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आत्मविश्लेषण का समय

संपादकीय ब्लॉग
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Nishikant Thakurपाकिस्तान व आतंकवादियों के मामले में सख्ती बरतना आवश्यक मान रहे हैं निशिकान्त ठाकुर


पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के अलावा बिहार के मधुबनी और दक्षिण भारत में चेन्नई से छह आतकवादियों के पकड़े जाने तथा भारी मात्रा में हथियार एव विस्फोटक सामग्री बरामद होने से देश के कई शहरों में तबाही तो टल गई, लेकिन साथ ही यह भी पता चला कि हम कितने असुरक्षित और खतरनाक माहौल में जी रहे हैं। निश्चित रूप से यह हमारे खुफिया तंत्र और पुलिस की बड़ी कामयाबी है। इसके लिए इनकी प्रशंसा तो की जानी चाहिए, लेकिन आतंकियों के सरगना के पकड़ से बाहर निकल जाने से यह बात भी जाहिर होती है कि आतंकियों का खुफिया तंत्र हमसे कहीं अधिक मजबूत और तेज है। बेशक पुलिस ने इस कार्रवाई से जुड़ी सूचनाओं को टॉप सीक्रेट के तौर पर सहेजने की पूरी कोशिश की, लेकिन ऐसा वह कर नहीं सकी। इसके पीछे सिर्फ मीडिया में खबरों का लीक होना भर नहीं, बल्कि कुछ और बातें भी हैं। वे अन्य बातें क्या हैं और उनके मूल में निहित कारण क्या हैं, यह एक अलग मसला है और इसका पता लगाया जाना भी जरूरी है। यह जानने के लिए पुलिस को किसी खुफिया तंत्र के इस्तेमाल की नहीं, अपितु स्वय आत्मविश्लेषण की जरूरत है। यह समय न सिर्फ पुलिस एव सुरक्षा एजेंसियों, बल्कि हमारी पूरी व्यवस्था के लिए ही आत्मविश्लेषण का है।


इस कार्रवाई के चलते खुली आतकवादियों की साजिशों से यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गई है कि पाकिस्तान किसी भी कीमत पर पूरे भारत में तबाही फैलाने पर तुला हुआ है। जगजाहिर है कि पाकिस्तान को भारत से सीधी लड़ाई में कई बार मुंह की खानी पड़ी है। इससे उपजी कुंठाओं से उबर पाना अभी तक उसके लिए सभव नहीं हो सका है। यह बात भी पाकिस्तान के राजनीतिक आकाओं से लेकर फौज और वहा समानातर सरकार चला रही आइएसआइ तक सबको अच्छी तरह पता है कि सीधी लड़ाई में वे भारत से कभी जीत नहीं सकते। इसीलिए वे हमेशा छद्मयुद्ध करते रहते हैं। कभी सीमा पर चोरी-छिपे आतंकवादियों की घुसपैठ कराते हैं तो कभी सीमित समय के वीजा पर अपने नागरिकों को भारत भेजकर उन्हें हमेशा के लिए यहीं टिका देने के इंतजाम करते हैं। कभी हवाला के जरिये विभिन्न माध्यमों से उन्हें धन पहुंचाते हैं और कभी जाली करंसी छापकर भेज देते हैं। हथियारों से लेकर विस्फोटक सामग्री तक खतरनाक चीजों की आपूर्ति करते हैं।


इस कार्रवाई में भी हथियारों और विस्फोटक सामग्रियों के अलावा दो लाख रुपये की जाली करंसी भी पकड़ी गई है। इसके पहले भी कई बार पाकिस्तानी आतंकवादियों से भारी रकम की जाली करंसी पकड़ी जा चुकी है। इस जाली करंसी का उपयोग वे केवल अपनी बेजा जरूरतें पूरी करने के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के बाजारों में मुद्रा की स्थिति बिगाड़ने के लिए भी करते हैं। इसके पीछे उनकी मशा वस्तुत: भारत की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचाना है। वे भारत में केवल आतक, भय और अशाति ही नहीं फैलाना चाहते, हमारी अर्थव्यवस्था को भी बिगाड़ने के लिए अपनी ओर से पूरी साजिश कर रहे हैं। इसके लिए वे जाली करंसी का उपयोग तो कर ही रहे हैं, कई और कार्रवाइयों को भी अंजाम दे रहे हैं। कश्मीर में अशांति फैलाना और देश के विभिन्न शहरों में आम भारतीय नागरिकों के अलावा विदेशी पर्यटकों पर हमले करना उनकी इसी साजिश का हिस्सा है। ध्यान रहे कि पर्यटन भारत की आय का एक बड़ा जरिया है और एक जमाने में कश्मीर विदेशी पर्यटकों का भारत में सबसे लोकप्रिय स्थल रहा है। इस तरह से वे पर्यटकों के मन में भारत के प्रति असुरक्षा की भावना उत्पन्न करना चाहते हैं। हमें उनकी इस साजिश से सतर्क रहना होगा। भारतीय अर्थव्यवस्था को चौपट करने की साजिशों के पीछे वास्तव में पाकिस्तान की सोची-समझी साजिश है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है, वह किसी से छिपी नहीं है। यह स्थिति कोई आज से नहीं, बल्कि लबे अरसे से है। यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान के राजनीतिक या फौजी शासकों ने अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कभी गभीर प्रयास ही नहीं किए। उनकी पूरी कोशिश केवल अपनी आम जनता को बरगलाने की रही है और बरगलाने का यह काम वे केवल भारत विरोध के माध्यम से कर रहे हैं। वे न तो अपनी जनता की बुनियादी जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं और न ही उसे रोजगार दे पा रहे हैं। औद्योगिक-सामाजिक विकास की दिशा में तो उन्होंने कभी सोचने की जरूरत ही नहीं समझी। ऐसी दशा में अपने देश की जनता को वे केवल भारत विरोध की अफीम के जरिये चुप रखने की कोशिश में ही जुटे रहते हैं। उन्हें मालूम है कि दूसरे देशों की दया-कृपा के आधार पर प्राप्त धन से वे भारत में आतक फैलाने की अपनी साजिश को भी बहुत दिनों तक चला नहीं सकते हैं। इसीलिए वे भारत में जाली करंसी के प्रसार की पूरी कोशिश करते हैं।


पाकिस्तान की जो साजिशें सफल होती हैं, उनके मूल में केवल उसकी तेजी ही नहीं, हमारी अपनी कुछ कमजोरिया भी हैं। खास कर सरकारी तत्र का भ्रष्टाचार हमारी व्यवस्था में लगा सबसे खतरनाक दीमक है। यह सामान्य बात नहीं है कि तमाम उपायों के बावजूद अभी भी हमारे देश में थोड़ा-बहुत खर्च करके किसी का भी सरकारी पहचान पत्र बन जाता है। सरकार की तमाम सतर्कता और प्रचार-प्रसार के बावजूद वास्तविक भारतीय नागरिकों के लिए यहा मामूली पहचान पत्र बनवाना भी कई बार मुश्किल होता है। जबकि पाकिस्तान व बांग्लादेश के घुसपैठिये मामूली रकम खर्च करके सारे पहचान पत्र बनवा लेते हैं। इसी कार्रवाई में पता चला कि देश की राजधानी दिल्ली में ही खराद फैक्टरी के नाम पर अवैध हथियारों की फैक्टरी चल रही थी। यह एक बड़ा सवाल है कि अगर फैक्टरी सचालकों के साथ हमारे सरकारी तत्र में शामिल कुछ लोगों की मिलीभगत नहीं थी तो जाने कब से यह फैक्टरी यहा कैसे चल रही थी? पुलिस की इस कार्रवाई के पहले क्या सबधित अन्य विभागों के लोगों ने इस बारे में किसी जाच की जरूरत नहीं समझी?


सच तो यह है कि भ्रष्टाचार अब सिर्फ एक मुद्दा नहीं रह गया है। यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुका है। हमारे जिम्मेदार नेताओं को चाहिए कि सबसे पहले तो वे सरकारी तत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को जैसे भी सभव हो खत्म करने के पुख्ता उपाय करें। साथ ही, राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर राजनीति करने से बाज आएं। पाकिस्तान और आतंकवादियों के मामले में भी अब हमें सख्ती बरतनी होगी। यह अनिवार्य हो गया है कि हम ढुलमुल नीति अपनाने के बजाय अंतरराष्ट्रीय मचों पर पाकिस्तान का पुरजोर विरोध करें। इसके लिए अब किसी प्रमाण की जरूरत नहीं रह गई है। जरूरत सिर्फ मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की है और वह एक न एक दिन भारत के राजनीतिक प्रमुखों को अपने भीतर पैदा करनी ही पड़ेगी। बेहतर होगा कि वे समय से इस नीति पर अमल करें और इस कोढ़ से मुक्ति पाएं।


लेखक निशिकान्त ठाकुर दैनिक जागरण पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं


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