Menu
blogid : 133 postid : 141

इस न्योते का निहितार्थ

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

भारत ने पाकिस्तान को वार्ता का न्योता देकर देश को अचरज में डाल दिया है, क्योंकि पाकिस्तान ने मुंबई हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। यही नहीं वह यह आश्वासन देने के लिए भी तैयार नहीं कि 26-11 जैसे और हमले नहीं होने दिए जाएंगे। पाकिस्तान से बातचीत की पेशकश इसलिए और अधिक आश्चर्यजनक है, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह मानना था कि पाकिस्तान की सरकारी एजेंसियों की मदद के बगैर मुंबई हमला नहीं हो सकता था। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उन्होंने मुंबई हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई के बगैर पाकिस्तान से बातचीत न होने की संभावना एक नहीं अनेक बार खारिज की और स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से पाकिस्तान को यह चेतावनी भी दी थी कि वह अपनी भूमि का गलत इस्तेमाल न करे। अब अचानक उन्होंने पाकिस्तान को बातचीत की मेज पर आने का निमंत्रण दे दिया। सरकार के इस फैसले की आलोचना स्वाभाविक है। भाजपा ने वार्ता की इस पेशकश को आत्मसमर्पण बताया है तो अन्य दल भी सरकार के इस निर्णय की प्रशंसा करने के लिए तैयार नहीं दिखते।

यह लगभग तय है कि संसद के आगामी बजट सत्र में सरकार को इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा कि पाकिस्तान से बातचीत क्यों की जा रही है? ऐसे सवाल इसलिए और उठेंगे, क्योंकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ रजा गिलानी ने भारत के फैसले पर यह कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव में वह वार्ता की मेज पर आने के लिए मजबूर हुआ। गिलानी ने यह भी संकेत दे दिए कि वह आतंकवाद के बजाय कश्मीर पर चर्चा करने के लिए लालायित हैं। उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान कश्मीर के लिए संघर्ष करने वालों को हर संभव तरीके से मदद देगा। इसके एक दिन पहले ही गुलाम कश्मीर में पाकिस्तान सरकार की अनुमति से आतंकियों ने एक सम्मेलन किया, जिसमें उन्होंने कश्मीर को आजाद कराने के लिए जेहाद छेड़ने की धमकी दी। आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ जाएं। ऐसी घटनाएं देश के दूसरे हिस्सों में भी हो सकती हैं। वैसे भी अभी तक का अनुभव यही बताता है कि भारत-पाक वार्ता के पहले आतंकी घटनाओं में तेजी आ जाती है। यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि अमेरिका ने एक बार फिर पाकिस्तान का पक्ष लिया, क्योंकि अमेरिकी रक्षासचिव राबर्ट गेट्स और राष्ट्रपति ओबामा के विशेष दूत होलबू्रक की नई दिल्ली की यात्रा के बाद ही भारत ने पाकिस्तान को बातचीत का न्योता भेजा है। ऐसा तब किया गया जब पाकिस्तान ने यह कहा कि वह मुंबई सरीखे हमले दोबारा न होने की गारंटी नहीं ले सकता। यह बात राबर्ट गेट्स के इस बयान के जवाब में कही गई थी कि भारत एक और 26-11 होने पर चुप नहीं बैठेगा। ध्यान रहे कि नवंबर 2008 में मुंबई पर हमले के बाद भारत ने अत्यधिक संयम का परिचय दिया था-और वह भी तब जब देश में पाक के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश था।

गृहमंत्री चिदंबरम लगातार यह संकेत दे रहे हैं कि पाकिस्तान में फल-फूल रहे आतंकी भारत में एक और बड़े हमले की ताक में हैं और पाकिस्तान जानबूझकर मुंबई हमले के षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहा, लेकिन अब वही इस्लामाबाद जाने की तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि चिदंबरम पाकिस्तान जाएंगे या नहीं, लेकिन इसके आसार कम हैं कि मौजूदा माहौल में भारत-पाक वार्ता से कोई सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे। पाकिस्तान भारत विरोधी आतंकी ढांचे को समाप्त करने के लिए तैयार नहीं और उलटे आतंकियों को समर्थन देने की घोषणा कर रहा है। आखिर जब सीमा पार सक्रिय आतंकी कश्मीर को लेकर जेहाद छेड़ने को तैयार हों और पाकिस्तान सरकार उनके प्रति नरमी बरत रही हो तब दोनों देशों की बातचीत से शांति की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

नि:संदेह कोई भी यह समझ सकता है कि भारत पर पाकिस्तान से वार्ता करने के लिए अमेरिका ने दबाव डाला होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने करीब एक वर्ष पहले राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर विशेष ध्यान देने की बात कही थी, लेकिन अब वह तालिबान आतंकियों से सौदेबाजी करना चाहते हैं। अमेरिका यह अच्छी तरह जानता है कि पाकिस्तान के सहयोग के बगैर वह तालिबान पर काबू नहीं पा सकता, लेकिन उसका सहयोग लेने के लिए वह जिस तरह उसकी शर्तरे को मान रहा है उससे भारत को चिंतित होना चाहिए। अमेरिका पाकिस्तान का सहयोग पाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश में है कि उसे कठघरे में न खड़ा किया जा सके। निश्चित रूप से अमेरिका एक भारी भूल कर रहा है, लेकिन आखिर भारत उसके दबाव में क्यों आ रहा है? यह समय तो अमेरिका के अनुचित दबाव का प्रतिकार करने का था, क्योंकि यह लगभग तय है कि अब पाकिस्तान का मनोबल और बढ़ेगा। इसके संकेत भी मिलने लगे हैं।

हो सकता है कि भारतीय कूटनयिक इस नतीजे पर पहुंचे हों कि पाकिस्तान से बातचीत कर तनाव में कमी लाई जा सकती है, लेकिन ऐसा शायद ही हो। यदि भारत सरकार को पाकिस्तान से बातचीत करनी ही थी तो फिर उसे देश की जनता को भरोसे में लेना चाहिए था। ऐसा करने से आम जनता खुद को ठगी हुई महसूस नहीं करती, क्योंकि अभी तक यही कहा जा रहा था कि पाकिस्तान से बातचीत नहीं हो सकती। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि दोनों देशों के संबंध तनावपूर्ण हैं और पिछले दिनों इंडियन प्रीमियर लीग के लिए खिलाडि़यों की बोली के समय पाकिस्तानी क्रिकेटरों की अनदेखी के बाद तो संबंधों में और खटास आ गई है। यदि भारत सरकार को पाकिस्तान की जनता को कोई संदेश देना ही था तो ऐसी कोशिश की जा सकती थी जिससे पाकिस्तानी क्रिकेटर आईपीएल में शामिल हो सकते। इसके जवाब में पाकिस्तान सरकार मुंबई हमले के षड्यंत्रकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के कुछ ठोस कदम उठा सकती थी। यदि ऐसा कुछ होने के बाद बातचीत की पेशकश की जाती तो उसका औचित्य समझ में आता।

दोनों देशों को यह पता होना चाहिए कि वार्ता के लिए सिर्फ आमने-सामने बैठना ही पर्याप्त नहीं होता। अभी तो यह प्रतीत हो रहा है कि भारत ने किसी दबाव में पाकिस्तान को बातचीत का न्योता भेजा। इस न्योते के जवाब में गिलानी ने जैसा कटाक्ष किया है उससे यह साबित होता है कि पाकिस्तान की दिलचस्पी वार्ता के जरिये तनाव घटाने में नहीं, बल्कि यह दिखाने में है कि कूटनीतिक दांवपेंच में भारत कमजोर साबित हुआ। फिलहाल यह कहना कठिन है कि दोनों देशों की बातचीत संबंधों में सुधार ला सकेगी, लेकिन इतना अवश्य है कि इस वार्ता के जरिये अमेरिका को अपने हित साधने में मदद मिलेगी। क्या यह आश्चर्यजनक नहीं कि भारत एक ऐसी वार्ता करने जा रहा है जिससे पाकिस्तान को बढ़त मिलेगी और अमेरिका के हितों की पूर्ति होगी?

[पाकिस्तान से वार्ता की पेशकश को अप्रत्याशित बता रहे हैं संजय गुप्त]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh