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पूर्वी एशिया में भारत का उदय

संपादकीय ब्लॉग
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पूर्वी एशिया के देश भारत के लिए केवल सामरिक और व्यापारिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि प्राचीन सास्कृतिक संबंधों के कारण भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहे हैं। इसलिए जब हाल ही में मनमोहन सिंह जापान, वियेतनाम, मलेशिया तथा दक्षिण कोरिया की यात्रा सफलतापूर्वक करके लौटे तो उनका अभिनंदन ही किया जाना चाहिए।


प्रधानमंत्री ने इन देशों के यात्रियों को भारत में ‘आगमन पर वीजा’ देने की घोषणा कर सकारात्मक संदेश दिया। उन्होंने आठवें भारत आसियान शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत ने हमेशा ही इन देशों के साथ अपनी मैत्री को वरीयता दी है और भारत तथा दस सदस्यीय दक्षिण पूर्वी एशियाई समूह देशों के मध्य साझेदारी उनके लिए एक महत्वाकाक्षी भविष्य का निर्माण करती है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष ही भारत ने विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पाच करोड़ डॉलर के भारत-आसियान कोष की घोषणा की थी। भारत की इसी सकारात्मक नीति के कारण ही 2012 में भारत-आसियान शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है।


विडंबना यह रही कि आजादी के बाद से अधिकाश सरकारें अमेरिका और सोवियत संघ केंद्रित रहीं एक छद्म तुष्टिकरण की नीति के कारण मध्य एशिया और अरब देशों के साथ घाटा और अपमान सह कर भी संबंध बढ़ाने की कोशिशें की जाती रहीं। लेकिन पूर्वी एशिया और सुदूर पूर्व, जो हमारे परंपरागत मित्र और सास्कृतिक सहोदर देश रहे, की हमने लगातार उपेक्षा की। उदाहरण के लिए थाईलैंड में आज भी जीवंत भारत तथा हिंदू संस्कृति के दर्शन होते हैं। वहा के नवीनतम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम है स्वर्ण भूमि। वहा के राजा रामनवम कहे जाते हैं। जिनका नाम है सम्राट अतुल्यतेज भूमिबल। अपने राज्याभिषेक की स्वर्णजयंती के अवसर पर उन्होंने काशी से गंगाजल मंगवाकर अभिषेक करवाया था। संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर कंबोडिया में अंगकोरवाट के नाम से जाना जाता है। इंडोनेशिया में करेंसी नोटों पर आज भी गणेश जी के चित्र अंकित होते हैं। मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद आज भी वहा घर-घर में रामायण और महाभारत के प्रसंग पढ़े, सुने और अभिनीत किए जाते हैं। यह संपूर्ण क्षेत्र कभी स्वर्ण भूमि या हिंद चीन के नाम से जाना जाता था। परंतु जैसे-जैसे भारत की शक्ति और प्रभाव में कमी आती गई इस क्षेत्र से हमारा जुड़ाव और संबंध घटता गया।


भारत का सामरिक और वाणिज्यिक भविष्य चीन और पूर्वी एशियाई देशों के साथ जुड़ा है न कि अमेरिका या यूरोपीय देशों के साथ। डॉ. मनमोहन सिंह की पूर्वी एशियाई देशों तथा जापान और कोरिया की यात्रा से भारत के सामरिक और आर्थिक हित मजबूत हुए हैं। उल्लेखनीय है कि जहा भारत और चीन का वार्षिक व्यापार 80 अरब डालर तक पहुंचा है, जो सर्वाधिक तीव्र गति से बढ़ रहा है, वहीं अमेरिका के साथ यह व्यापार सिर्फ साठ अरब डालर तक ठिठका हुआ है। तुलना में दक्षिण कोरिया जैसे छोटे से देश के साथ भारत का वार्षिक व्यापार 17 अरब डालर से भी आगे बढ़ गया है और वियेतनाम तथा थाईलैंड के साथ क्रमश: दो और तीन अरब डॉलर का व्यापार होता है। म्यामार के साथ यह आकड़ा लगभग ढाई अरब डालर का है। जापान से न केवल हमें सर्वोत्तम टेक्नोलॉजी आसान शतरें पर मिलती है बल्कि हमारा वार्षिक व्यापार 10 अरब डालर से भी अधिक है। यही परिदृश्य बताता है कि यूरोपीय व अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में पूर्वी एशियाई देश कितने महत्वपूर्ण हैं। दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में प्रधानमंत्री ने भारत की तेजी से बढ़ रही विकास दर का उल्लेख करते हुए इन देशों के साथ विज्ञान टेक्नोलॉजी और व्यापारिक रिश्तों के असीम तथा शक्तिशाली भविष्य का भरोसा व्यक्त किया। दोहा विकास दौर की बहुपक्षीय व्यापारिक वार्ताओं का उल्लेख करते हुए इन देशों के उभरते हुए बाजार के प्रति एक उच्च स्तरीय पैनल द्वारा भविष्य नीति बनाने पर भी उन्होंने जोर दिया।


उल्लेखनीय है कि भारत पिछले कुछ वषरें से कंबोडिया, वियेतनाम, लाओस तथा म्यामार में विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करता आ रहा है, जिनमें अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण संस्थानों से लेकर टेलीमेडिसन, टेलीशिक्षा नेटवर्क, राजनयिकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कोर्स, टेक्नोलॉजी प्रशिक्षण के शिखर सम्मेलन, पूर्वी एशियाई देशों में शिक्षा मेले और औद्योगिक मंचों की स्थापना सम्मिलित हैं। भारत से इन देशों में पूंजीनिवेश के लिए भी उद्योगपतियों को प्रोत्साहित किया जाता है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय ‘मीकाग गंगा सहयोग प्रकल्प’ बनाया गया था। जिसके छह देश-भारत, म्यामार, थाईलैण्ड, लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम सदस्य हैं। इस प्रकल्प के अंतर्गत इन छह देशों में व्यापार, पर्यटन, संचार और परिवहन के माध्यम परस्पर जोड़े जाने पर काम हो रहा है। जिसकी सबसे महत्वाकाक्षी योजना भारत से इन छह देशों तक पहुंचने वाला ट्रास एशियन राजमार्ग है।


इसके अतिरिक्त इस दिशा में जो अन्य महत्वपूर्ण मंच सक्रिय है वह आठ सदस्यीय बिम्स्टेक है जिसके सदस्य देशों में भारत, बाग्लादेश, म्यामार, श्रीलंका, थाईलैंड, नेपाल और भूटान हैं। इन देशों में परस्पर व्यापार, पूंजीनिवेश, मछली पालन, कृषि, परिवहन और मानव संसाधन विकास पर विशेष सहयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है। घरेलू राजनीतिक कुहासे तथा शोर के बीच राष्ट्रहित के जो अच्छे कार्य हो रहे हैं उनका अभिनंदन किया जाना उतना ही जरूरी है जितना भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष जारी रखना।

Source: Jagran Yahoo

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