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कुछ साल पहले तक भ्रष्टाचार का पर्याय रहा बिहार अब भ्रष्टाचार मिटाने के सार्थक और प्रभावी प्रयासों के मामले में पर्याय बन रहा है। नेक और मजबूत इरादों वाला कोई ईमानदार प्रशासक अगर चाहे तो कितना बड़ा बदलाव ला सकता है और किस तरह वह समय की धारा को बिल्कुल मोड़ सकता है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है यह। एक ऐसे समय में जब कई राजनेता सस्ती लोकप्रियता हासिल करने और किसी भी तरह से सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करने में लगे हुए हैं तब अगर कोई राजनेता जमीनी स्तर पर उतर कर काम करने और राज्य के विकास को नई दिशा देने में लगा दिखता है तो उससे बड़ी उम्मीद बंधती है। शायद यही वजह है कि बिहार की जनता ने नीतीश कुमार की सरकार में दोबारा विश्वास जताया और उन्हें अधिक बहुमत से सरकार बनाने का मौका दिया। इससे यह जाहिर होता है कि जनता काम को सम्मान देती है। हाल ही में आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में बिहार सरकार ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक निलंबित अधिकारी का मकान तो जब्त कर ही लिया, बिना देर लगाए उसमें स्कूल भी खोल दिया। इससे एक साथ दो बातें हुई हैं। एक तरफ तो भ्रष्ट अफसरों में हड़कंप मचा और उन्हें आगे रिश्वतखोरी व कमीशनखोरी आदि से बचने का सबक मिला। यह अलग बात है कि न केवल अफसरों, बल्कि कई छोटे कर्मचारियों को भी यह लत बहुत लंबे समय से लगी हुई है। इसीलिए उसका इतनी जल्दी छूटना संभव नहीं है। उन्हें बार-बार सबक सिखाने की जरूरत होगी। दूसरी बात यह कि आम तौर पर जब्तशुदा संपत्तियां या तो बेकार पड़ी रहती हैं या कुछ सरकारी कर्मचारी ही उनका मनमाने ढंग से निजी तौर पर उपयोग करते रहते हैं। इस मामले में ऐसा कुछ नहीं होने पाया है।
संपत्ति जब्त किए जाने के कुछ ही दिनों के भीतर वहां स्कूल खोल दिया गया। इससे जहां एक तरफ अब सरकारी हो चुकी उस संपदा का दुरुपयोग रोका जा सका वहीं उसका सदुपयोग तुरंत सुनिश्चित कर दिया गया। यह ध्यान रखने की बात है कि न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश में हजारों की संख्या में प्राइमरी स्कूल अभी भी या तो भवनविहीन हैं या फिर जर्जर भवनों में चल रहे हैं। अगर ऐसे ही भ्रष्ट कर्मचारियों एवं अधिकारियों के मकान जब्त कर वहां स्कूल खोल जाते रहे तो जहां एक तरफ भ्रष्ट तत्वों के मन में कानून का भय उत्पन्न होगा वहीं जरूरतमंदों को जब्त संपत्ति का लाभ भी मिल सकेगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिहार सरकार ने भ्रष्ट लोगों की संपत्तियों को जब्त करने का जो उपक्रम शुरू किया है वह भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में सबसे कारगर कदम साबित हो सकता है, क्योंकि अभी भ्रष्ट कर्मचारियों, अफसरों या नेताओं की बढ़ती संपत्तियों और उनके बेहिसाब ठाट-बाट को देखते हुए लोगों का मन भ्रष्टाचार से दूर भागने के बजाय भ्रष्टाचार की ओर आकर्षित होता है। पिछले दो-तीन दशकों में न केवल बिहार, बल्कि देश भर में जो मिसालें में पेश की गईं वे भ्रष्टाचार से लोगों का बढ़ता मोह तोड़ने के बजाय भ्रष्टाचार के प्रति सबका आकर्षण बढ़ा रही हैं। अब यह कोई हैरत की बात नहीं रह गई है कि जो लोग नैतिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण न तो भ्रष्ट हैं और न हो सकते हैं उन्हें मूर्ख तक कहा जाने लगा है। पूरे भारतीय समाज में यह आम धारणा सी बन गई है कि अब केवल वे ही ईमानदार हैं जिन्हें या तो बेईमानी का मौका नहीं मिलता या फिर जो बेईमानी कर ही नहीं सकते। ऐसी धारणा किसी भी समाज के लिए खतरनाक है। ऐसी धारणा बनी ही इसलिए, क्योंकि लंबे समय से यह देखा जा रहा है कि भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती ही नहीं है।
जांच और अदालती सुनवाई के नाम पर वषरें तक केवल कागजी घोड़े दौड़ते रहते हैं और भ्रष्ट लोग मौज करते रहते हैं। नीचे से ऊपर तक हर स्तर पर भ्रष्ट लोगों को बैठा कर जांच की प्रक्रिया इतनी जटिल बना दी गई है कि भ्रष्टाचार का कोई मामला अदालत पहुंचने तक इस लायक बचता ही नहीं कि उस पर कार्रवाई की जा सके। इससे भ्रष्ट तत्व ही ज्यादा सुरक्षित हो जाते हैं और उनका हौसला बढ़ता है। ईमानदार लोगों के लिए तो ये हालात भयावह हताशा और डिप्रेशन की ओर ले जाने वाले हैं। निश्चित रूप से आम जन को हताशा केइस दलदल से निकालने के लिए बहुत मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है और वह दिखानी राजनेताओं को ही होगी। यह नीतीश और उनकी टीम की मजबूत इच्छाशक्ति का ही नतीजा है जो वह बिहार को कुशासन के लंबे दौर से निकालकर सुशासन की ओर ला सके। आगे सुशासन का यही दौर बना रहे, इसके लिए जरूरी है कि भ्रष्ट और अराजक तत्वों के हौसले तोड़े जाएं और योग्य, अनुशासित एवं ईमानदार लोगों का आत्मविश्वास मजबूत किया जाए। इसके लिए जरूरी है कि भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कार्रवाइयों की प्रक्रिया लगातार जारी रखी जाए। यह कार्रवाई स्पेशल कोर्ट एक्ट के अधीन की गई है और इसी कानून के तहत बिहार में फिलहाल 17 मामलों की सुनवाई चल रही है। 11 मामले तो अकेले पटना में ही हैं। बेशक किसी निर्दोष को सजा नहीं मिलनी चाहिए, लेकिन इनमें जिनका भी दोष साबित हो जाता है उनकेखिलाफ संपत्ति जब्त करने की कार्रवाई जितनी हो सके वह की जानी चाहिए। यह लोगों में यह विश्वास बनाए रखने के लिए भी जरूरी है कि यह सरकार का सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का हथकंडा नहीं, बल्कि जनता के धन का सदुपयोग और राज्य का विकास सुनिश्चित करने का तरीका है।
तीन-चार मामलों में भी अगर तेजी से ऐसी कार्रवाई हो जाती है तो फिर सरकारी तंत्र की ईमानदारी पर लोगों का भरोसा बन जाएगा। सच तो यह है कि भ्रष्ट तत्वों को कड़ा संदेश देना बहुत जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो ये भ्रष्ट तत्व ही ऐसा मान लेंगे कि सरकार की यह कार्रवाई और कुछ नहीं, सिर्फ स्टंट थी। यही नहीं, ये इस बात को आम जनता के बीच फैलाने में भी देर नहीं लगाएंगे, क्योंकि सरकार के तंत्र समानांतर इनका अपना प्रचार तंत्र भी है। उस तंत्र के तर्क बड़े सीधे-सादे और आम जनता की समझ में आसानी से आने वाले होते हैं। यह अलग बात है कि उसमें कोई सच्चाई नहीं होती है और वास्तव में वह आम जनता के हितों के खिलाफ होता है, लेकिन लोगों के इसी भोलेपन का वे भरपूर फायदा उठाते हैं। वे ऐसा न कर सकें, इसकेलिए तेज गति से कार्रवाइयों के अलावा राज्य में सार्थक शिक्षा का प्रसार भी बढ़ाया जाए।
लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं
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