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पिछले दिनों पाकिस्तान के सिंध प्रांत की विधानसभा के एक सदस्य अपना देश हमेशा के लिए छोड़ कर भारत में बस गए। राम सिंह सोढो ने भारत से अपना त्यागपत्र भेज दिया, जिसमें लिखा है कि स्वास्थ्य बेहतर नहीं है और डॉक्टर ने दो साल आराम की सलाह दी है। सिंध विधानसभा के अध्यक्ष ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। हम जानते हैं कि राम सिंह के त्यागपत्र का कारण सेहत की खराबी नहीं हो सकता। हो सकता है कि उनकी सेहत वास्तव में खराब हो, लेकिन यह देश छोड़ने का कारण तो नहीं हो सकता। राम सिंह पहले ऐसे राजनेता नहीं हैं, जिन्होंने अपना देश छोड़ कर भारत का रुख किया है। इससे पहले भी चार सदस्य भारत में बस चुके हैं। सबसे पहले देश छोड़ने वाले पाकिस्तान के पहले विधिमंत्री जगन्नाथ मंडल थे। इसके बाद संसद सदस्य लक्ष्मण सिंह ने वर्ष 1973 में देश को अलविदा कहा और हमेशा के लिए भारत में आबाद हो गए। राम सिह से पहले महरूमल जगवाणी भी भारत को अपना चुके हैं। वह सिंध विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं।
पाकिस्तान छोड़ने वाले राम सिंह देश की जानी-मानी राजनीतिक हस्ती थे। वर्ष 1985 के चुनाव में भी वह सिंध प्रांतीय विधानसभा के सदस्य बने थे, जिसके बाद वह प्रातीय सरकार में सलाहकार के पद पर रहे। पाकिस्तान के संविधान के अनुसार सब नागरिक बराबर हैं। संविधान कहता है कि सभी धर्मो के लोग एक जैसे हैं, सबके अधिकार बराबर हैं और सबको धर्म की मुकम्मल आजादी है। ये बातें सविधान में तो हैं, लेकिन सच क्या है, यह देखना जरूरी है। अगर यह सब सच होता या इस पर अमल होता तो लोग इस तरह अपना देश नहीं छोड़ते जिस तरह राम सिह या इन जैसे कई लोग छोड़ चुके हैं। ये हालत इसलिए पैदा होते है, क्योंकि पाकिस्तान में कोई भी देश के संविधान की परवाह नहीं करता।
आतंकवाद, चरमपंथ के साथ देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। दो-तीन मामले हैं जिनको लेकर हिंदू परेशान हैं। एक तो हिंदुओं को लगता है कि उनकी सुरक्षा के इंतजाम नहीं है। हिंदुओं को शिकायत है कि राज्य उनकी सुरक्षा के लिए कुछ नहीं करता। मेरे विचार से यह शिकायत सही भी है। पाकिस्तान के ईशनिदा कानून और दूसरे कानूनों के दुरुपयोग का डर भी हिंदुओं के सिर पर सवार रहता है। एक रिपोर्ट आई है कि पाकिस्तान से रोजाना एक हिंदू परिवार दूसरे देश में प्रवास कर रहा है। अगर इस बात को सच न भी माना जाए तो भी यह सच जरूर है कि देश के 60 प्रतिशत हिंदू देश छोड़ने की सोचते जरूर हैं।
हिंदू समूहों की त्रासदी यह है कि वे देश में रहना चाहते हैं, लेकिन अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित हैं। दूसरी ओर भारत उन्हे कबूल नहीं करता। कई सियासी लोगों से हमने सुना है कि देश में हमें कोई पूछता नहीं और भारत भी कहता है कि तुम्हें हम कोई सुविधा नहीं दे सकते। हम आखिर जाएं तो कहा जाएं। यह कहा जा सकता है कि अगर पाकिस्तान और भारत के बीच वीजा प्रणाली आसान होती तो कई हिंदू देश छोड़ चुके होते। देश के हिंदू भी इतने ही देशभक्त और प्रतिबद्ध हैं जितने मुसलमान। फिर भी अल्पसंख्यक होने की वजह से वे इस डर में जीते हैं कि कहीं उन पर यह आरोप न लग जाए कि वे भारत से जुड़े हैं। यही कारण है कि एक हिंदू सदस्य ने मुझसे यहां तक कह दिया कि हमारे बारे में हिंदी अखबार में लिखना भी मत। हमारा देश पाकिस्तान है, भारत से हमारा क्या नाता। सच है कि कोई विधानसभा सदस्य हो या आम हिंदू, वह अपने देश से ही प्यार करता है, लेकिन उस हिंदू सदस्य की बात से मुझे लगा कि उसे डर है कि कहीं उसे जासूसी या किसी अन्य आरोप में फंसा न दिया जाए।
पाकिस्तान में अधिकांश हिंदू सिंध और बलूचिस्तान प्रातों में बसते हैं। दोनों प्रातों में उन समूहों की हालत अच्छी नहीं है। दोनों प्रातों के कई शहरों से अपहृत हुए हिंदू आज भी वापस घर नहीं लौट सके है। बलूचिस्तान में काम करने वाले मानवाधिकार आयोग के निदेशक सईद अहमद का कहना है कि प्रात में अपहरण के कारण हिंदुओं में ज्यादा डर है। इस कारण ही वे तेजी से देश से पलायन कर रहे हैं। अधिकांश हिंदू भारत जाते है। अगर वहां नहीं जा पाते तो दूसरे देश में जाने की कोशिश करते हैं, जिसके लिए वे अपनी संपत्ति सस्ते दामों में बेच देते है। सिंध प्रात में जैकब आबाद जिले में रहने वाले हिंदू भी मुश्किल में हैं। यह वह जिला है, जहा तीन साल के बच्चों का भी अपहरण हो चुका है। वहा से भी रिपोर्ट है कि काफी हिंदू भारत चले गए हैं। जो शेष रह गए हैं वे भी जाने की बातें कर रहे हैं।
मेरा मानना है कि दोनों देशों की जनता को खुली छूट होनी चाहिए कि वे जहा जाना चाहे, वहां जा सकते हैं। अगर इस तरह का माहौल हो तो किसी को देश छोड़ने की जरूरत ही पेश नहीं आएगी। दोनों देशों के लोग एक-दूसरे के पास जाएंगे, मेलमिलाप का एक बहाना होगा, लेकिन दुर्भाग्य है कि दोनों देशों ने जनता के लिए इतने कठिन नियम बना दिए है कि एक-दूसरे के देश आने-जाने की सोच भी नहीं पाते। दूतावास अधिकारियों को भी शायद ऐसा ही प्रशिक्षण मिलता है जो खुफिया एजेंसियों के अधिकारियों को दिया जाता है। यानी जो भी पाकिस्तान से भारत जाए, उसे जासूस समझा जाए। दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास का भी यही हाल होगा। इस सवाल का जवाब मुश्किल नहीं है कि पाकिस्तान और भारत की विदेश नीतियों से जनता में प्यार बढ़ता है या नफरत? देश जनता से बनते हैं। जनता को संतुष्ट करने के लिए सब-कुछ करना चाहिए। दुश्मनी के सिवा भी कुछ सोचा जाना चाहिए।
[इब्राहीम कुंभर: लेखक पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार हैं]
Source: Jagran Nazariya
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