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देश भर में नशे के काले कारोबार में लगे गिरोहबाजों का जाल किस हद तक फैल चुका है और ये किस-किस तरह से अपने कारोबार को अंजाम दे रहे हैं इसका अंदाजा हाल ही में हिमाचल के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में हुई धरपकड़ से लगाया जा सकता है। एक छापेमारी में यहां करोड़ों रुपये की नकली और नशीली दवाएं पकड़ी गई हैं। इन दवाओं को एक कुरियर कंपनी के मार्फत विदेशों में भेजा जाता रहा है। हिमाचल से लेकर दिल्ली, मुंबई और विदेशों में अमेरिका व यूरोप तक इनका जाल बिछा हुआ था। नशे के सौदागर कितने शातिराना तरीके से काम कर रहे हैं इसका पता इस बात से चलता है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग को तो इसकी जानकारी तक नहीं थी, जो कि राज्य में होने वाली जनस्वास्थ्य संबंधी किसी भी तरह की गतिविधि की देखरेख के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इसकी जानकारी सबसे पहले केंद्रीय राजस्व प्रवर्तन निदेशालय को तब हुई जब उन्होंने मुंबई और दिल्ली में दवा कंपनियों पर दबिश दी और वहां बद्दी के बागवानियां स्थित दवा उद्योग का सैंपल हासिल किया। नशे के सौदागरों की गिरफ्त में केवल हिमाचल ही नहीं, पंजाब और जम्मू-कश्मीर तो काफी पहले से हैं। अभी तक वहां नशे के कारोबार का जो रूप उभर कर सामने आया है, वह इससे बहुत भिन्न है। अब तक की पूरी जानकारी के मुताबिक पंजाब और जम्मू-कश्मीर में नशीले पदार्थो का कारोबार सीधे तौर पर नशीले पदार्थो के ही रूप में होता है और वहां नशीले पदार्थ अधिकतर बाहर से लाए जाते हैं। इन राज्यों में इक्का-दुक्का कहीं दवाओं का प्रयोग नशे के तौर पर होता हो तो वह अलग बात है, लेकिन वहां से कहीं और नशीली दवाओं या नशे की खेप भेजे जाने की बात सामने नहीं आई है।
हिमाचल की स्थिति बिलकुल उलट है। यहां न केवल नशे का कारोबार बहुत गहरे तौर पर छिपकर हो रहा है, बल्कि नशीली दवाएं यहां से बाहर भी भेजी जा रही हैं। सबसे शर्मनाक स्थिति यह है कि सारा कारोबार एक ऐसी कंपनी द्वारा किया जा रहा है, जिसे सरकार ने दवाएं बनाने के लिए लाइसेंस दिया था। यह अलग बात है कि अब स्वास्थ्य विभाग ने संबंधित कंपनी का लाइसेंस निलंबित करने की कार्यवाही शुरू कर दी है, लेकिन यह सब तब शुरू किया गया जब कि बहुत देर हो चुकी है। हैरत यह है कि जो जानकारी सीधे तौर पर हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग को होनी चाहिए थी वह उसे न होकर केंद्रीय राजस्व प्रवर्तन निदेशालय यानी डीआरआइ को हुई। डीआरआइ ने इसकी सूचना हिमाचल प्रदेश में राज्य दवा नियंत्रक के प्रवर्तन निदेशालय को दिया और इसके बाद दोनों ने मिलकर छापेमारी की। इसके बाद यह मालूम हुआ कि टैनस्टार फार्मा नाम से पंजीकृत यह कंपनी चार अन्य फर्जी कंपनियों के नाम से भी दवाएं बना रही थी तथा कई दवाएं तो यह ऐसी बना रही थी जिन्हें बनाने के लिए इसके पास लाइसेंस ही नहीं था। दूसरी तरफ कुरियर कंपनी इन नशीली दवाओं की खेप पर मिल्क बैग, ग्लूकोज सैशे और एलोवेरा प्रोडक्ट के स्टीकर लगाकर बाहर भेजती थी। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ऐसे ही किसी तरह ये दवाएं देश के भी विभिन्न हिस्सों में पहुंचाई जा रही हों और युवा पीढ़ी को बर्बाद कर रही हों।
देश के भीतर इनके प्रयोग की आशंका इसलिए भी बहुत है, क्योंकि यहां आमतौर पर दवाएं डॉक्टर की पर्ची के बगैर ही बिकती हैं। साथ ही परंपरावादी समाज होने के नाते हमारे यहां युवा वर्ग नशीले पदार्थो का प्रयोग अधिकतर छिपे तौर पर ही करता है। चूंकि नशे का प्रयोग हमारे समाज के बड़े हिस्से में अभी बहुत खराब समझा जाता है, इसलिए सामाजिक दबाव से बचे रहने के लिए दवा या अन्य छिपे हुए रूप में नशे का प्रयोग करना युवा वर्ग को अधिक मुफीद लगता है। यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है कि हमारे पूरे देश में कई ऐसी दवाएं खुलेआम बिकती हैं जो कि कानून प्रतिबंधित हैं। यही नहीं, हमारे यहां कई ऐसी दवाओं पर अभी प्रतिबंध लगाया ही नहीं गया है जो कई विकसित देशों में पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। डॉक्टर के पर्चे के बगैर दवाएं बेचना तो यहां आम बात है ही, दवाओं की दुकानदारी के मामले में भी कई तरह की गड़बडि़यां हैं। दवा की अधिकतर दुकानें वास्तव में उन नियमों पर खरी नहीं उतरतीं जिनका अनुपालन उनके मामले में हर हाल में होना ही चाहिए।
आमतौर पर सिर्फ खानापूरी की जाती है। इसका पता इस बात से भी चलता है कि बद्दी में जाने कितने दिनों से यह काला कारोबार चल रहा है और संबंधित विभाग को इस बात की जानकारी तक नहीं है। उसे यह जानकारी तब हुई जब उसे डीआरआइ से सूचना मिली। जाहिर है, जिम्मेदार लोगों ने कभी इस संबंध में जांच-पड़ताल की जरूरत ही नहीं समझी कि विभाग ने कंपनियों को जिस काम के लाइसेंस दिया है और वे वही काम कर रही हैं या कुछ अन्य। इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि कई काम संबंधित अधिकारियों और तथाकथित कारोबारियों की आपसी समझ से होता रहा हो। यह एक दुखद सत्य है कि आपसी समझ की हमारे देश में कोई सीमा नहीं है। यह कहीं से शुरू होकर कहीं तक जा सकती है और यहां तक कि बहुत बड़ी आबादी के लिए जानलेवा भी साबित हो सकती है। नशीली दवाओं का यह काला कारोबार न केवल हिमाचल प्रदेश, बल्कि पूरे भारत की साख खराब करने वाला है। यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हमारी बदनामी का कारण बन सकता है और इसका खमियाजा हमारे देश के वाजिब उद्योगपतियों व व्यापारियों को भुगतना पड़ सकता है, क्योंकि जब कुछ लोगों के चलते किसी देश की साख खराब होती है तो इस कारण सही लोगों के लिए भी अपने बनाए हुए सामान का निर्यात करना मुश्किल हो जाता है। सच तो यह है कि इसे सिर्फ नशे के कारोबार और भारत व दूसरे देशों के युवाओं को बर्बाद करने ही नहीं, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था के खिलाफ एक गहरी साजिश के तौर पर देखा जाना चाहिए। इन काले कारनामों के शिकार सबसे ज्यादा हमारे सीमावर्ती राज्य ही हो रहे हैं। पड़ोसी देश पाकिस्तान से नशीले पदार्थो की खेप जम्मू-कश्मीर और पंजाब के रास्ते भारत आने का खुलासा पहले ही हो चुका है।
नकली नोटों के कारोबार का मामला भी इससे बहुत भिन्न नहीं है। देश के विभिन्न हिस्सों में फैले भिन्न-भिन्न तरह के आतंकवाद को भी इससे अलग करके देखना ठीक नहीं होगा। गहरे स्तर पर इन सबके तार आपस में जुड़े हुए लगते हैं। मामले का ठीक तरह से पर्दाफाश हो सके इसके लिए जरूरी है कि इन सभी चीजों को जोड़कर एक साथ देखा जाए। केवल डीआरआइ और दवा नियंत्रक के प्रवर्तन निदेशालय के भरोसे ही बैठे नहीं रहा जाना चाहिए। देश की सभी सतर्कता एजेंसियों का समन्वय कर इसके लिए एक नेटवर्क बनाया जाना चाहिए ताकि पूरे मामले की सघन जांच कर इसकी तह तक पहुंचा जाए और वास्तविक जिम्मेदारों को सलाखों के पीछे पहुंचा कर देश में शांति स्थापित की जा सके।
लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण में हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के स्थानीय संपादक हैं
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