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अच्छा – बुरा काला धन

संपादकीय ब्लॉग
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काला धन नि:संदेह अर्थव्यवस्था के लिए हानिप्रद होता है। काले धन का प्रयोग अय्याशी के लिए किया जाता है। इससे समाज में कुरीतियां फैलती हैं। काले धन को विदेश भेज दिया जाता है जैसे स्विट्जरलैंड के बैंक में। इस धन का दूसरे देशों में उपयोग होता है। काले धन पर टैक्स नहीं अदा किया जाता है। इससे सरकार का राजस्व कम होता है और सड़क जैसे निर्माण कार्यों में व्यवधान पड़ता है, लेकिन सरकार का चरित्र शोषक हो तो बात पलट जाती है।


सरकार का लगभग आधा राजस्व सरकारी कर्मचारियों के वेतन में जा रहा है। उनके वेतन में लगातार वृद्धि की जा रही है। अधिकतर सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट हो चुके हैं। बोफोर्स, स्पेक्ट्रम एव राष्ट्रमंडल आदि घोटालों से सरकारी राजस्व का रिसाव हो रहा है। ऐसे में काले धन पर नियत्रण का अर्थ हो जाता है कि जनता से अधिक मात्रा में टैक्स वसूल करके सरकारी कर्मचारियों के ऐशोआराम पर व्यय किया जाए।


आम धारणा है कि काले धन के कारण आर्थिक विकास धीमा पड़ता है। मेरा अनुमान इसके विपरीत है। स्वस्थ व्यक्ति द्वारा घी का सेवन लाभप्रद होता है, लेकिन रोगी व्यक्ति द्वारा उसी घी का सेवन हानिप्रद हो जाता है। वर्तमान में देश की कुल आय का लगभग 11 प्रतिशत टैक्स के रूप में वसूल किया जाता है। इस रकम का सदुपयोग हो रहा हो तो वृद्धि उत्तम है, परंतु यदि इस रकम का रिसाव और दुरुपयोग हो रहा हो तो वही वृद्धि हानिप्रद हो जाती है। काले धन का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि सरकार स्वच्छ है या भ्रष्ट।


व्यापारियों द्वारा बनाए गए काले धन का चरित्र नेताओं एव अधिकारियों द्वारा बनाए गए काले धन से भिन्न होता है। व्यापारियों द्वारा बनाए गए काले धन से जनता को राहत मिलती है। मान लीजिए देश की आय 200 रुपये है। इसमें 100 रुपये काला धन है और 100 रुपये सफेद धन है। सफेद धन में 11 रुपये कर के रूप में वसूल किया जाता है। इस राजस्व में से आठ रुपये का दुरुपयोग अकर्मण्य सरकारी कर्मचारियों को उन्नत वेतन देने में अथवा रिसाव के माध्यम से हो जाता है। अब काले धन को समाप्त करने का आकलन कीजिए। पूरा 200 रुपया सफेद धन होगा। सरकार को 11 रुपये के स्थान पर 22 रुपये का राजस्व मिलेगा। इसमें 16 रुपये का दुरुपयोग हो जाएगा। जनता के हाथ में बची रकम तदानुसार कम हो जाएगी। व्यापारी निवेश कम करेगा। जनता को खरीदे गए माल पर टैक्स अधिक देना होगा। कुछ माल नंबर दो में मिल जाता है जिस पर टैक्स अदा नहीं करना पड़ता है अथवा यूं समझें कि काले धन से वास्तविक टैक्स की दर घट जाती है।


मैंने व्यापारी परिवार में जन्म लिया है। संभव है मेरा नजरिया मेरे परिवार से प्रभावित हो। अस्सी के दशक में इंडियन इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर के पद से इस्तीफा देकर मैंने अपने परिवार के गत्ता बनाने के कारखाने को चलाया। प्रथम दो वर्ष मैंने पूरा व्यापार नंबर एक में किया। टैक्स दर ऊंची थी। 100 रुपये की बिक्री पर 25 रुपये एक्साइज ड्यूटी, 12 रुपये सेल टैक्स तथा 3 रुपये दूसरे टैक्स अदा करने पड़ते थे। करों के इस भार से मेरे कारखाने में उत्पादित गत्ता बाजार में महंगा पड़ने लगा। घाटा लगा और कारखाना बंद होने के कगार पर आ गया। मजबूरन मुझे अपना रुख बदलना पड़ा।


यह परिस्थिति पूर्व में थी जब टैक्स दरें ऊंची थीं। तब अधिकतर काला धन व्यापारियों द्वारा बनाया जाता था। आज परिस्थिति बदल गई है। टैक्स की दरों में कटौती की गई है। व्यापारियों द्वारा काला धन कम बनाया जा रहा है और नेताओं द्वारा ज्यादा, जैसे बोफोर्स और राष्ट्रमंडल घोटाले में। नेताओं द्वारा बनाए गए काले धन का प्रभाव बिल्कुल विपरीत होता है। बोफोर्स तोप की खरीद में विक्रेता कंपनी ने भारतीय एजेंटों को कमीशन दिया। इस रकम को अंतत: भारत सरकार को तोप महंगी बेचकर वसूल किया अथवा स्पेक्ट्रम घोटाले में जो कमीशन दिए गए उनका भार अंतत: मोबाइल फोन उपभोक्ता पर पड़ा। रेल में चना बेचने वाले से जीआरपी द्वारा वसूली गई घूस के कारण चना महंगा हो जाता है। व्यापारी द्वारा बनाए गए काले धन से जनता को सस्ता माल मिलता है, जबकि नेताओं, अधिकारियों द्वारा वसूल किए गए काले धन से जनता को माल महंगा मिलता है। व्यापारी काले धन को उड़ाता कम है और उसका निवेश ज्यादा करता है। मेरी जानकारी में ऐसे उद्यमी हैं जो जमीन, ईंट और सीमेंट की खरीद काले धन से करके फैक्ट्री लगाते हैं। व्यापारी सोने की खरीद और विदेशी बैंकों में जमा कम करता है, चूंकि इससे वह लाभ कम कमाता है। नेता एव अधिकारी सोने एव प्रापर्टी की खरीद ज्यादा करते हैं। मुझे स्मरण है कि पिछली काला धन माफी योजना में 274 करोड़ के सर्वाधिक काले धन की घोषणा आध्र प्रदेश के किसी नेता ने की थी।


वर्तमान भ्रष्ट शासन व्यवस्था में काला धन राहत प्रदान करता है। इस व्यवस्था में नेताओं और अधिकारियों द्वारा बनाया गया काला धन ही प्रमुख समस्या है। ये ही काले धन को विदेशी बैंकों में जमा करा रहे हैं। यदि नेताजी काले धन का उपयोग पार्टी को बनाने में करते तो उसका चरित्र इतना दूषित नहीं होता। व्यापारी द्वारा व्यापार के लिए तथा नेता द्वारा राजनीति के लिए बनाए गए काले धन की भूमिका कम नुकसानदेह होती है।


श्रेष्ठ परिस्थिति है कि साफ सरकार के साथ काले धन का अभाव हो। द्वितीय श्रेणी की परिस्थिति है कि व्यापारी काले धन को व्यापार में लगाएं और नेता राजनीति में। तृतीय श्रेणी की सर्वाधिक हानिप्रद परिस्थिति है कि व्यापारी तथा नेता काले धन को विदेशी बैंकों में भेज दें। आज की प्रमुख समस्या नेताओं द्वारा इस तृतीय श्रेणी के काले धन की है।


जिन मंत्रियों ने काला धन बनाया है और इसे विदेश भेजा है उन्हीं से आज सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि इसे वापस लाएं। मुजरिम से ही पुलिस की भूमिका का निर्वाह करने की अपेक्षा की जा रही है। यह नामुमकिन है। संभवत: इसीलिए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि स्विस बैंक में जमा काले धन की सूची को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है।


मूल समस्या काले धन को वापस लाने की नहीं है, बल्कि नेताओं एव अधिकारियों द्वारा काला धन बनाने की है। कोई भी राजनीतिक पार्टी अपने ही भ्रष्ट सदस्यों के विरुद्ध मुहिम चलाने को तैयार नहीं होगी। अत: इस समस्या का निदान प्रशासनिक व्यवस्था के बाहर खोजना होगा। इसके समाधान के लिए ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल जैसी संस्थाएं देश के प्रबुद्ध वर्ग को स्थापित करनी होंगी। यह कार्य व्यापारियों का वह वर्ग कर सकता है जो स्वयं सादगी से जीता है और काले धन में केवल व्यापारिक मजबूरियों के कारण लिप्त होता है। इन्हें आगे आना चाहिए। नेताओं से इस विषय में आशा करना हमारी भूल है।


[डॉ. भरत झुनझुनवाला: लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]

Source: Jagran Nazariya

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