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करवाचौथ पर्व – पति के दीर्घायु का पर्व

संपादकीय ब्लॉग
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करवाचौथ पर्वविवाह एक ऐसा बंधन है जो आस्था, विश्वास और प्रेम पर टिका होता है. एक ऐसा बंधन जिसमें लड़का-लड़की न सिर्फ एक जिंदगी के लिए बल्कि जन्म-जन्म के लिए बंध जाते हैं. सातो जन्मों की कसमें खाकर अपना पूरा जीवन किसी एक के लिए समर्पित कर देना बेहद अहम फैसला होता है लेकिन इस नाजुक से प्रेम के बंधन को मजबूती देने वाले ऐसे कई मौके होते हैं जो इसे मजबूती प्रदान करते हैं. ऐसे ही मौकों में से एक होता है करवाचौथ का व्रत. दांपत्य जीवन से जुड़ी परंपराएं व त्यौहार आपसी प्रेम तथा सामंजस्य पर बल देते हैं.

स्त्रियां करवाचौथ का व्रत पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं. यह व्रत अलग-अलग क्षेत्रों में वहां की प्रचलित मान्यताओं के अनुसार मनाया जाता है, लेकिन इन मान्यताओं में थोड़ा-बहुत अंतर होता है पर हर मान्यता का आधार पति की दीर्घायु ही होती है. अक्सर दांपत्य जीवन में बहुत सी ऐसी छोटी-छोटी बातें होती हैं जो मन को बेहद सुकून देती हैं और इसी आपसी प्रेम को दीर्घायु बनाने के लिए भारतीय विवाहित युवतियां करवाचौथ का व्रत रखती हैं.

कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाएं सुहाग की अमरता और वैभव के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं. इस व्रत में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा की जाती है. महिलाओं द्वारा निर्जला रहकर कठिन व्रत किया जाता है.

व्रत की विधि

इस दिन सुबह जल्दी स्नानादि करने के बाद यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- ‘मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये.’

karvachauthपूरे दिन निर्जल रहते हुए व्रत को संपूर्ण करें और दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें. चाहे तो आप पूजा के स्थान को स्वच्छ कर वहां करवा चौथ का एक चित्र लगा सकती हैं जो आजकल बाजार से आसानी से कैलेंडर के रूप में मिल जाते हैं. हालाकि अभी भी कुछ घरों में चावल को पीसकर या गेहूं से चौथ माता की आकृति दीवार पर बनाई जाती है. इसमें सुहाग की सभी वस्तुएं जैसे सिंदूर, बिंदी, बिछुआ, कंघा, शीशा, चूड़ी, महावर आदि बनाते हैं. सूर्य, चंद्रमा, करूआ, कुम्हारी, गौरा, पार्वती आदि देवी- देवताओं को चित्रित करने के साथ पीली मिट्टी की गौरा बनाकर उन्हें एक ओढ़नी उठाकर पट्टे पर गेहूं या चावल बिछाकर बिठा देते हैं. इनकी पूजा होती है. ये पार्वती देवी का प्रतीक है, जो अखंड सुहागन हैं. उनके पास ही एक मिट्टी के करूए(छोटे घड़े जैसा) में जल भरकर कलावा बांधकर और ऊपर ढकने पर चीनी और रूपए रखते हैं. यही जल चंद्रमा के निकलने पर चढ़ाया जाता है.

करवा चौथ की कथा सुनते समय महिलाएं अपने-अपने करूवे लेकर और हाथ में चावल के दाने लेकर बैठ जाती हैं. कथा सुनने के बाद इन चावलों को अपने पल्ले में बांध लेती हैं और चंद्रमा को जल चढ़ाने से पहले उन्हें रोली और चावल के छींटे से पूजती हैं और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं. कथा के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासूजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें. रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें. इसके बाद पति से आशीर्वाद लें. उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें.

करवा चौथ कथा

हालांकि करवाचौथ से जुड़ी कई कहानियां भिन्न भिन्न प्रदेशों में अलग अलग हैं लेकिन इन कहानियों में अधिक अंतर नहीं है. जैसा कि पहली कथा के अनुसार बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी. एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी नामक पर्वत पर गए. इधर द्रोपदी बहुत परेशान थीं. उनकी कोई खबर न मिलने पर उन्होंने कृष्ण भगवान का ध्यान किया और अपनी चिंता व्यक्त की. कृष्ण भगवान ने कहा- बहना, इसी तरह का प्रश्न एक बार माता पार्वती ने शंकरजी से किया था. पूजन कर चंद्रमा को अर्घ्य देकर फिर भोजन ग्रहण किया जाता है. सोने, चाँदी या मिट्टी के करवे का आपस में आदान-प्रदान किया जाता है, जो आपसी प्रेम-भाव को बढ़ाता है. पूजन करने के बाद महिलाएँ अपने सास-ससुर एवं बड़ों को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेती हैं.

करवाचौथ पर्वतब शंकरजी ने माता पार्वती को करवा चौथ का व्रत बतलाया. इस व्रत को करने से स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा हर आने वाले संकट से वैसे ही कर सकती हैं जैसे एक ब्राह्मण ने की थी. प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण था. उसके चार लड़के एवं एक गुणवती लड़की थी.

एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा. उसने व्रत को विधिपूर्वक किया. पूरे दिन निर्जला रही. कुछ खाया-पीया नहीं, पर उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी.

भाइयों से न रहा गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया. एक भाई पीपल की पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी. तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो. बहन ने भोजन ग्रहण किया.

भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु हो गई. अब वह दुःखी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं. उनसे उसका दुःख न देखा गया. ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुःख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला. अब तू वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा.

उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई. इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए. द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए. तभी से हिन्दू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं.

इसी तरह दूसरी कथा के अनुसार एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गाँव में रहती थी. एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया. स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया. वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा.

karva-chauthउसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया. मगर को बांधकर यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ.

यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता. इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी. सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी.

व्रत मंत्र

करवाचौथ के दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌.
प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥

कल कब होगा चंद्रोदय

इस बार के करवाचौथ को चंद्रोदय कल मंगलवार सांय 7.40 पर होगा. जो हो सकता है कुछ स्थानों पर सेकेंड से मिनट के अंतर पर दिखे.

आज का आधुनिक भारत भी इस पर्व की सुन्दरता से खुद को दूर नहीं रख पाया है और इसीलिए यह पर्व अब पूरे उत्तर भारत के साथ अन्य राज्यों में भी पूरे धूमधाम से मनाया जाता है. और आज पत्नियां ही नहीं बल्कि पतिदेव भी अपनी पत्नियों के लिए यह व्रत करते हैं और अपने रिश्ते में विश्वास के बने रहने की प्रार्थना करते हैं.

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