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चीन में शोषण का नया दौर

संपादकीय ब्लॉग
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जब से बाहर की दुनिया में ये खबरें आ रही हैं कि चीन के कई कारखानों में लगातार हड़तालें हो रही हैं, संसार के सारे उद्योगपति आश्चर्यचकित और चिंतित हैं। चिंता तो चीन की सरकार को भी है। जब देंग सत्ता में आए थे, चीन में उदारीकरण का दौर शुरू हो गया था और सारे संसार के उद्योगपति चीन में कारखाने लगा रहे थे। इस संबंध में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि भारत के भी कई बड़े उद्योगपतियों ने सस्ते श्रम की लालच में चीन में कई कारखाने लगाए और वहा उत्पादित सामानों को भारत को निर्यात किया। यह सिलसिला अभी भी जारी है। कानपुर की एक टायर कंपनी ने चीन में ट्रक के टायरों का सस्ते में उत्पादन किया। उसे चीन में श्रम सस्ता मिला और कच्चा माल भी। फिर उस कंपनी ने अन्य देशों के अलावा भारत को भी ट्रक के टायरों का निर्यात किया। यह सच है कि संसार के प्राय: सभी संपन्न औद्योगिक देशों ने चीन में कारखाने लगाए और अपने उत्पादों का निर्यात किया। इससे उन देशो के उद्योगपतियों को भरपूर लाभ मिला। चीन के अधिकतर कारखाने दक्षिणी प्रांतों में लगे हुए हैं। जब चीन में उदारीकरण का दौर शुरू हुआ तब देंग ने ही चीन के निजी उद्योगपतियों से कहा कि वे उत्तर चीन का लोभ छोड़कर दक्षिण चीन जाएं और वहा समुद्र तट पर बसे हुए शहरों में कारखाने लगाएं। वैसे तो साम्यवादी चीन और ताइवान में राजनीतिक रूप से अत्यंत ही कटु संबंध हैं, परंतु दोनो देशों ने आर्थिक संबंधों की हकीकत को समझा है और आज चीन में ताइवान की सैकड़ों बड़ी कंपनिया कार्यरत हैं जो वहा पर सस्ती उपभोक्ता वस्तुओं को बनाकर विदेशों को निर्यात कर रही हैं। उसी तरह जापान, दक्षिण कोरिया और अमेरिका की भी ढेर सारी कंपनिया चीन में धड़ल्ले से उपभोक्ता वस्तुएं और औद्योगिक वस्तुएं बनाकर विदेशों को निर्यात कर रही हैं।


चीन में श्रम के सस्ता होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि वहा हर वर्ष गाव-देहात से लाखों मजदूर शहरों में आते हैं। फिर कुछ महीने वहा के कारखानों में काम करके अपने गाव लौट जाते हैं। ये मजदूर बहुत कम मजदूरी पर काम करते हैं और इनसे साधारण तौर से 10 से 12 घटे प्रतिदिन काम लिया जाता है। इन्हें कोई साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता है और मजदूरी भी बहुत कम मिलती है। धीरे-धीरे चीन में मजदूरों में यह भावना फैलने लगी कि विदेशी कंपनिया उनका भरपूर शोषण कर रही हैं। इस कारण उनमें धीरे-धीरे रोष फैलता गया और उन्होंने हड़ताल करने की ठानी। सबसे पहला विद्रोह ताइवान की एक बड़ी कंपनी ‘फोक्सकोन’ में हुआ। मजदूरों ने अचानक हड़ताल कर दी। यह संसार की इलेक्ट्रानिक सामान बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। यह कंपनी अपने मजदूरों को इतना कम वेतन देती थी कि अनेक मजदूर आत्महत्या करने पर मजबूर हो गए। अकेले ताइवानी कंपनी ‘फोक्सकोन’ में 4 लाख मजदूर काम करते हैं। जब मजदूरों ने कम मजदूरी, पेंशन का अभाव, अधिक घटों तक काम करने की बात की तो इन कंपनियों के मैनेजरों ने उन्हें एक-एक कर निकालना शुरू कर दिया। आर्थिक मजबूरी के कारण ये मजदूर फिर भी काम करते रहे। इसके बाद जब मजदूरों की आत्महत्या की बात फैलने लगी तो उन्होंने एकाएक हड़ताल कर दी। यह हड़ताल महीनों चली। अंत में इन कंपनियों के मालिकों को मजदूरों की मजदूरी में 30 प्रतिशत की वृद्वि करनी पड़ी। जैसे ही यह खबर चीन के अन्य विदेशी कंपनियों के कारखानों में काम करने वाले मजदूरों में फैली, उन्होंने भी हड़ताल कर दी। अधिकतर ऐसी कंपनियों के कारखानों में हड़ताल हुई जो विदेशी थीं।


1949 से आज तक चीन के मजदूरों को हड़ताल का अनुभव ही नहीं था, क्योंकि वहा पर सरकार बहुत ही कठोर कदम उठाकर मजदूरों से काम लेती है और किसी भी हालत में हड़ताल को बढ़ावा नहीं देती है, परंतु जब चीन की सरकार ने यह अनुभव किया कि विदेशी कंपनिया धड़ल्ले से निर्यात कर भरपूर लाभ उठाकर वह पैसा अपने देशों को भेज रही हैं तथा चीन के मजदूरों को नाममात्र की मजदूरी मिलती है तब उन्होंने भी इस मामले में आख मूंद ली। ताइवान की कंपनी में जब हड़ताल हुई और मजदूरों ने 30 प्रतिशत मजदूरी बढ़ाने के लिए प्रबंधकों को बाध्य किया तब दूसरे तटीय प्रांत गुआनडोग में जापानी कंपनियों जैसे टोयोटा और होंडा में अचानक हड़ताल हो गई। उसकी देखादेखी दक्षिण कोरिया की हुंडई कंपनी के कारखानों में भी हड़ताल हो गई। विदेशी कंपनियों ने चीन सरकार से कहा कि वे तो यही सोचकर चीन आए थे कि वहा श्रम सस्ता है और मजदूरों में अनुशासन है, परंतु यदि मजदूर इस तरह हड़ताल का सहारा ले लेंगे तो वे लाचार होकर अन्य देशों में निवेश करने को मजबूर हो जाएंगे।


चीन की सरकार यह जानती है कि मंदी के इस दौर में कोई भी उद्योगपति किसी अन्य देश में निवेश करने की चेष्टा नहीं करेगा। चीन की सरकार ने विदेशी कंपनियों में काम करने वाले मजदूरों से कहा कि उन्हें सच्चाई का सामना करना चाहिए। सारे संसार में मंदी फैली हुई है। ऐसे में यदि हड़तालों के कारण विदेशी कंपनिया चीन से बाहर चली गईं तो चीन में बेरोजगारी का भयानक दौर शुरू हो जाएगा। जो भी हो, फिलहाल चीन की कंपनियों ने, खासकर विदेशी कंपनियों ने हड़ताल पर नियंत्रण तो पा लिया है, परंतु शेर के मुंह में खून लग गया है। चीन के मजदूर कभी भी, कहीं भी हड़ताल कर सकते हैं और यदि व्यापक पैमाने पर हड़ताल हुई तो चीन की सरकार उसे नियंत्रित नहीं कर पाएगी।

Source: Jagran Yahoo

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