Menu
blogid : 133 postid : 1760

लोकतांत्रिक सोच का विकास

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

Nishikant Thakurभारतीय लोकतंत्र को सही दिशा में आगे बढ़ता हुआ देख रहे हैं निशिकान्त ठाकुर


देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। इसके साथ ही वहां आदर्श आचार संहिता भी लागू हो गई है। इसके तहत कई कायरें पर प्रतिबंध भी लग गए हैं। चुनाव आयोग ने अपनी जिम्मेदारी पूरी गंभीरता और तत्परता के साथ संभाल ली है। इसके लिए सभी जगहों के बारे में जानने और वहां की स्थितियों का जायजा लेने की जरूरत नहीं है। फिलहाल पंजाब में जो स्थितियां बनीं और इनमें से जो भी बातें चुनाव आयोग के समक्ष आईं, उन पर आयोग ने जिस तेजी के साथ कार्रवाई की व निर्णय लिए हैं उन पर गौर करना ही काफी होगा। समय से लिए गए आयोग के निर्णयों का आम जनता भी स्वागत कर रही है। यह न केवल व्यवस्था, बल्कि हमारी लोकतांत्रिक सोच और समझ के भी परिपक्वता की ओर बढ़ने का प्रमाण है। इससे यह उम्मीद करना बिलकुल बेमानी नहीं होगा कि यह देश के सही दिशा में बढ़ रहे होने का प्रतीक है। चूंकि कोई भी रचनात्मक प्रयास बहुत जल्दी फलीभूत होता दिखाई नहीं देता है, इसलिए इस प्रक्रिया के भी बहुत जल्दी फलीभूत होने की आशा नहीं की जानी चाहिए।


चुनाव के समय तरह-तरह के व्यवधान हमारे देश में कोई नई बात नहीं हैं। इनमें एक हिस्सा अराजक तत्वों का भी है। ये तत्व हमेशा चुनाव के दौरान गड़बड़ी फैलाते रहे हैं। इसके मूल में बहुत सारी वजहें रही हैं। जब तक चुनाव आयोग ने पूरी तरह सख्ती बरतनी शुरू नहीं की थी, तब तक इन पर काबू पाना किसी के लिए संभव दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन, पिछले दो दशकों में चुनाव आयोग ने इस दिशा में जितनी मेहनत की है, वह प्रशंसनीय है। निस्संदेह उसकी यह मेहनत रंग भी लाई है और अब इसका असर साफ दिखाई देने लगा है। दो दशक पहले तक देश में कुछ जगहों पर तो यह कल्पना ही मुश्किल थी कि बूथ कैप्चरिंग को कभी पूरी तरह रोका जा सकता है। चुनाव के साथ ही बूथ कैप्चरिंग की बात भी आम थी। आज उन क्षेत्रों में भी बूथ कैप्चरिंग की बात सोचना भी किसी के लिए संभव नहीं रह गया है। अगर भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विकास के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह कोई मामूली बात नहीं है। राजनीति पर अराजक तत्वों का प्रभाव रोकने में इसकी बहुत बड़ी भूमिका है। निश्चित रूप से यह कार्य अकेले चुनाव आयोग के लिए संभव नहीं था। चुनाव आयोग अगर ऐसा कर सका तो इसमें सरकार का सहयोग भी कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं है।


सरकार अभी भी चुनाव आयोग को पूरा सहयोग कर रही है। खास कर पंजाब के मामले में यह बात गौर किए जाने की है कि यह सीमावर्ती प्रदेश है। मुश्किल यह है कि पड़ोसी देश भारत में गड़बड़ी फैलाने के लिए हमेशा साजिश रचता रहा है। चुनावों का दौर उसे इसके लिए सबसे मुफीद दिखाई देता है। इस बार के चुनाव में भी वह इसकी साजिश रच रहा था और इसकी भनक हमारी खुफिया एजेंसियों को लग गई। खबर थी कि सीमा पार से प्रशिक्षित आतंकियों की घुसपैठ कराई जा सकती है। यह बात सिर्फ पंजाब के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी राज्यों के लिए भी महत्वपूर्ण थी जिनकी सीमाएं पाकिस्तान से लगती हैं। क्योंकि एक बार कहीं से भी घुसपैठ करा देने के बाद आगे पूरे भारत में कहीं तक भी आतंकियों को पहुंचाना बहुत मुश्किल नहीं रह जाता है। उसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है भारत-पाकिस्तान के लोगों के रूप-रंग में कोई फर्क नहीं होता है। पाकिस्तानी घुसपैठिये भारत में आसानी से अपनी जगह बना लेते हैं, इसीलिए उनकी पहचान कर पाना और उन्हें पकड़ना भारत की सुरक्षा एजेंसियों के लिए काफी मुश्किल होता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि अभी तक पूरे भारत के लिए फुलप्रूफ पहचान पत्र की कोई योजना भी कायदे से क्रियान्वित नहीं की जा सकी है।


यह अच्छी बात है कि इस बार जैसे ही सरकार को यह सूचना मिली, वह सतर्क हो गई। हिंसा फैलाने की उनकी कोशिश अब सफल होने वाली नहीं है, इस बात पर पूरा भरोसा किया जा सकता है। न केवल पंजाब, बल्कि उन सभी राज्यों में सुरक्षा व्यवस्था सतर्क कर दी गई है जहां चुनाव कराए जाने हैं। उधर पंजाब में चुनाव आयोग ने कई दूसरे संदभरें में भी जिस तरह से स्थितियों पर पकड़ बनाई है, वह गौर किए जाने लायक है। आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू कराने के लिए कोई कसर यहां नहीं छोड़ी गई है। हर स्तर से इस बात का पूरा खयाल रखा जा रहा है। पिछले हफ्ते तक तो नकद राशि को लेकर चुनाव आयोग बहुत सतर्क रहा है। भारत के चुनावी इतिहास पर गौर करें तो इसे अनावश्यक नहीं कहा जा सकता है। आम तौर पर ऐसा होता रहा है कि जो राजनेता चुनाव जीतने के बाद पूरे पांच साल तक अपने चुनाव क्षेत्र को भूले रहते हैं, अंतिम दौर में वे पैसे बांटकर वोट खरीद लेते हैं। आयोग ने इस बार इस दिशा में पूरी सतर्कता बरती है।


वैसे इस मामले में सतर्कता की शुरुआत पिछले चुनावों से ही शुरू हो गई थी, लेकिन कई वजहों से यह कुछ क्षेत्रों तक ही सिमट कर रह गई थी और कई वजहों से इस पर पूरी तरह अमल भी नहीं किया जा सका था। लेकिन इस बार आयोग इस मामले में पूरी तरह सतर्क दिखाई दे रहा है। एक निश्चित राशि से अधिक नकदी रखने पर पूरी तरह प्रतिबंध लग गया है। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं निकाला जाना चाहिए कि आयोग कोई तानाशाही कर रहा है, क्योंकि जैसे ही इससे व्यवसायियों के सामने परेशानी खड़ी होने की बात सामने आई, आयोग ने तुरंत इस राशि की सीमा बढ़ा दी। जाहिर है, उसका लक्ष्य किसी दल या प्रत्याशी विशेष या फिर आम जनता को परेशान करना नहीं है। वह तो सिर्फ इतना ही चाहता है कि चुनाव उतनी निष्पक्षता और स्वच्छता के साथ संपन्न कराए जा सकें, जितनी भारतीय लोकतंत्र को सही दिशा देने के लिए जरूरी है।


केवल इतना ही नहीं, कुछ और वजहें भी हैं जिनके नाते अब इस बात पर पूरा विश्वास होने लगा है कि हमारा लोकतंत्र सही दिशा में बढ़ रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि लोकतंत्र की बुनियाद आम जनता है और खुद आम जनता की सोच में बहुत विकास हुआ है। अब लोग पहले की तरह किसी को इसलिए वोट नहीं देते कि वह परिवार से संबंधित है या उसकी पहुंच कहां तक है। अब लोगों के वोट देने का मुख्य आधार किसी प्रत्याशी की उपयोगिता, उसकी कार्यशैली और उसकी योग्यता ही हो गई है। प्रत्याशी के अपने कार्य और व्यक्तित्व को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। यह न केवल सामंती संस्कारों से मुक्त होने, बल्कि लोकतंत्र के सही मायने में प्रभावी होने का संकेत है। यह भी कम महत्वपूर्ण बात नहीं है कि इस बार कोई आसमानी मुद्दा पंजाब में नहीं देखा रहा है। जमीन से जुड़े मुद्दे हैं और आम जनता के विभिन्न वगरें की जमीन से जुड़ी हुई ही मांगें भी हैं। इसका सीधा अर्थ है कि जनता के संकेत सियासी पार्टियां भी समझने लगी हैं और ये लोकतंत्र के सही दिशा में विकास के संकेत हैं।


लेखक निशिकान्त ठाकुर दैनिक जागरण पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh