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तानाशाही और अधिनायकवादी शक्तियों का एशिया की राजनीति पर बढ़ता प्रभुत्व एक ऐसा खतरा है जिसे किसी भी परिस्थिति में अनदेखा नहीं किया जा सकता है. एशिया में अधिनायकवादी शक्तियों का हस्तक्षेप जिस तरह बढ़ता जा रहा है उसे देखते हुए लगता है कि 2020 तक लोकतंत्र और पीछे छूट जाएगा. एशिया में लोकतंत्र के मुक्त आसमान को बचाने के लिए फिलहाल भारत तैयार नहीं है. जबकि गैर सरकारी और अन्य ताकतों के साथ मिलकर अधिनायकवादी ताकतें जिस तरह से अपने आपको फैला रही हैं उसके बाद लोकतंत्र के लिए जगह और कम हो जाएगी. मोटे तौर पर देखें तो अगले दशक के अंत तक इस्लामी कंट्टरपंथी सरकारें, साम्यवादी और फौजी तानाशाह अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को बेमानी बनाते हुए एशिया पर राज करेंगे.
इंडियन डिफेंस रिव्यू के संपादक भरत वर्मा ने अपने आलेख “खतरों का चक्रव्यूह” में इस मसले को बड़े ही जोरदार अंदाज में पेश किया है. उनका कहना है कि जब 2011 में जब अमेरिकी सेना अफगानिस्तान से निकलेगी तो लोकतांत्रिक तत्वों को आगे बढ़ाने का मौका भारत को मिलेगा. लेकिन इस्लामिक ताकतें पाकिस्तानी सेना की सहानुभूति हासिल करके पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहती है. यदि वे इसमें कामयाब हुए तो अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए भारत ने जो 1.5 अरब डालर का निवेश किया है उसे बचाना कठिन होगा. मगर इसे बचाने की चिंता भारत में दिखाई नहीं देती.
अफगानिस्तान में मुख्यत: दो बातों पर गतिरोध है-वहां गुरिल्ला युद्ध में विरोधियों का मनोबल बहुत ऊंचा होता है. इसलिए वहां लड़ने के लिए उच्च तकनीक संपन्न हथियार और बेहतरीन स्तर के जूते होने चाहिए. दूसरी ओर ऐसे हालात में लंबे समय तक लड़ने के लिए पश्चिम के पास रिजर्व में सैनिकों की बड़ी संख्या नहीं है. पिछले नौ सालों में युद्ध लड़ते-लड़ते वे थक चुके हैं. वहां की जमीनी हकीकत यह है कि तालिबान और अल-कायदा जैसे इस्लामिक कट्टरपंथियों से मुकाबला करने के लिए एशियाई सैनिकों जैसी प्रेरणा और पश्चिम के उन्नत हथियारों की जरूरत है. अफगानिस्तान की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने वालों को सबसे पहले पाकिस्तान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
लेखक का मानना है कि भारत और अमेरिका तब तक वहां नहीं जीत सकते, जब तक दोनों देश पाकिस्तान को एक बड़ा रोड़ा मानने से बचते रहेंगे. उसके बाद अफगानिस्तान में शांति के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान की मदद से किए जा रहे चीनी हस्तक्षेप को रोका जाए. उसी तरह भारत को सुरक्षित बनाने के लिए चीन और पाकिस्तान के संयुक्त खतरे को दूर करने की जरूरत है. इत्तफाक से दोनों मामलों में पाकिस्तान एक बड़ा मसला है.
वैश्विक स्थिति में निरंतर परिवर्तन हो रहा है. सुरक्षा का मामला पहले से कहीं अधिक संवेदनशील हो चुका है. ऐसे में भारत को अपने हितों की रक्षा के प्रति विशेष सावधानी बनाए रखने की जरूरत को रेखांकित करता यह आलेख निश्चित रूप से विचारणीय है.
Source: Jagran Yahoo
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