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वाराणसी हमले का एक राहतकारी पहलू यह है कि इसमें मानवीय क्षति कम हुई। यकीनन वाराणसी के गगा घाट पर, वह भी महाआरती के समय और शीतला मदिर के पास एकत्रित भारी समूह को निशाना बनाने का अर्थ ही खून और विनाश का भयानक दृश्य पैदा करना था। आतकवादी ऐसा नहीं कर पाए। किंतु यह केवल सयोग है। इसमें हमारी सुरक्षा व्यवस्था या नागरिक सतर्कता की भूमिका नहीं है। हमारे लिए चिता का विषय यह है कि 6 दिसबर और उसके आसपास पूरी सुरक्षा व्यवस्था के लिए स्वाभाविक सतर्कता और चुस्ती का समय होता है। खुफिया एजेंसियों ने पहले ही सतर्क कर दिया था कि आतंकी संगठन हमला कर सकते है। फिर भी आतंकी हमला करने में कामयाब हो गए। इस हमले की जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिद्दीन नामक सगठन ने ली है। 19 सितबर को दिल्ली में जामा मस्जिद के सामने पर्यटक बस पर हमला करने के बाद भेजे गए ईमेल में इसने साफ तौर पर आगे ऐसे हमले की धमकी दी थी। वास्तव में यह आतकवादियों के सीधे रडार पर रहने वाले देश के लिए सामान्य चिता की बात नहीं है कि साफ मडराते खतरे के बावजूद हमला हुआ और हमला करने वाला सगठन बाकायदा इसकी धमकी देने के बाद ऐसा करने में सफल हो गया।
सामान्यत: यह कहा जा सकता है कि भीड़भाड़ वाले इलाके में कोई भी आतकवादी सगठन कूड़े के डिब्बे में चुपचाप किसी समय विस्फोटक डाल सकता है। किंतु हम यह न भूलें कि बेंगलूर से लेकर सूरत, अहमदाबाद तक में कूड़े के डिब्बे में विस्फोट हुए एव विस्फोटक बरामद हुआ। इसलिए वाराणसी के घाट पर कूड़ेदानी सुरक्षा व्यवस्था की प्राथमिकता में होनी चाहिए थी। अगर हमारी सुरक्षा एजेंसिया 6 दिसबर के एक दिन बाद वाराणसी जैसे संवेदनशील शहर में मगलवार की महाआरती को ध्यान में रखते हुए कूड़े के डिब्बे को निगरानी से बाहर रखती है तो इसे हमें सुरक्षा विफलता कहना ही होगा।
अयोध्या मामले पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को आतकवादी समूह भारत में साप्रदायिक तनाव के रूप में परिणित करने की कोशिश कर रहे हैं। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी की भारत में उपस्थिति एव उनके आतकवाद विरोधी बयान भी आतकवादियों के लिए अपनी उपस्थिति का अहसास कराने तथा अंतरराष्ट्रीय प्रचार पाने की दृष्टि से प्रेरित करने वाली थी। हमले के कुछ ही घटों पूर्व सरकोजी ने मुंबई में आतकवादी हमलों में मारे गए लोगों को श्रद्धाजलि देते हुए आतकवादियों के खिलाफ सख्त शब्दों का प्रयोग किया था। यह सब सुरक्षा एजेंसियों के ध्यान में था। गृह सचिव जी.के. पिल्लै का बयान था कि आतकवादी हमलों के खतरों को देखते हुए चौकसी बढ़ा दी गई है। खासकर अमेरिका में पार्सल बमों की साजिश का खुलासा होने के बाद पूरे देश में रेड एलर्ट जारी किया गया था।
सुरक्षा सफलता किसे कहते हैं इसके जवाब में हम अमेरिका का उदाहरण रख सकते हैं। पिछले महीने ही बमो का पार्सल अमेरिका को निशाना बनाकर यमन से भेजा गया था। कंप्युटर के प्रिटर में बम इस प्रकार रखे गए थे कि किसी भी स्केनर की पकड़ में नहीं आते। लेकिन खुफिया तत्र की सतर्कता का ही नमूना था कि बमों को पकड़ लिया गया। इसी वर्ष अभी तक सार्वजनिक हुई सूचनाओं के अनुसार ऐसे कम से कम छह बड़े हमलों की साजिशें विफल हो गईं। न्यूयॉर्क शहर के टाइम्स स्क्वायर को ध्वस्त करने के लिए तो कार में विस्फोटक भरकर आतकवादी फरार भी हो चला था। लेकिन न केवल दुबई जाने वाले विमान से वह पकड़ा गया, बल्कि योजना भी ध्वस्त हो गई। यह सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी ही थी कि विमान के अंदर उसकी पहचान होने के बाद रनवे से विमान को वापस लौटाया गया। ऐसे और उदाहरण हमारे सामने हैं जिनके बाद यह साबित करने की आवश्यकता नहीं कि सतत और सतर्क खुफिया निगरानी, उनकी सूचनाओं के वस्तुनिष्ठ विश्लेषण और तत्परता से की गई कार्रवाइयों से बड़ी आतकवादी साजिशो को भी विफल किया जा सकता है। अमेरिका इसका अकेला उदाहरण नहीं है। जर्मनी में अलकायदा के आतकवादियों द्वारा लगातार हमले की साजिशों की खबरें आती रहती हैं। लेकिन वे सफल नहीं हो पाते। क्यों? ऐसी ही खबरें ब्रिटेन और फ्रास से भी हैं।
तो भारत का गृह मत्रालय, उससे जुड़ी खुफिया एजेंसिया एव राज्य की पुलिस व्यवस्था, जिसमें आतकवाद विरोधी दस्ता भी शामिल है, यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि इसमें सुरक्षा विफलता का पहलू नहीं है। कल्पना करिए जो विस्फोटक नहीं फट पाए यदि वे भी फट जाते तो कितनी हानि होती? प्रधानमत्री कह रहे हैं कि यह शैतानी आतकी ताकतो से लड़ने के हमारे प्रण को कमजोर करने का प्रयास है जिसमें आतकवादी सफल नहीं होंगे। पूरे देश की यही कामना है कि आतकवादी इसमें सफल न हों, लेकिन उन्हे आशिक ही सही सफलता मिल रही है तो इसके पीछे हमारी विफलता तो है ही।
देश प्रधानमत्री, गृह मत्री एव आतकवाद से सघर्ष करने वाली सारी एजेंसियों से यह जानना चाहेगा कि आखिर इंडियन मुजाहिद्दीन नामक यह राक्षस समूचे सुरक्षा तत्र को धता बताते कब तक हमें लहूलुहान करता रहेगा। अगर यह सिमी जैसे प्रतिबधित सगठन का ही नया रूप है तो इसे जड़मूल से नष्ट करने के रास्ते में बाधाएं क्या हैं? चाहे जन और धन की जितनी हानि हो, हम एक देश के तौर पर इस प्रकार के हमलों की आशका के साये में नहीं जी सकते। हमे आतक के साये से बाहर आना होगा। प्रमुख देशों ने अपनी सफलताओ से साबित कर दिया है कि यह असभव नहीं है।
[अवधेश कुमार: लेखक वरिष्ठ पत्रकार है]
Source: Jagran yahoo
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