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उमंग, उल्लास और ऊर्जा को भारत के कोने-कोने में पहुचांने में यहां के विविध त्यौहारों का अहम स्थान है. वर्ष की शुरुआत में ही खिचड़ी से लेकर अंत तक क्रिसमस मनाने वाले इस देश में ऐसे कई त्यौहार आते हैं जो एकता के परिचायक भी बनते हैं. इन्हीं में से एक है कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्यौहार दिपावली. भारत में हिन्दुओं के इस सबसे खास त्यौहार को सभी धर्मों के लोग समान हर्षोल्लास से मनाते है. दीपावली को असत्य पर सत्य की और अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाया जाता है.
दीपावली मर्यादा, सत्य, कर्म और सदभावना का सन्देश देता है. सबके साथ मिलकर मिठाई खाने से आपसी प्रेम को बढ़ाने का संदेश मिलता है तो नए कपड़ो में सजे नन्हें-नन्हें बच्चों को देख लगता है काश हम भी बच्चें होते. पटाखों और दीपों की रोशनी में नहाया वातावरण धरती पर आकाश के होने की गवाही देता नजर आता है.
दीपावली शब्द से ही मालूम होता है दीपों का त्यौहार. इसका शाब्दिक अर्थ है दीपों की पंक्ति. ‘दीप’ और ‘आवली’ की संधि से बने दीपावली में दीपों की चमक से अमावस्या की काली रात भी जगमगा उठती है. हिन्दुओं समेत सभी धर्मों के लोगों द्वारा मनाएं जाने के कारण और आपसी प्यार में मिठास घोलने के कारण इस पर्व का समाजिक महत्व भी बढ़ जाता है. इसे दीपोत्सव भी कहते हैं. ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधेरे से ज्योति अर्थात प्रकाश की ओर जाइए’ कथन को सार्थक करता है दीपावली.
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे. राजा राम के लौटने पर उनके राज्य में हर्ष की लहर दौड़ उठी थी और उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाएं . तब से आज तक यह दिन भारतीयों के लिए आस्था और रोशनी का त्यौहार बना हुआ है. इसे दीवाली भी कहते हैं. भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है. दीवाली यही चरितार्थ करती है.
दिवाली मनाने के पिछे कई कहानियां है पर सब कहानियों से मिली सीख यहीं समझाती है कि असत्य की उम्र सत्य से कम होती है. कृष्ण के भक्तगण मानते है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था. इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाएं और इसके साथ इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धनवंतरि प्रकट हुए थे. हिन्दुओं के साथ अन्य धर्मों के लिए भी यह दिन शुभ माना गया है जैसे जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है तो सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था.
दशहरे के बीस दिन बाद मनाया जाने वाला इस त्यौहार के लिए लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं. दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का त्यौहार आता है. बाजारों की रौनक देखनी हो तो इस मौके को कभी न गवाएं. चारो तरफ बाजार का वातावरण चहल-पहल और उमंग में नहाया होता है. दिवाली से पहले धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है इसलिए हर कोई कुछ न कुछ इस दिन जरुर खरीदता है. धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है. इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं. अगले दिन दीपावली आती है. इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं. बाज़ारों खील-बताशे , मिठाइयां, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश , आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें से सजी होती हैं. दीपावली के दिन सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयां व उपहार बांटने लगते हैं. दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है. पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियां जलाकर रखते हैं. अमवस्या की रात में दियों की रोशनी मन मोह लेती है. रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियां जगमगा उठती है. पटाखों और मिठाईयों के साथ अमावस्या की रात में दिन से भी ज्यादा रोशनी भर दी जाती है.
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन कैसे करें
दिवाली पर लक्ष्मी पूजन पूरे विधि-विधान से करा जाना बेहद शुभ माना जाता है ताकि धन की देवी प्रसन्न रहे और घर में खुशियों का माहौल बना रहे. इस वर्ष दीपावली का पर्व शुक्रवार, 05 नवम्बर 2010 की अमावस्या, चित्रा व स्वाति नक्षत्र, प्रीती योग मे मनाया जायेगा जो अपने आप में एक पावन मुहूर्त है. इस बार 60 साल बाद दो अमावस्याओं वाला योग बन रहा है. दीपावली पर अमावस्या दोपहर बाद 1:02 बजे शुरू होगी जो अगले दिन गोवर्धन पूजा तक सुबह 10:22 मिनट तक रहेगा. लक्ष्मी पूजन के लिए शुभ मुहूर्त होगा शाम 6 बज कर 10 मिनट से लेकर 8 बज कर 06 मिनट तक.
दीपावली पर मां लक्ष्मी व गणेश के साथ सरस्वती मैया की भी पूजा की जाती है. दीपावली के दिन दीपकों की पूजा का विशेष महत्व हैं. इसके लिए दो थालों में दीपक रखें. छः चौमुखे दीपक दोनो थालों में रखें. छब्बीस छोटे दीपक भी दोनो थालों में सजायें. व्यापारी लोग दुकान की गद्दी पर गणेश लक्ष्मी की प्रतिमा रखकर पूजा करें. इसके बाद घर आकर पूजन करें. पहले पुरूष फिर स्त्रियां पूजन करें. दिवार पर लक्ष्मी जी की फोटो लगा कर सामने एक चौकी रखकर उस पर मौली बांधें फिर जल, मौली, चावल, फल, गुढ़, अबीर, गुलाल, धूप आदि से विधिवत पूजन करें. लक्ष्मी जी के सामने अपनी क्षमता के अनुसार पैसे रखें और व्यापारी लोग अपने बही खाते भी रख सकते है. और निम्न मंत्र से मां लक्ष्मी की वंदना करें :
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया.
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्वदर्चनात॥
इसके बाद मां की आरती सहपरिवार गाएं. पूजा के बाद खील बताशों का प्रसाद सभी को बांटे.
पटाखों से रहे सावधान
दिवाली दीपों का त्यौहार है. जममगाते दीपों के साथ पटाखों के मेल से यह और भी सुनहरा हो जाता है लेकिन कई बार पटाखे किसी अप्रिय घटना की वजह बनते है, इसलिए ध्यान रखे. पटाखे न सिर्फ शरीर के लिए हानिकारक है बल्कि यह वातावरण को भी दुषित करते हैं. बीते कुछ सालों में दीपावली के समय जिस तरह से वायु प्रदुषण की समस्या आ रही है उससे लोगों को समझना होगा कि दीपावली दीपों और खुशियों का त्यौहार है न कि आवाज, शोर और प्रदुषण का.
दीपावली के इस शुभ त्यौहार को कुछ असामाजिक कुप्रथाओं ने भी जकड़ रखा है जैसे जुआ और तेज आवाज के पटाखे. धन की देवी की पूजा के दिन ही लक्ष्मी को दांव पर लगाने का पाप करने वालों में अब अमीर घर के लोग भी शामिल होते है और उनका तर्क होता है कि इस दिन जुआ खेलना शास्त्रों में लिखा है. लेकिन वह इस जुएं को गलत मायनों में ले लेते है. सिर्फ आपसी प्यार और मेलजोल को बढ़ाने के लिए जो खेल शुरु हुआ था उसे आपाराधिक रुप देकर पाप के भोगी न बनें.
इस दीपावली कुछ ऐसा करें ताकि आपके साथ किसी और की भी जिन्दगी रोशन हो सकें. पटाखों में रुपए जलाने से बेहतर है वही पैसे की जरुरतमंद को दें. गरीबों में मिठाई बांट उनकी जिन्दगी में मिठास घोल मानवता के प्रति कुछ कर्म कीजिए. साथ ही पटाखों का कम उपयोग कर प्रकृति के बैलेंस को बनाएं रखें.
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