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पहाड़ी राज्यों में विकास की बाधाएं

संपादकीय ब्लॉग
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पहाड़ी राज्यों को भांति-भांति के कर छूट के द्वारा प्रोत्साहन देने की नीति अपनाई जाती है ताकि इन राज्यों का तीव्र विकास सुनिश्चित किया जा सके. किंतु देखा यह गया है कि कर में छूट का इन राज्यों को विशेष लाभ नहीं मिल पाता है. आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ भरत झुनझुनवाला का कहना है कि पहाड़ी राज्यों को टैक्स की बैसाखी पकड़ने के स्थान पर प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य के बल पर अपने पैरों पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए.

 

देश के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के आर्थिक विकास को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा पूर्व में एक्साइज ड्यूटी में छूट दी गई थी.यह छूट 31 मार्च को समाप्त हो गई है.जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड एवं सिक्किम की मांग है कि छूट की अवधि को बढ़ाया जाए.छूट के प्रोत्साहन से पिछले वर्षों में बड़ी संख्या में इन राज्यों में उद्योग स्थापित हुए हैं परंतु अभी इनकी नींव पुख्ता नहीं हुई है.कई बड़े उद्योग इन राज्यों की ओर बढ़ने को थे, किंतु उनके कदम बीच में ही रुक गए हैं.

 

एक्साइज ड्यूटी में छूट देने का उद्देश्य पहाड़ का आर्थिक विकास था.पहाड़ों में यात्रा और ढुलाई खर्च ज्यादा आता है.बसें एक घंटे में 20 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं जबकि मैदानों में 40 किलोमीटर.मकान बनाना कठिन और महंगा होता है.पहाड़ को काटकर भूमि को समतल करना पड़ता है.अत: पहाड़ में उत्पादन खर्च अधिक पड़ता है.इसीलिए पहाड़ों में उद्योग सफल नहीं होते और औद्योगिक गतिविधिया मैदानी क्षेत्रों तक सीमित रह जाती हैं.पहाड़ के लोगों को लाभान्वित करने के लिए उद्योगों को एक्साइज ड्यूटी में छूट दी गई है.इसके पीछे यह सोच थी कि पहाड़ में ढुलाई आदि का खर्च ज्यादा होने से उत्पादन की लागत में जितनी ज्यादा वृद्धि होगी, उतनी ही राहत एक्साइज ड्यूटी में छूट से मिल जाएगी और इन क्षेत्रों में उद्योग चल निकलेंगे.

 

समस्या यह है कि पहाड़ी क्षेत्रों में सदा ही उत्पादन लागत ज्यादा आती है.अत: पहाड़ों में उद्योग तब ही सफल होंगे जब एक्साइज ड्यूटी में छूट सदा उपलब्ध रहे.अल्प समय की छूट का लाभ उठाने के लिए पहाड़ी राज्यों में उद्योग अल्प समय के लिए स्थापित किए जाएंगे.छूट समाप्त होते ही ये उद्योग मैदानों को पलायन कर जाएंगे.हिमाचल प्रदेश में छूट की उद्घोषणा के बाद 2006 में बड्डी में 120 से अधिक दवा कंपनिया स्थापित हो गई थीं.परंतु 2008 में दवाओं पर सामान्य क्षेत्र में लागू एक्साइज ड्यूटी को घटाकर 8 प्रतिशत कर दिया गया तो हिमाचल को मिलने वाला लाभ स्वत: ही कम हो गया.तत्काल उद्यमियों ने बड्डी में कंपनिया बंद करना शुरू कर दिया.फार्माबिज वेबसाइट पर बताया गया है कि 2009 से 2010 के बीच आधी कंपनिया बंद कर दी गई हैं.

 

एक्साइज ड्यूटी में छूट के दीर्घकाल में निष्प्रभावी होने का एक प्रमाण गोआ राज्य से मिलता है.इस राज्य को दी गई छूट 2004 में समाप्त हो गई, परंतु आज भी इस छूट को पुन: लागू करने की माग उठ रही है.गोआ चैंबर्स आफ कामर्स ने वित्त मंत्री को इस संबंध में बजट पूर्व ज्ञापन भी दिया था.यानी पूर्व में दी गई छूट व्यर्थ सिद्ध हुई है.अल्पकालीन छूट से दीर्घकालीन औद्योगीकरण हासिल नहीं किया जा सकता.यूं भी मूल पहाड़ी इलाकों में उद्योग स्थापित नहीं हो रहे हैं.छूट का लाभ उठाकर पहाड़ी राज्यों के तराई क्षेत्रों में ही औद्योगीकरण हो रहा है.हिमाचल में बड्डी और उत्ताराखंड में काशीपुर में तमाम नए उद्योग लगे हैं.ये मूल पहाड़ नहीं हैं.

 

छूट के पक्ष में दूसरा तर्क राज्य स्तरीय विकास का है.सोच यह है कि मूल पहाड़ में उद्योग स्थापित न हों तो भी कोई बात नहीं.तराई क्षेत्र में स्थापित होने से राज्य सरकार की आय में वृद्धि होगी.इस आय का उपयोग पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क आदि सुविधाएं उपलब्ध कराने में किया जा सकता है.इस तर्क में दम है.

 

परंतु वास्तविकता इसके परे दिखती है.सच यह है कि पहाड़ी राज्यों की सारी सुविधाएं तराई क्षेत्रों में झोंकी जा रही हैं.उदाहरण के तौर पर उत्ताराखंड में दो पहाड़ी विद्युत वितरण खंड हैं- श्रीनगर और रानीखेत.इन देानों खंडों में घरेलू लाइटिंग को 2003 में 25.9 करोड़ यूनिट बिजली सप्लाई की गई थी.2007 में यह 24.7 करोड़ यूनिट रह गई.तराई क्षेत्र में फैक्ट्रियों को बिजली उपलब्ध कराने के लिए पहाड़ी क्षेत्र में सप्लाई कम कर दी गई.यानी मूल पहाड़ी क्षेत्रों को तिगुना नुकसान हो रहा है.सर्वप्रथम यह कि पहाड़ के लोग तराई को पलायन करने को मजबूर हैं, चूंकि नए उद्योगों में नौकरी तराई में ही उपलब्ध है.

 

दूसरा यह कि तराई के उद्योगों को बिजली, सड़क आदि सुविधा देने के लिए पहाड़ को इन सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है.तीसरा नुकसान यह कि तराई की फैक्ट्रियों को बिजली देने के लिए पहाड़ में जल विद्युत परियोजनाएं बनाई जा रही हैं.इससे पहाड़ के मकान टूट रहे हैं, जल स्त्रोत सूख रहे हैं, नदी की बालू और मछली समाप्त हो रहे हैं, बाधों से जहरीली गैस बन रही है, तालाबों में मच्छर पलने से मलेरिया फैल रही है इत्यादि.अतएव पहाड़ी क्षेत्र में एक्साइज की छूट देना मूल पहाड़ी के लिए हर तरह से नुकसानदेह है.

 

देश की दृष्टि से भी समस्या है.पहाड़ी राज्यों को दी गई छूट से राजस्व की जो हानि होती है उसकी भरपाई मैदानी राज्यों को करनी पड़ती है.यदि हिमाचल से 1000 करोड़ का टैक्स कम वसूल किया जाता है तो पंजाब और महाराष्ट्र से सरकार को 1000 करोड़ का टैक्स अधिक वसूल करना पड़ता है.पंजाब ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के जगदीप सिंह पहाड़ी राज्यों को दी गई छूट का विरोध करते हैं.आप कहते हैं, ‘दो राज्यों की समृद्धि दूसरे राज्यों की हानि की कीमत पर हासिल नहीं होनी चाहिए।’ पंजाब सरकार द्वारा उच्चतम न्यायालय में पहाड़ी राज्यों को दी गई छूट के विरुद्ध याचिका दायर की गई है.

 

इसी प्रकार की बिक्री कर की छूट अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य में बोतलबंद पेयजल को दी गई थी.फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि इस छूट को निरस्त करने से राज्य के आर्थिक विकास को गति मिलेगी.कारण यह कि अर्जित टैक्स की रकम के सदुपयोग से लाभ ज्यादा होगा.आर्थिक सलाहकार कंपनी अर्नस्ट एंड यंग के अनुसार क्षेत्र आधारित छूट से पिछड़े क्षेत्रों में औद्योगीकरण को बढ़ावा नहीं मिल रहा है.दूसरे, राज्यों में चालू उद्योग इन क्षेत्रों से पलायन कर रहे हैं.इन क्षेत्रों में नए उद्याोग कम ही लग रहे हैं.राष्ट्र के लिए यह सर्वथा अनुचित है.

 

प्रश्न है कि तब पहाड़ी राज्यों का विकास कैसे होगा? पहाड़ी क्षेत्र में मैनुफैक्चरिंग उद्योग नाकाम हैं.इसका हल है कि पहाड़ी क्षेत्रों में अन्य उपलब्धियों के आधार पर आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाए.पहाड़ी क्षेत्रों में सेवा क्षेत्र के विकास की अपार संभावनाएं हैं, जैसे स्विट्जरलैंड ने अपने को विश्व पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया है.पहाड़ में साफ्टवेयर पार्क, विद्यालय एवं अस्पताल ज्यादा कारगर होंगे.यहा के नैसर्गिक सौंदर्य के बीच बैठकर साफ्टवेयर इंजीनियर अच्छे प्रोग्राम तैयार कर सकेंगे.सेवा क्षेत्र को बिजली की जरूरत कम होती है.इसके विस्तार में जल विद्युत के नाम पर पहाड़ों का सौंदर्य भी नष्ट होने से बच जाएगा और विकास भी होगा.

 

दुर्भाग्य है कि पहाड़ी क्षेत्रों के मुख्यमंत्री सेवा क्षेत्र पर ध्यान नहीं देते.कारण यह कि इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित करने को भूमि आवंटित करने और जल विद्युत के उत्पादन के लिए नदी बेचने के अवसर कम हैं.पहाड़ी राज्यों को टैक्स की बैसाखी पकड़ने के स्थान पर प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य के बल पर अपने पैरों पर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए.

Source: Jagran Yahoo

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