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क्यों जल्दी है वार्ता की?

संपादकीय ब्लॉग
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लेखक एवं वरिष्ठ स्तंभकार तरुण विजय ने अपने एक आलेख “वार्ता के खतरनाक संकेत” में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाया है. जबकि एक ओर आतंकी हमले अपनी पूरे उफान पर हैं वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार पाकिस्तान के साथ बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हो चुकी है.

तरुण जी ने यह कह कर बिलकुल सही बिन्दु को रेखांकित किया है कि अब तक पाकिस्तान से वार्ता का परिणाम हमें केवल विश्वासघात के रूप में ही मिला है- चार घोषित युद्ध, हजारों वीर जवानों की शहादत, पंजाब में आतंकवाद का विनाशकारी रूप, इस्लामी बम, गोरी और गजनवी मिसाइलें, कारगिल, 13 नवंबर का संसद पर हमला, 26 नवंबर को मुंबई पर आक्रमण और फिर इसी माह पुणे पर हमला.

इसके आगे वे क्षोभ व्यक्त करते हुए कहते हैं कि इसके साथ यदि कश्मीर में जिहाद, रघुनाथ मंदिर, दिल्ली, अक्षरधाम जैसे सैकड़ों विस्फोट भी जोड़ें तो सवाल उठता है कि क्या इस सरकार के मन में भारतीय नागरिकों की रक्षा तथा सुरक्षाकर्मियों के बलिदान के प्रति सम्मान का भाव है?

उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 16 जुलाई, 2009 को कहा था कि जब तक पाकिस्तान अपनी भूमि आतंकवाद के इस्तेमाल के लिए बंद नहीं करता और इस बात के पुख्ता प्रमाण नहीं देता, साथ ही आतंकवादियों पर नियंत्रण के लिए कार्रवाई नहीं करता तब तक उसके साथ किसी भी प्रकार की वार्ता का कोई वातावरण नहीं बन सकता. पी चिदंबरम तो उससे भी आगे बढ़कर जम्मू में 8 जनवरी, 2010 को बोले कि पाकिस्तान को सिर्फ बताना ही नहीं है बल्कि आतंकवाद विरोधी कार्रवाई के अकाट्य साक्ष्य भी देने हैं. हमारे संतोष के लिए जब तक वह ऐसे प्रमाण नहीं देता कि भारत के खिलाफ उसकी जमीन से हो रही आतंकवादी गतिविधियों पर वह अंकुश लगा रहा है, तब तक उससे वार्ता आरंभ करने का कोई औचित्य नहीं है. इससे पहले विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने 24 अगस्त, 2009 को कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद, परमाणु शस्त्र प्रसार और उग्रवाद का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है. भारत में आतंकवाद फैला रहे तत्वों पर नियंत्रण की बात तो दूर, भारत पर हमला करने वाले जिन आतंकवादियों के बारे में हमने ठोस अकाट्य प्रमाण दिए, उन पर भी पाकिस्तान ने कोई कार्रवाई नहीं की. अत: जब तक वह अपनी नीयत के बारे में हमें संतुष्ट नहीं करता, पाकिस्तान से वार्ता नहीं की जाएगी. लेखक ने सवाल उठाया है कि अब जब यही महानुभाव 25 फरवरी से पाकिस्तान के साथ जब वार्ता शुरू कर रहे हैं तो उसका क्या अर्थ है?
पाकिस्तान की वास्तविक स्थिति को समझकर ही आगे कदम बढ़ाना उचित होगा ना कि किसी वाह्य दबाव के कारण. वैसे भी हम सॉफ्ट स्टेट के रूप में पहले से बदनाम हैं. निश्चित रूप से मामला गंभीर है और जितना समझा जा रहा है उससे कहीं ज्यादा गंभीर. विदेश नीति का जो रूप अब देखने में आ रहा है वैसी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. एक ओर हम बातें करते हैं आतंकवाद के समूल नाश की वहीं दूसरी ओर आतंकवाद के प्रमुख पोषक के साथ बातचीत का माहौल तैयार कर उसे चारा-खाद भी प्रदान कर रहे हैं.

Source: Jagran Yahoo

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