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अन्ना की अनकही कहानी

संपादकीय ब्लॉग
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पांच अप्रैल से अन्ना हजारे सुर्खियों में बने हुए है। बौद्धिक तबके में उन पर चर्चा व बहस छिड़ी है और तरह-तरह के आरोप व लांछन लगाए जा रहे है। लोकपाल बिल की रूपरेखा तैयार करने के लिए संयुक्त मसौदा समिति का गठन अंतहीन बहस के बाद हुआ है। अन्ना हजारे उन लोगों के हमलों का शिकार बने है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ एक कड़ा कानून बनने से इसलिए डरे हुए है कि उनकी असीम शक्तियों पर अंकुश लग जाएगा। जिस तरह चौतरफा हमले हो रहे है, मैं खुद को भी अन्ना के साथ इन हमलों के बीच में पाता हूं। बीच में इसलिए क्योंकि मैं भी इंडिया अगेंस्ट करप्शन का संस्थापक सदस्य हूं और राष्ट्रीय स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग में इस छोटे किंतु प्रभावी समूह के साथ हूं। एक ऐसे समय जब मजबूत लोकपाल बिल को निशाना बनाने के पुरजोर प्रयास किए जा रहे है और ऐसा करने वालों में नागरिक समाज के कुछ जाने-पहचाने चेहरे भी शामिल है, मुझे लगता है कि अब विस्तार से बताने का समय आ गया है कि अन्ना हजारे की मुहिम कैसे परवान चढ़ी।


आरटीआइ कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मुझे फोन किया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में शामिल होना चाहूंगा। जब उन्होंने विस्तार से बताया कि वह राष्ट्रमंडल खेल आयोजन समिति के दिग्गजों के खिलाफ एफआइआर दायर करना चाहते है तो मैं सहमत हो गया। हम दोनों एक-दूसरे के काम की सराहना करते है और संभवत: अरविंद जानते थे कि मैं उनके साथ काम करना पसंद करूंगा। मुझे भी यह विचार जंच गया। मैं कॉफी पीते हुए महज बहसबाजी करने वालों के बजाए ऐसे लोगों को पसंद करता हूं जो वास्तविक धरातल पर काम करते हों।


अरविंद ने नागरिक समाज के कुछ जाने-पहचाने और भरोसेमंद लोगों से भी संपर्क साधा। वह प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश और पूर्व पुलिस ऑफिसर किरण बेदी से भी मिले। किरण बेदी ने सलाह दी कि समूह को स्वामी रामदेव का समर्थन भी हासिल करना चाहिए। मेरी जानकारी के मुताबिक किरण बेदी ने स्वामी रामदेव से बात की और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी मुहिम की सराहना करते हुए उनसे अभियान से जुड़ने का आग्रह किया। राष्ट्रमंडल खेल भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान में स्वामी रामदेव के जुड़ने से इसमें नई जान पड़ गई। किंतु यह तो शुरुआत भर थी। इस बीच, हम श्री श्री रविशंकर और दिल्ली के आर्कबिशप के पास पहुंचे। दोनों समर्थन के लिए सहमत हो गए। इसके बाद मैंने पंजाब में बाबा सींचेवाल से बात की और वह भी समर्थन के लिए तैयार हो गए। हम महज आध्यात्मिक नेताओं की ही नहीं, बल्कि समाज के तमाम वर्गो के ईमानदार चेहरों से इस अभियान से जुड़ने की अपील कर रहे थे। संख्या बढ़ती चली गई।


इन प्रयासों के बीच अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगी बड़े मनोयोग से एफआइआर का मसौदा तैयार करने में जुटे थे। मैं उनके काम को देखकर हैरान था। 370 पेज की एफआइआर तैयार थी, जिसे जंतर-मंतर पुलिस स्टेशन के एसएचओ को सौंप दिया गया। जंतर-मंतर पर मिला जनसमर्थन हमारी उम्मीद से कहीं बढ़कर था। पिछले कुछ सालों में मैंने दिल्ली के बीचोंबीच स्थित जंतर-मंतर पर इतनी बड़ी रैली नहीं देखी। हमें उन लोगों को इसका श्रेय देना नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने इस मुहिम को परवान चढ़ाया। स्वामी रामदेव के भारत स्वाभिमान संगठन ने दिल्ली पहुंचने का आह्वान किया और बड़ी संख्या में उनके अनुयायी वहां पहुंचे। दिल्ली के आर्कबिशप ने भी भारी संख्या में अपने अनुयायियों को वहां भेजा।


जंतर-मंतर रैली में स्वामी रामदेव प्रमुख वक्ता के तौर पर मौजूद थे। अन्ना हजारे भी मंच पर उपस्थित थे। वहीं पर अन्ना हजारे ने स्वामी रामदेव से कहा कि वह पिछले कई बरसों से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे थे, किंतु अब जाकर उन्हे लगा है कि यह संघर्ष तार्किक परिणति पर पहुंचेगा। अन्ना ने उत्साह से बताया कि किस तरह वह महाराष्ट्र में छह मंत्रियों और चार सौ से अधिक अधिकारियों को भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने अनथक आंदोलन से हटवा चुके है। कुछ सप्ताह के भीतर ही, श्री श्री रविशंकर ने एक प्रेस कांफ्रेंस में इस अभियान को समर्थन देने की घोषणा की। भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत खड़ा हो चुका था।


यह भ्रष्टाचार के खिलाफ अभूतपूर्व अभियान का खुला भाग था। इसका छिपा हुआ भाग टीवी कैमरों के फोकस में नहीं आया। इस बीच अरविंद केजरीवाल का दफ्तर एक युद्ध कक्ष में तब्दील हो चुका था। उन्होंने जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने में दिन-रात एक कर दिए। इसमें बार-बार संशोधन किए गए। उन्होंने तमाम आगंतुकों का स्वागत किया, अनगिनत फोन सुने, एसएमएस किए और फेसबुक तथा इंटरनेट पर टिप्पणियां लिखीं। उन्होंने बैनर और नारेबाजी की तख्तियां तैयार कीं और अनेक बैठकों को संचालित किया। भारी संख्या में स्वयंसेवकों ने इसमें भाग लेकर सराहनीय कार्य किया। आप समझ ही रहे होंगे कि यह आसान काम नहीं था। यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि जिस व्यक्ति, अरविंद केजरीवाल, ने आगे बढ़कर इसका नेतृत्व किया, वह ऊंचे मानकों व मूल्यों वाला था।


इस बीच शांति भूषण, प्रशांत भूषण और संतोष हेगड़े की सलाह से जन लोकपाल बिल का मसौदा तैयार करने पर काम चलता रहा। किरण बेदी, स्वामी अग्निवेश और कभी-कभी मैंने भी इसमें सुझाव दिए किंतु इसमें असल मेहनत उन्हीं की रही। इसीलिए जब संयुक्त समिति का मुद्दा उठा तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने उन्हीं लोगों को प्रतिनिधित्व दिया, जो इसका मसौदा तैयार करने में शामिल थे।


वापस जन एफआइआर पर आएं तो जो एफआइआर जंतर-मंतर के एसएचओ ने हमसे स्वीकार की थी, उसे दर्ज नहीं किया गया। ऐसा संभवत: पहली बार हुआ कि जनता द्वारा एफआईआर दर्ज करने के विचार से कुछ शक्तिशाली लोग खुश नहीं थे। हम अदालत में अपील करने की सोच ही रहे थे कि वह पुलिस को एफआइआर दर्ज करने के निर्देश दे, किंतु इसी बीच हमारा ध्यान आदर्श हाउसिंग घोटाला और 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले जैसे बड़े मुद्दों पर केंद्रित हो गया। रामलीला ग्राउंड में दो बड़ी रैलियों से भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में हमारा मनोबल बढ़ा। जनमानस भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़ा हुआ है।


[देविंदर शर्मा: लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं]

साभार: जागरण नज़रिया

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