Menu
blogid : 133 postid : 1209

अलग-थलग पड़ती कांग्रेस

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

मैं देख सकता हूं कि भारतीय राजनीति की प्रकृति एक शक्ल ले रही है। भ्रष्टाचार का मुद्दा एक ऐसा आकार ले रहा है कि प्रत्येक दल चाहे वह इससे प्रभावित है अथवा नहीं, भयाक्रांत होने जैसी अवस्था में है। कांग्रेस अलग-थलग सी है। उसके साथ गठबंधन में जो दल हैं उनमें से किसी भी दल ने मनमोहन सिंह सरकार अथवा कांग्रेस का बचाव नहीं किया है। मुझे भय है कि विभिन्न रहस्योद्घाटन कहीं वैसा ही माहौल नहीं बना दें जैसा बोफोर्स तोप सौदे में कथित दलाली के आरोपों के चलते राजीव गांधी के खिलाफ बन गया था। राजीव गांधी की सरकार ने इस कलंक पर पर्दा डालने का प्रयास किया था और यहां तक कि संयुक्त संसदीय समिति से जांच भी कराई, जबकि मनमोहन सिंह सरकार ने विभिन्न घोटालों की जांच कराने के लिए वैसी समिति के गठन से इनकार कर दिया है। राजीव गांधी के स्पष्टीकरण ने मामला और बिगाड़ दिया था और बोफोर्स गांवों तक में भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया था। इसके फलस्वरूप, चुनाव के बाद लोकसभा में कांग्रेस की ताकत 197 सांसदों तक ही रह गई थी और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद गंवाना पड़ा था।


मनमोहन सिंह सरकार के समक्ष वैसी स्थिति तो नहीं है। लोक सभा चुनाव अभी भी साढ़े तीन वर्ष दूर हैं। फिर भी 12 के लगभग दलों द्वारा समर्थन वापसी की संभावना से इनकार भी नहीं किया जा सकता। लोकसभा में सदस्यों की कुल संख्या 535 है, जबकि कांग्रेस के सदस्य मात्र 207 हैं। जिन दलों के सदस्य कैबिनेट में मंत्री हैं उन पर दृष्टिपात करें तो शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और करुणानिधि की द्रमुक हर नरम-गरम हालत में कांग्रेस के साथ रहे हैं। सरकार में जो अन्य सहयोगी हैं उनके बारे में अधिक नहीं कहा जा सकता। तृणमूल कांग्रेस (जिसके 19 सदस्य हैं) की नेता ममता बनर्जी मनमौजी हैं। उन्होंने बढ़ती हुई महंगाई को लेकर कांग्रेस की आलोचना भी की है। इन तीनों दलों के समर्थन से भी कांग्रेस की समर्थक संख्या जादुई आंकड़े अर्थात सदन की कुल सदस्य संख्या के आधे तक भी नहीं पहुंचती। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने जनता का ध्यान आकृष्ट किया है। संसद का शीतकालीन सत्र इसे लेकर ठप रहा था। सरकार ने जो शुंगलू समिति गठित की थी उसने भी राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार की पुष्टि कर दी है। फिर भी मैं यह महसूस करता हूं कि 2जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेल एक चुनिंदा वर्ग तक ही चर्चित हैं। जिस बहुचर्चित मुद्दे ने देश को सबसे दूसरे छोर तक लड़खड़ा सा दिया है वह स्विस बैंकों में जमा पैसा है। इसे अन्य घोटालों की तुलना में अधिक विस्फोटक रूप दिया है सर्वोच्च न्यायालय की संबद्धता ने। सर्वोच्च न्यायालय ने उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है जिनमें न्यायालय से हस्तक्षेप करने के लिए?कहा गया है ताकि सरकार को विदेशी बैंकों से काले धन को वापस लाने पर बाध्य किया जा सके। इन याचिकाओं में खातेदारों के नाम जाहिर करने का आग्रह भी किया गया है।


सरकार जकड़न में फंस गई है। उसे कुछ समय पूर्व 26 नाम जर्मनी से प्राप्त हुए थे। बर्लिन के पास सैकड़ों लाभार्थियों के नाम हैं और उसने मांगने पर सभी देशों को उन्हें देने की पेशकश भी की थी। फिर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी यह क्यों कह रहे हैं कि लाभ पाने वालों के नाम जाहिर नहीं किए जा सकते? दोष नई दिल्ली का है, जिसने दोहरे कराधान मार्ग से गुजरने को वरीयता दी, क्योंकि उसने चाहा कि सरकार पर यह बाध्यता रहे कि वह विश्वास का तर्क देकर लाभ नाम जाहिर नहीं करे। फिर ऐसा कोई कारण नहीं बताया गया कि दोहरे कराधान का तरीका क्यों चुना गया?


सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा है कि सरकार को यह सोच नहीं लेना चाहिए कि स्विट्जरलैंड में छिपाया गया धन कर वंचना से अर्जित है। बेईमान उद्योगपति, दागी राजनीतिज्ञ, भ्रष्ट नौकरशाह, क्रिकेटर और फिल्म स्टारों ने अपने निजी खाते विदेशी बैंकों में रखे। इसमें कुछ आश्चर्य नहीं कि भारत में बिना किसी भय के जमकर लूट करने वाले भी हैं। ऐसा संजोया गया धन देश के विदेशी ऋणों से लगभग 13 गुना से भी अधिक बताया जाता है। इस राशि से 45 करोड़ निर्धनों में से प्रत्येक को एक लाख रुपये मिल सकते हैं। आप किसी भी दृष्टिकोण से?आकलन करे, यह विपुल धनराशि देश के लोगों के शोषण अथवा उनके साथ धोखाधड़ी कर जुटाई गई है।


एक बार भारत को काले धन की यह विपुल धनराशि वापस मिल जाए तो वह एक बार में ही अपना समग्र विदेशी ऋण चुका सकता है। समग्र विदेशी कर्ज चुका देने के बाद भी हमारे पास जो अतिरिक्त राशि बचेगी वह कुल विदेशी ऋणों से लगभग 12 गुनी अधिक होगी। यदि यह?अतिरिक्त ब्याज कमाने के लिए?निवेश की जाए तो ब्याज की राशि ही केंद्र सरकार के आर्थिक बजट से अधिक होगी।?इसके साथ ही यदि सारे कर समाप्त कर दिए जाएं तब भी केंद्र सरकार देश को बड़ी आसानी से चला सकेगी। मैं यह बात 2006 के आंकड़ों के आधार पर कह रहा हूं।?तब से और अधिक धनराशि जुटा दी गई होगी।


सौभाग्य से कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने कहा है कि विदेशों में जमा किया गया धन निर्धनों का है और उसे वापस भारत लाया जाना चाहिए। उन्होंने इससे पहले भी एक बार यह कहा था कि उनका परिवार जिस मामले को हाथ में लेता है उसे तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचाता है। राष्ट्र को काले धन के मामले में उनकी पार्टी के प्रयासों के परिणामों की प्रतीक्षा है। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में उसके सहयोगियों ने कहा है कि उनका विदेशों में कोई धन नहीं है। यह बयान कांग्रेस और संप्रग में उसके सहयोगियों पर दबाव के तौर पर काम करेगा और सहयोगियों में से कुछ मनमोहन सिंह सरकार से दूरी बनाने का भी प्रयास कर सकते हैं। सरकार के समक्ष 26 नामों को उजागर करने के अलावा अन्य विकल्प नहीं है। हो सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय संप्रग सरकार को ऐसा करने को बाध्य करे। तब आग में घी पड़ने की स्थिति होगी। स्थिति की प्रथम परिणति मनमोहन सिंह सरकार के पतन के रूप में हो सकती है, क्योंकि सहयोगी उसका साथ छोड़ सकते हैं और फिर खिचड़ी सरकार बन सकती है, जो एक वर्ष से अधिक नहीं चल पाएगी। अंततोगत्वा, देश के समक्ष मध्यावधि चुनाव के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं रहेगा।


[कुलदीप नैयर: लेखक प्रख्यात स्तंभकार हैं]

Source: Jagran Nazariya


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh