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कांग्रेस और केजरीवाल के बीच छिड़ी जंग को लेकर ताजा सूचना यह है कि दिग्विजय सिंह ने सोनिया गांधी और उनके दामाद रॉबर्ट वाड्रा का बचाव करते हुए कहा है कि वह अपने दामाद की चार्टर्ड एकाउंटेंट नहीं हैं। नि:संदेह यह सही है। वाड्रा की चार्टर्ड एकाउंटेट तो एसआरसी भट्ट एंड एसोसिएट्स नाम की कंपनी है, लेकिन मुश्किल यह है कि वह मौन धारण किए हुए है। केजरीवाल के बारे में कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा है कि अरविंद केजरीवाल से निपटने में तो उनके ब्लाक स्तर के नेता भी सक्षम हैं। यदि वास्तव में ऐसा है तो फिर तमाम केंद्रीय मंत्री अपनी महत्ता भूल कर ब्लाक स्तर के नेता क्यों बने हुए हैं? क्या कारण है कि वे वाड्रा का बचाव कर रहे हैं? शीला दीक्षित ने केजरीवाल को बरसाती मेढक बताया है और सलमान खुर्शीद उन्हें सड़क छाप बता चुके हैं। इस सबके बीच कोई भी यह बताने वाला नहीं कि रॉबर्ट वाड्रा ने तीन साल में तीन सौ करोड़ कैसे बना लिए? वाड्रा की कंपनियों के चार्टर्ड एकाउंट, कारपोरेट मंत्रालय और वह खुद मौन साधे हुए हैं।
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वाड्रा ने आखिरी बार बनाना रिपब्लिक और मैंगो मैन वाली बेढब टिप्पणी की थी। उनकी कंपनी स्काईलाइट हास्पिटैलिटी ने जिस कारपोरेशन बैंक से 7.94 करोड़ का ओवरड्राफ्ट लेने का उल्लेख अपने दस्तावेजों में किया है उसके प्रबंध निदेशक दो बार यह स्पष्ट कर चुके हैं कि हमने कोई लोन या ओवरड्राफ्ट नहीं दिया। वह इस ओर भी संकेत कर चुके हैं कि वाड्रा की कंपनी ने अपनी बैलेंस सीट मनमाने तरीके से तैयार की है, लेकिन किसी की जबान नहीं खुल रही है और इस गंभीर सवाल का जवाब अभी भी नदारद है कि वाड्रा के पास यह रकम कहां से आई? यह वही रकम है जिससे उन्होंने वह जमीन खरीदी जिसे बाद में 58 करोड़ रुपये में डीएलएफ को बेचा गया। यदि रॉबर्ट वाड्रा आम आदमी अथवा कोई आम दामाद होते तो और कुछ न सही, उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज हो गया होता, आयकर वाले उनके पीछे पड़ गए होते और हो सकता है कि प्रवर्तन निदेशालय या फिर सीबीआइ भी उनकी छानबीन में जुट जाती। अभी न तो ऐसा कुछ हो रहा है और न होने के दूर-दूर तक कोई आसार हैं। जाहिर है कि आम आदमी इस नतीजे पर पहुंचने के लिए विवश है कि वाड्रा के खिलाफ कोई कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं हो रही है, क्योंकि वह सोनिया गांधी के दामाद हैं। कांग्रेसी यह भी नहीं कह पा रहे हैं कि वाड्रा की संपत्ति दहेज में मिली संपदा है।
वाड्रा-डीएलएफ जमीन सौदे को रद किए जाने के बाद हरियाणा सरकार जांच अवश्य करा रही है, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि उसकी दिलचस्पी वाड्रा और उनकी कंपनियों को क्लीनचिट देने में है। यही कारण रहा कि हरियाणा सरकार के आइएएस अधिकारी अशोक खेमका ने जैसे ही वाड्रा की ओर से खरीदी गई जमीनों की छानबीन शुरू की, उनका तबादला कर दिया गया। हरियाणा सरकार ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे वाड्रा हरियाणा नामक कांग्रेस की जागीर के शासक हों। जिस तरह पुराने जमाने में राजा-महाराजा अपनी पुत्रियों-दामादों को दहेज में कुछ इलाकों का स्वामित्व सौंप देते थे कुछ वैसा ही मामला रॉबर्ट वाड्रा का नजर आता है। वाड्रा देश के नियम-कानून और संविधान से इतर नजर आ रहे हैं। हरियाणा सरकार के साथ-साथ केंद्रीय सत्ता उनके बचाव में खड़ी है। केंद्र सरकार के करीब आधे मंत्री उनका बचाव कर रहे हैं। बाकी आधे मौन हैं और उनके मौन का वही मतलब है जो मुखर मंत्रियों का है। इस पर भी गौर करें कि देश में हर किसी की आय से अधिक संपत्ति की जांच हो सकती है-यहां तक कि मायावती की, मुलायम सिंह की भी और जगनमोहन रेड्डी की भी, लेकिन रॉबर्ट वाड्रा की नहीं हो सकती। यदि यह जांच हो जाए और उसमें वाड्रा पाक-साफ पाए जाएं तो इससे उनका और कांग्रेस का ही हित होगा, लेकिन हर कांग्रेसी इस जुगत में लगा है कि कैसे दामाद जी की जांच का सवाल न उठने पाए। इसी जुगत के तहत तरह-तरह के जतन किए जा रहे हैं। पिछले दिनों दिग्विजय सिंह ने केजरीवाल से जो 27 सवाल पूछे उसके पीछे भी यही उद्देश्य था।
केजरीवाल से 27 सवाल तब पूछे गए जब उन्होंने वाड्रा को घेरा। उनसे जो सवाल पूछे गए हैं उनमें से ज्यादातर तो कोई सवाल ही नहीं हैं और यदि हैं भी तो उनका जवाब केंद्र सरकार को देना चाहिए, जैसे कि यह कि भारतीय राजस्व सेवा के तहत काम करने के दौरान केजरीवाल और उनकी पत्नी दिल्ली से बाहर क्यों नहीं तैनात हुए? दिग्विजय सिंह और अन्य कांग्रेसी चाहें तो केजरीवाल से 270 सवाल पूछें और यदि इससे भी काम न चले तो बाबा रामदेव की तरह उनके खिलाफ जांच बैठा दें, लेकिन उन्हें यह तो बताना ही होगा कि वाड्रा तीन साल में तीन सौ करोड़ के स्वामी कैसे बन गए? यदि कांग्रेस के नेतृत्व वाली हरियाणा और साथ ही केंद्र सरकार इस सवाल का जवाब नहीं देती तो फिर देश में किसी के भी खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच होने का कोई औचित्य नहीं? किसी भी लोकतांत्रिक देश में दो तरह के कानून नहीं हो सकते। अभी यह साफ नजर आ रहा है कि सोनिया गांधी के दामाद वाड्रा के लिए अलग कानून है और शेष देशवासियों के लिए अलग। कांग्रेस वाड्रा के मामले को मामूली बताने की कोशिश कर रही है। उसकी यह कोशिश उसे बहुत भारी पड़ सकती है। बोफोर्स तोप सौदे में सिर्फ 67 करोड़ की दलाली का मामला उछला था, लेकिन इस संदेह मात्र ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी थी कि दलाली के इस लेन-देन में राजीव गांधी की भी भूमिका थी। यदि कांग्रेस को लोक लाज की तनिक भी परवाह है तो उसे दामाद प्रेम से मुक्त होना होगा।
लेखक राजीव सचान दैनिक जागरण में एसोसिएट एडीटर हैं
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