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26 साल पहले इंदिरा गांधी को कट्टरपंथी मानसिकता वाले उनके ही दो अंगरक्षकों ने गोलियों से छलनी कर दिया। उनकी मौत हर किसी के लिए बहुत बड़ा सदमा थी – मेरे लिए तो और भी अधिक। 1977 में मैं उनकी ही प्रेरणा से राजनीति में आया था। पंथनिरपेक्षता इंदिरा गांधी केसर्वोच्च आदर्शों में शामिल थी। उन्होंने हमेशा कहा कि सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ अगर मैंने काग्रेस की लड़ाई को जरा सा भी कमजोर किया तो आने वाली पीढि़यां मुझे माफ नहीं करेगीं। 1980 में इंदिराजी की अगुवाई में काग्रेस की वापसी हुई। अमेरिका के नेतृत्व में पूरी दुनिया की भारत विरोधी ताकतें जुटी रहीं कि इंदिरा गांधी और भारत को कमजोर किया जाए, लेकिन उन्होंने कभी भी सिद्धातों से समझौता नहीं किया। पाकिस्तान की फौजी हुकूमत ने अमेरिका की शह पर पंजाब में सिख उग्रवादियों को मदद देकर भारत को कमजोर करने की कोशिश की, लेकिन इंदिराजी को उनके सिद्धांतों से डिगाया नहीं जा सका।
अपनी पंथनिरपेक्ष सोच को उन्होंने राजनीतिक आचरण की धुरी बनाए रखा। पंजाब के उग्रवाद के वक्त गृह मंत्रालय की सूचना थी कि सिख आतंकवादियों ने देश की सबसे बड़ी नेता को खत्म करने की साजिश रची है। इंदिराजी को सरकारी स्तर पर यह सलाह दी गई कि उनकी सुरक्षा से सिखों को हटा लिया जाए, लेकिन उन्होंने साफ कहा कि जिस देश की आजादी की लड़ाई की बुनियाद ही पंथनिरपेक्षता पर बनी है वहा कभी भी धार्मिक कारणों से विभेद नहीं किया जाएगा। इंदिरा जी के मन में अपने सिद्धांतों के प्रति इतनी इज्जत थी कि उन्होंने अपनी जान के खतरे को जानते-समझते हुए भी पंथनिरपेक्षता के स्वतंत्रता संगाम के आदर्शो को संभाल कर रखा और एक क्षण के लिए भी इस आदर्श पर आंच नहीं आने दी। उन्होंने कट्टरता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया और न ही वह उसके आगे झुकीं। 31 अक्टूबर 1984 को उनकी निर्मम हत्या कर दी गई। आज 26 साल बाद उन्हें और उनके सिद्धांतों को याद करना जरूरी है, क्योंकि ऐसा करके ही हम देश की राजनीति और समाज को मजबूत कर सकते हैं।
कृपा शंकर सिंह
Source: Jagran Yahoo
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