कल राह चलते मिल गए बहुत दिनों बाद मुलाकात हुई थी सो पुच बैठा कहा थे इतने दिनों तक मुलाकात नहीं हुई बेचारे ने पहले तो टाल मटोल किया फिर अपना दुखड़ा सुनाया की ६ महीने जेल में रह कर कल ही निकला हु पत्नी ने धारा 498 का मुकदमा कर दिया पुलिस ने भी उसी की सुनी और जेल भेज दिया हरेन्द्र की पूरी जिंदगी ही नरक बन चुकी थी उसकी कहानी सुन कर मन द्रवित हो गया ऐसे एक दर्जन से अधिक मामले पिछले कुछ दिनों में मेरे सामने आये एक सामाजित व्यक्ति होने की वजह से जिस कारन आज लिखने पर मजबूर हुआ यहाँ नारी शक्ति के ऊपर लांक्षण लगाना मेरा मकसद नहीं है हो सकता है की आप की मित्र मंडली में भी एक दो पीड़ित पति मिल जाये तो क्या नहीं लगता की दहेज़ उत्पीडन जैसे कानूनों पर व्यापक बहस होनी चाहिए की कही एक वर्ग को लाभ पहुचने हेतु दुसरे वर्ग को पीड़ित बना दिया जाता हो जिससे उसके सारे सपने देखते देखते चकना चूर हो जाये और माता पिता के कर्तव्यों से मुख मोड़ना पड़े क्या यह सही है
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