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हिमाचल में साजिश की दस्तक

संपादकीय ब्लॉग
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Nishikant Thakurहिमाचल को देवभूमि तो कहा ही जाता है, विदेशी पर्यटकों के लिए भी यह पसंदीदा जगह है। इसके अलावा इसकी एक खूबी यह भी है कि देश के कई राज्यों की तुलना में यह एक शांतिपूर्ण प्रदेश है। यहां आने वाले बहुत सारे लोग सिर्फ इसलिए नहीं आते कि यहां प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता की छटा चारों तरफ बिखरी पड़ी है, वे इसलिए भी आते हैं कि यहां उन्हें अभूतपूर्व शांति भी मिलती है। ऐसा तब है कि जबकि इसके निकटवर्ती राज्यों में शांति का वैसा माहौल नहीं है। पंजाब लंबे समय तक आतंकवाद का दंश झेल चुका है और इसी के चलते जितनी तरक्की उसे करनी चाहिए थी, नहीं कर सका। यह केवल पंजाब के लोगों के जीवट का नतीजा है जो वह उस भयावह दंश के बावजूद कई मामलों में देश का अग्रणी राज्य है। आतंक के कारणों का सफाया पंजाब से अभी भी पूरी तरह नहीं हो सका है, यह बात हमें भूलनी नहीं चाहिए। दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर की हालत अभी भी भयावह बनी हुई है। वहां शांति स्थापित हो पाना अभी दूर की कौड़ी जैसा लगता है। हाल के दिनों में हिमाचल में जिस तरह की घटनाएं घटी हैं, उन्हें देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि यह शांति यहां बहुत दिनों तक ठहरने वाली है। अगर सरकार तुरंत इस मसले पर न चेती और इस बात को गंभीरता से न लिया तो वहां जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरा बन सकती हैं।


हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक ही परिसर से आठ ताइवानी नागरिक पकड़े गए हैं। ये लोग एक साल के टूरिस्ट वीजा लेकर भारत में रह रहे थे और वीजा अवधि बीत जाने के बावजूद यहां कारपेंटर का काम कर रहे थे। पहली तो बात यही है कि जब वे टूरिस्ट वीजा लेकर आए तो यहां काम क्यों करने लगे और दूसरा यह कि वीजा अवधि बीतने के बाद भी वे यहां रह क्यों रहे थे? इन दोनों ही सवालों से ज्यादा गंभीर प्रश्न उस आवास को लेकर है, जहां ये रह रहे थे। कहने को वह एक निर्माणाधीन कांप्लेक्स है, पर उसमें मौजूद सुविधाएं किसी पांच सितारा और सुरक्षा व्यवस्था किसी किले से कम नहीं है। जिस भवन में आठ ताइवानी नागरिक रह रहे थे, उसके चारों तरफ करीब 15 फीट ऊंची दीवार है, जिस पर कंटीले तार लगे हैं और बताया जाता है कि रात में उनमें करंट भी होता है। ध्यान रहे, ये लोग कारपेंटर का काम कर रहे थे। इतना ही नहीं, पुलिस की दबिश की सूचना इस भवन की मालकिन बताई जाने वाली महिला को पहले ही मिल गई थी और पुलिस के आने से पहले ही वह फरार हो चुकी थी। आखिर क्यों? पुलिस को यहां भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा होने की सूचना मिली थी, जिसके आधार पर पुलिस ने यह छापामारी की।


भवन का केयरटेकर देर तक पुलिस को इस मसले पर गुमराह करता रहा। आखिरकार जवानों को सीढ़ी लगाकर किसी तरह अंदर जाना पड़ा और मौजूद लोगों के पूरे असहयोग के बावजूद पुलिस ने वहां से तीस लाख रुपये बरामद किए। इसके अलावा ताइवान के तमाम सामान, सीडी, देसी-विदेशी एटीएम कार्ड, पासपोर्ट और कई कागजात भी बरामद हुए हैं। आखिर इन चीजों की क्या जरूरत थी और अवैधानिक तरीके से इन्हें क्यों वहां रखा गया? ये तथ्य इस बात को पुख्ता करने के लिए काफी हैं कि इनके इरादे नेक नहीं हैं। इतना ही नहीं, एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस इलाके में तिब्बतियों और बौद्ध मठों के नाम पर कई भूखंड खरीदे जा चुके हैं और उन पर आलीशान भवन बन रहे हैं। ऐसा उस स्थिति में है जबकि हिमाचल प्रदेश में भारत के ही दूसरे राज्यों के निवासियों को भी जमीन खरीदने की अनुमति नहीं है। अब सवाल यह है कि यह सब कैसे हो गया? यह बात भी नजरअंदाज नहीं की जानी चाहिए कि इसी क्षेत्र में रह रहे तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा चीन से अपनी जान को खतरा बता चुके हैं। दलाईलामा के साथ 1959 में आए अधिकतर तिब्बती लोग अभी भी वही कर रहे हैं जो वे तब कर रहे थे, यानी प्रार्थना करते हुए वतन वापसी का इंतजार। लेकिन अब तिब्बतियों की संख्या यहां उतनी ही नहीं रह गई है। हालत यह है कि तिब्बतियों जैसे दिखने वाले लोग यहां भारी संख्या में देखे जा सकते हैं।


स्थानीय नागरिकों के लिए ये चिंता के विषय बन चुके हैं, क्योंकि इनसे न केवल इस क्षेत्र की जनांकिकी बिगड़ रही है, बल्कि इनके इरादे भी उन्हें नेक नहीं लगते हैं। इनमें से तमाम लोगों को कई दूसरे देशों से मदद मिलती है। वे यहां आलीशान भवनों में रहते हैं और आलीशान गाडि़यों में चलते हैं। न तो उनका वापस तिब्बत जाने जैसा कोई इरादा दिखाई देता है और न यहां रहते हुए कोई अन्य शांतिपूर्ण कार्य करने का ही। यहां तक कि यह कहना भी मुश्किल है कि इनमें सभी तिब्बती ही हैं। न्यायमूर्ति डीपी सूद की अध्यक्षता में बेनामी सौदों की जांच के लिए गठित आयोग की रपट में तिब्बतियों के बेनामी भू सौदों का जिक्र है। यह सब कैसे और क्यों हो रहा है, इसका पता अवश्य लगाया जाना चाहिए। तिब्बतियों जैसे दिखने वाले लोगों में वास्तव में कितने लोग तिब्बत के ही हैं, इसकी जानकारी भी सरकार को अवश्य होनी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से हमारे लिए यह जानना अनिवार्य हो गया है कि तिब्बतियों के नाम पर ली गई जमीन और वहां बनाए गए घरों में चीन और ताइवान के नागरिकों के होने का क्या औचित्य है? ध्यान रहे कि ताइवान भी एक तरह से चीन का उपनिवेश ही है। इसलिए इस बात से एकदम से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जो अभी ताइवानी नागरिक बताए जा रहे हैं, वे भी चीनी नागरिक ही हों या चीन के ही मिशन के तहत उन्हें यहां भेजा गया हो।


हालांकि पुलिस अभी पकड़े गए लोगों को जासूस कहने से बच रही है, लेकिन कुल मिलाकर सारे तथ्यों से जो बात जाहिर हो रही है, उसके नाते इस आशंका से इन्कार बिलकुल नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि हिमाचल प्रदेश अब कई लिहाज से संवेदनशील होता जा रहा है। यह बात हमें नजरअंदाज नहीं करनी चाहिए कि पाकिस्तान से चीन की दोस्ती काफी गहरी होती जा रही है। यह कूटनीतिक खेल है और कूटनीति में सीधे तरीके से कोई काम नहीं होता। अक्सर बहाना कुछ होता है और काम कुछ अन्य हो रहा होता है। दिखता कुछ और है, होता कुछ है। भारत सरकार तिब्बत के मसले पर चीन से पहले ही मात खा चुकी है। भविष्य के लिए उसे सतर्क हो जाना चाहिए। कम से कम देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के मसले पर हमें कोई ढील नहीं बरतनी चाहिए। ऐसे लोगों के साथ हर हाल में सख्ती से पेश आया जाना चाहिए, जिन पर किसी प्रकार का संदेह हो। यह बात हमें ठीक से समझ लेनी चाहिए कि दुनिया में किसी भी देश या व्यक्ति से हमारे संबंध राष्ट्रीय सुरक्षा की शर्त पर नहीं होने चाहिए।


निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं


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