Menu
blogid : 133 postid : 1677

जरूरी है राजनीतिक इच्छाशक्ति

संपादकीय ब्लॉग
संपादकीय ब्लॉग
  • 422 Posts
  • 640 Comments

Nishikant Thakurराजनेताओं में विकास के प्रति कटिबद्धता के साथ ही नैतिक बल भी जरूरी मान रहे हैं निशिकांत ठाकुर


हिमाचल प्रदेश की गिनती देश के छोटे राज्यों में ही होती है। जनजीवन की स्थितियां भी वहा मैदानी प्रांतों की तुलना में कहीं अधिक कठिन हैं। प्रदेश के कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं जहा साल के चार-पाच महीने सपर्क का कोई साधन ही नहीं होता है। शेष दुनिया से ये हिस्से पूरी तरह कटे रहते हैं। प्राकृतिक स्थितिया ही वहा ऐसी होती हैं कि फिलहाल इन हालात से उन हिस्सों को मुक्त कराने का कोई उपाय भी दिखाई नहीं देता है। हो सकता है, अगले एक-दो दशक में उसके लिए कोई उपाय किया जा सके। इसके बावजूद हिमाचल प्रदेश ने विकास के जो सोपान तय किए हैं, वह अपने आपमें सराहनीय हैं। प्रदेश के जिन हिस्सों को भी सड़क मार्ग से जोड़ा जा सकता है, उन सबको जोड़ा जा चुका है। हालाकि अपनी खास तरह की बनावट और स्थितियों के कारण प्राकृतिक आपदाएं इस प्रदेश को अक्सर झेलते ही रहनी पड़ती हैं। इसके चलते सपर्क मागरें पर सकट आते रहते हैं। फिर भी उनके पुनर्निर्माण और उनके जरिये जनता को शेष देश से जोड़ने में कोई खास देर नहीं लगती है। यह विकास के प्रति हिमाचल के नेतृत्व की प्रतिबद्धता का बड़ा प्रमाण है।


हिमाचल ऐसे प्रदेशों में शामिल है जहा खेती के अलावा प्रदेश के अधिकतर इलाकों में बागवानी होती है। सेब के बागान, पशुपालन और पर्यटन से होने वाली आय ही हिमाचल में लोगों की आय और आजीविका का मुख्य आधार है। आम लोगों का मेहनती और अपने कार्य के प्रति ईमानदार होना तो इस प्रदेश की तरक्की का एक बड़ा कारण है ही, सरकार ने भी आय के इन साधनों को अधिक से अधिक विकसित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। हिमाचल के लगभग सभी गावों को सड़क से तो जोड़ा ही गया है, बिजली भी यहा लगभग हर गाव में उपलब्ध है। सबसे अच्छी बात यह है कि बिजली की उपलब्धता की स्थिति यहा देश के सभी प्रदेशों से बेहतर है। बिजली कटौती जैसी स्थिति यहा है ही नहीं। भारत का बड़ा बिजली उत्पादक प्रदेश होने के कारण हिमाचल देश के दूसरे प्रदेशों को भी बिजली देता है। बिजली की निर्बाध आपूर्ति आम जनता के लिए तो मुफीद है ही, उद्योग जगत के लिए भी फायदेमद साबित हो रही है। यही वजह है कि उद्योगों का भी यहा तेजी से विकास हो रहा है। देश भर के उद्यमी धीरे-धीरे अब हिमाचल में रुचि लेने लगे हैं, इसकी एक वजह वहा सरकारी तत्र पर कड़ाई भी है।


हालाकि हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक विकास में एक बड़ी बाधा वहा व्याप्त लालफीताशाही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लाल फीताशाही केवल हिमाचल ही नहीं, बल्कि पूरे देश में व्याप्त है और इससे निपटना कोई आसान काम नहीं है। हालाकि इस पर लगाम कसने के लिए पिछले वषरें में जो काम बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार ने किया है, वह किसी भी प्रदेश के लिए एक उम्दा मिसाल है। उन्होंने रास्ता तो सबको दिखा दिया है, अब बुनियादी सवाल केवल अपनी इच्छाशक्ति का है। हिमाचल में भी ऐसे अफसरों की एक सूची बनाए जाने की बात की गई थी जिनकी छवि सदिग्ध है, लेकिन यह सूची अभी तक अधूरी ही पड़ी हुई है। जाहिर है, इस मोर्चे पर थोड़ी नहीं बल्कि ज्यादा सख्ती की जरूरत है। साथ ही, आम नागरिकों को अपने वाजिब कामों के लिए समस्याओं को झेलना न पड़े, इसके लिए जरूरी है कि सिटिजन चार्टर लाया जाए। सिटिजन चार्टर तो नहीं, पर इसकी जगह सर्विस गारंटी बिल लाने की बात की जा रही है। सर्विस गारंटी बिल की तैयारी पूरी की जा चुकी है और जल्दी ही इसे लागू भी कर दिया जाएगा। इस विधेयक के लागू किए जाने के साथ ही वहा सरकारी विभागों में अलग-अलग कायरें के निस्तारण के लिए समय सीमा निश्चित हो जाएगी। नियत समय के भीतर कार्य न निपटाने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की व्यवस्था भी इस कानून में की जा रही है। देश के कई प्रदेशों में यह व्यवस्था की जा चुकी है। लोकायुक्त की व्यवस्था तो यहा बहुत पहले ही हो चुकी है। हालाकि यह पद पिछले कुछ महीनों से रिक्त चल रहा है, लेकिन सरकार इस पद पर नियुक्ति के सदर्भ में गभीर है और उम्मीद है कि जल्दी ही इस पद पर नियुक्ति हो भी जाएगी। यही नहीं, सरकार की कोशिश है कि इस पद को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके। इसके लिए कुछ अतिरिक्त प्रावधान भी किए जा रहे हैं।


हिमाचल प्रदेश की जनता को मुश्किलों से उबारने के लिए वहा राजनीतिक नेतृत्व ने जैसी इच्छाशक्ति दिखाई है, वह वाकई सराहनीय है। खास तौर से मुख्यमत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल का नजरिया इस मामले में गौरतलब है। वह केवल अधिकारियों या दूसरे मत्रियों की कमियों को ही सामने लाने की बात नहीं करते हैं, वह अपनी गलतियों और खामियों को भी सामने लाए जाने का स्वागत करते हैं। वह कहते हैं कि आलोचना केवल आलोचना के लिए नहीं की जानी चाहिए। अपने किसी स्वार्थ या अपनी कुंठा से प्रेरित होकर किसी की निदा या आलोचना नहीं की जानी चाहिए, लेकिन अगर सभी तरह के दुराग्रहों से मुक्त होकर कोई हमारी आलोचना करता है तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। मेरे कामकाज के तरीके में अगर किसी को कोई खामी नजर आती है तो उसे इस पर बात करनी चाहिए।


वह कहते हैं कि हमारी कमियों पर अगर हमारा ध्यान खुद नहीं जाता है तो दूसरे लोगों को इंगित करना चाहिए। समाज के जागरूक तबके के लोगों की भूमिका यहा अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। वह पार्टी के भीतर मौजूद अपने विरोधियों से भी कहते हैं कि अगर किसी मसले पर नाराजगी है तो आकर बात करें। बेजा दबाव बनाने की कोशिश न करें। समस्या है तो समाधान होगा, लेकिन हम किसी गलत तरह के दबाव में आने वाले नहीं हैं। शायद इसीलिए हिमाचल प्रदेश के भीतर कई तरह की सियासी उथल-पुथल के बावजूद प्रदेश की विकास प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा है।


सच तो यह है कि किसी भी प्रदेश या देश के विकास में राजनीतिक इच्छाशक्ति की भूमिका सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है। अपनी इच्छाशक्ति बनी रहे, इसके लिए सिर्फ प्रदेश के विकास के प्रति अपनी कटिबद्धता ही काफी नहीं है। खास तौर से भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में इस सदर्भ में राजनेताओं का अपना नैतिक बल बहुत महत्वपूर्ण होता है। धूमल इस मामले में मजबूत दिखाई देते हैं। वह केवल अपने कामकाजी साथियों से ही कड़ी मेहनत और ईमानदारी की अपेक्षा नहीं करते हैं, बल्कि स्वय भी इसका उदाहरण प्रस्तुत करते हैं और यही वजह है कि उनके सहयोगियों को भी इस मामले में उनका साथ देना पड़ता है। अच्छी बात यह है कि अधिकतर लोग खुशी से साथ देने के लिए तैयार दिखाई देते हैं। देश के सभी प्रांतों को इस मामले में हिमाचल प्रदेश से सीख लेनी चाहिए। आम जनता की तमाम समस्याएं तो केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति से ही हल हो सकती हैं।


लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh