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बाल दिवस – बच्चों की दशा अब भी है शोचनीय

संपादकीय ब्लॉग
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देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु के जन्म दिवस 14 नवंबर को पूरे देश भर में ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है. पं. नेहरु को बच्चों से प्रेम के कारण बच्चे उन्हे प्यार से ‘चाचा नेहरु’ कहकर बुलाते थे. इसलिए उनकी मृत्यु के बाद आज का यह दिन ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा और आज के दिन सरकार की तरफ़ से बच्चों के विकास के लिए तमाम योजनाओं का शुभारंभ भी किया जाता है. आज का यह दिन जहाँ एक तरफ़ उस पीढ़ी को समर्पित है जिसे कल इस देश की बागडोर संभालनी है, वहीं दूसरी ओर यह उस नेता को याद करने का भी दिन है जिन्होने इस देश को नींद से जगाकर एक विश्व शक्ति में परिवर्तित करने का ना केवल सपना देखा बल्कि उस सपने को सच करने के लिए कई कारगर क़दम भी उठाए.


देश के प्रधानमंत्री सहित मंत्री, सरकारी अधिकारियों और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं को बाल दिवस पर बच्चों के बीच देखा जा सकता है. किन्तु वहीं दूसरी ओर ‘देश के भविष्य’ होटलों, रेस्तराओं, चाय दुकानों, ईंट भट्ठों, और व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर कार्य करते भी आपको नजर आते हैं. बच्चे घरेलू नौकर के रूप में अपमान और उत्‍पीड़न सहते नजर आएंगे. जिन हाथों में कॉपी और पेन होनी चाहिए थी, उन हाथों में होटलों के गिलास और बिना हुआ कूड़ा मिलता है.


केन्द्र सरकार की ओर से ‘बाल श्रम अपराध कानून’ भी लागू है. लेकिन, इस पर अमल कितना होता है? इन बच्चों को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि किसी ओर से कोई ठोस कदम उनके भविष्य के लिए नहीं उठता है. ये घनघोर गरीबी में जीने को अभिशप्‍त हैं. कहीं-कहीं तो इन बच्चों को अपने परिवार की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है. इन बच्चों में भी अच्छा खाने और पहनने की इच्छा होती है. मगर, संसाधनों के अभाव के कारण इन्हें अपनी इच्छाओं का गला घोटना पडता है.


क्या बच्चों  के प्रति हमारा, हमारे समाज और हमारी सरकार का दायित्व बस बाल दिवस तक ही सीमित है? अगर सही अर्थों में हमें अपने देश को आगे ले जाना है, तो इस बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न का हल शीघ्र ढूंढना होगा.

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