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सौ वर्ग गज की मौत !

संपादकीय ब्लॉग
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दिल्ली में एक पांच मंजिला इमारत के ढहने से 60 से अधिक लोगों की मौत राजनीतिक और प्रशासनिक लापरवाही का शर्मनाक नमूना है। पहली अंधेर तो यह है कि मौत की यह इमारत अवैध बस्ती में बनी थी और दूसरी यह कि उसे अवैध तरीके से बनाया गया था। इस अवैध बस्ती में तीन मंजिला इमारतें ही बन सकती थीं, लेकिन घूसखोर और लापरवाह अधिकारियों की अतिरिक्त कृपा के चलते वहां पांच मंजिला इमारतें भी निर्मित कर ली गईं। जो इमारत भरभरा कर ढह गई वह कमजोर बुनियाद पर खड़ी थी और एक तरह से हादसे को निमंत्रण दे रही थी, लेकिन संबंधित विभागों ने चेतने से इनकार किया। अब जब इतने लोग मारे गए और शासन-प्रशासन को मुंह छिपाना मुश्किल हो रहा है तो यह जताने की कोशिश हो रही है कि अवैध तरीके से इमारत खड़ी करने और इसके लिए इजाजत देने वालों की खैर नहीं। इसी तरह यह बताने की भी कोशिश की जा रही है कि दुर्घटना की जांच होगी और दोषी लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। इस सबका का कहीं कोई मतलब नहीं।


दिल्ली और शेष देश अब इससे अच्छी तरह परिचित है कि इस तरह के मामलों में जांच के नाम पर या तो समय बर्बाद किया जाता है या फिर लीपापोती की जाती है। कई बार तो ये दोनों काम किए जाते हैं। आखिर इस मामले में जांच के लिए रह ही क्या गया है? क्या यह स्वत:सिद्ध नहीं कि पहले अवैध बस्ती बनने दी गई और फिर वहां मनमाने तरीके से इमारतें खड़ी करने की सुविधा प्रदान की गई? क्या दिल्ली सरकार और केंद्रीय सत्ता को यह साधारण सी बात भी नहीं पता कि इन अवैध कामों के लिए कौन लोग जिम्मेदार हैं? आखिर जांच के नाम पर कितने नाटक किए जाएंगे और कब तक?


अवैध बस्तियों में अवैध इमारतों के निर्माण का चलन पूरे देश में है और वह पूरे शबाब पर है। इस चलन को वही लोग बढ़ावा दे रहे हैं जिन पर उसे रोकने की जिम्मेदारी है। परिणाम यह है कि देश के हर छोटे-बड़े शहर में अवैध बस्तियों का विस्तार हो रहा है। वर्तमान में जितना आसान अवैध बस्तियां बसाना और फिर राजनीतिक लाभ के लिए उनका नियमितीकरण करना है उतना ही आसान भवन निर्माण संबंधी नियम-कानूनों को ठेंगा दिखाना भी है। यही कारण है कि झुग्गी बस्तियों से लेकर विशिष्ट इलाकों तक में अतिक्रमण और अवैध निर्माण रुकने का नाम नहीं ले रहा है।


हमारे नीति-नियंता इससे अच्छी तरह अवगत हैं कि भारत बेतरतीब विकास का उदाहरण बन गया है, लेकिन वे कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं। जब देश की राजधानी में अवैध बस्तियों में अवैध निर्माण की समस्या लाइलाज बन गई है तब फिर इसकी कल्पना सहज ही की जा सकती है कि शेष देश में स्थिति कितनी बदहाल होगी। दिल्ली में हुआ हादसा यह भी बताता है कि भारत किस विकृत तरीके से विकसित हो रहा है। शायद ही कोई इस पर विचार करे कि मुश्किल से सौ वर्ग गज में बनी अवैध इमारत में 200 लोग किस तरह रह रहे होंगे? विडंबना यह है कि महाशक्ति बनने का दावा करने वाले इस देश में करोड़ों लोग इसी तरह रहने को विवश हैं। इसमें संदेह है कि कोई इस विवशता का संज्ञान भी लेगा, क्योंकि सरकारी स्तर पर दड़बेनुमा मकान बनाकर कर्तव्य की इतिश्री करने का सिलसिला कायम है।

Source: Jagran Yahoo

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