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अप्प दीपो भव

संपादकीय ब्लॉग
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अप्प दीपो भव यानी अपना प्रकाश स्वयं बनो यह प्राचीन उक्ति यही कहती है कि ज्ञान के लिए इधर-उधर भटकने की अपेक्षा यदि व्यक्ति खुद के अन्दर प्रवेश कर ले तो उसे वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है. देश में आजकल तमाम छद्म साधू वेशधारी तथाकथित बाबाओं की पोल खुल रही है. इनमें से अधिकांश ने सिर्फ एक चोला ओढ़ रखा है जबकि वे केवल और केवल भोगी जीव हैं जो अपने हितों को साध रहे होते हैं. लेखक व जाने-माने फिल्मकार महेश भट्ट ने इस मुद्दे पर अपने विचार इस आर्टिकल में बड़े ही सारगर्भित अंदाज में पेश किया है.

 

परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्कारों से भरे-पूरे भारतवर्ष में गुरुओं की कोई कमी नहीं है. धर्म, सभ्यता, संस्कार, ईश्वर और उसकी सत्ता को लेकर हर धर्मगुरु की अपनी अलग ही सोच और बखान करने का तरीका है. हर गुरु अपने ही तरीके से समझते हैं इस जीवन का मतलब और मकसद. उनकी सोच का प्रचार-प्रसार छोटी-छोटी चैरिटेबल संस्थाओं से शुरू होकर भ्रष्ट और खतरनाक मत तक पहुंच जाता है. उनका यह खेल खत्म होता है हत्या या सेक्स स्कैंडल पर. धर्म शर्मसार तो तब हो जाता है जब कुछ धर्मगुरुओं का चेहरा सेक्स रैकेटियर के तौर पर सामने आता है. हालांकि देश के आम मानस पर गुरु और उनके मत का प्रभाव सुबह की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाता है. इन धर्मगुरुओं का कुछ ऐसा ही प्रभाव विश्व परिदृश्य में भी नजर आता है.

 

हाल ही में दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध धर्मगुरु दक्षिण भारतीय फिल्मों की एक अभिनेत्री के साथ आपत्तिजनक स्थिति में कैमरे के कैद कर लिए गए. जब उनकी ये भद्र तस्वीरें टेलीविजन पर प्रसारित की गई तो उनको शत-शत नमन करने वाले अनुयायी आवेश में उनके ही खून के प्यासे बन गए. संस्कृत शब्द गुरु का अर्थ होता है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला व्यक्ति. इस बात को बिलकुल नहीं नकारा जा सकता कि देश में ऐसे असाधारण गुरु भी मौजूद हैं जो लोगों की बेचैनी, व्याकुलता और कुंठा का समाधान साधारण तरीके से करने की क्षमता रखते हैं. साथ ही ये असाधारण गुरु लोगों के जीवन को कठिन बनाने वाली चुनौतियों का समाधान भी कर रहे हैं.

 

गुरु बनने के लिए न तो किसी विद्यालय में शिक्षा की जरूरत होती है और न ही किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता होती है. इसके साथ ही उनके दावों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए पड़ताल की भी कोई व्यवस्था अभी तक नहीं है. गुरुओं के दावे भी ठीक उन राजनीतिज्ञों की तरह ही होते हैं जिनकी सत्यता और असत्यता का प्रमाण वे खुद ही होते हैं. कोई भी व्यक्ति कभी भी खुद को गुरु घोषित करने के लिए स्वतंत्र है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमारे देश में कोई भी व्यक्ति धर्मगुरु होने का दम भर सकता है. ये धर्मगुरु अपने दावों का प्रमाणित करने के लिए ऐसी कहानियों का जाल बुनते हैं कि देश के आम आदमी का साधरण और निष्कपट मानस उसमें उलझता चला जाता है. इसके बाद गुरु बात करने लगते हैं अपने अलौकिक, परालौकिक और ईश्वरीय अनुभवों की और कुछ ही समय में बन जाते हैं रहस्मयी शक्तिओं के स्वामी.

 

वर्तमान ही नहीं इतिहास भी गवाह है कि शक्ति और सत्ता से उन्मत्त गुरुओं ने अपने ही उपासकों, अनुयायियों और चाहने वालों का अलग-अलग तरीकों का इस्तेमाल कर शोषण किया है. आडंबरी बाहरी आवरण की ओट में इन्होंने अपनी वास्तविकता को समाज से छुपाए रखा और पवित्र होने का दिखावा करते रहे. ऐसे गुरुओं का अनुकरण करने से पहले हमें साधु के वेश में पर्णकुटीर में पहुंचे रावण को याद कर लेना चाहिए. रामायण में रावण ने सीता का अपहरण करने से पहले खुद को साधु के भगवा आवरण में ही छुपाया था.
हर मानवीय रिश्ते में शक्तिशाली द्वारा कमजोर का शोषण करने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है.

 

लेकिन जब धर्म, संस्कृति और परंपराओं के नाम पर शक्तिशाली गुरु अपने कमजोर अनुयायी का शोषण करने पर उतारू हो जाए तो इसे ही वीभत्स अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है. ये अपराध इसलिए भी जघन्य और घिनौना है क्योंकि अनुयायी मानकर चलता है कि गुरु उसकी रक्षा करेंगे. किसी गुरु का अपने अनुयायी का यौन शोषण ठीक वैसा ही है जैसे कोई पिता अपनी बेटी के साथ या डाक्टर अपने मरीज के साथ करे.

 

मुझे याद हैं आंध्र प्रदेश के संत विमन्ना की बात. उन्होंने कहा था कि क्या तस्वीर में मौजूद जलता हुआ लैम्प मेरे चेहरे पर मौजूद अंधकार को खत्म कर सकता है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके गुरु ईश्वर के कितने करीब है, वह आपको अपने अंदर मौजूद रोशनी नहीं दे सकते. वह आपको उस रोशनी को पाने का रास्ता बता सकते हैं. रास्ता पाना या भटक जाना आप पर निर्भर करता है. भारत के महान ऋषियों ने कहा है कि आपको अपने लिए एक रोशनी होना चाहिए. संस्कृत में इसे स्वयं प्रकाश कहा गया है. हम सभी एक के अंदर एक गुरु मौजूद है और हमें इसी गुरु को बाहर निकालना है.

Source: Jagran Yahoo

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