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छद्म युद्ध का नया मोर्चा

संपादकीय ब्लॉग
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यद्यपि भारत की सूचना प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष विज्ञान में दुनिया भर में धाक है, फिर भी हमारा देश इंटरनेट के क्षेत्र में चीन की क्षमताओं से काफी पीछे है। इससे भी बड़ी समस्या यह है कि भारत अपने तेजी से बढ़ते साइबर ढांचे की सुरक्षा के प्रभावी उपाय भी नहीं खोज पाया है। प्रतिस्पर्धी खुफिया जानकारी और भारतीय प्रतिष्ठान को छकाने के लिए साइबर हमलों की शुरुआत हो चुकी है। बार-बार साइबर हमले करके चीन भारत को भयाक्रांत कर रहा है। साथ ही हिमालयी सीमा पर वह सैन्य दबाव भी बढ़ा रहा है। टकराव की स्थिति में साइबर हमलों के माध्यम से चीन भारतीय तंत्र को अपंग बना सकता है। भारत सरकार, रक्षा और व्यावसायिक लक्ष्यों के खिलाफ साइबर घुसपैठ 2007 से लगातार बढ़ रही है। संवेदनशील कंप्यूटर नेटवर्क का बचाव राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकता में शामिल करना चाहिए।

साइबर खतरा दो स्तरों पर है। पहला है राष्ट्रीय स्तर। पहले ही नेशनल इंफार्मेटिक्स सेंटर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार व विदेश मंत्रालय के दफ्तरों पर ऐसा हमला हो चुका है। भारत के प्रमुख मंत्रालयों और सरकारी कार्यालयों के कंप्यूटरों में घुसपैठ कर चीन गोपनीय सूचनाएं हासिल करने की क्षमता साबित कर चुका है। साइबर खतरे का दूसरा निशाना कुछ खास लोग या संस्थान हैं। भारत में इस प्रकार के निशानों में तिब्बत की निर्वासित सरकार के साथ-साथ कुछ भारतीय लेखक और चीन के अन्य आलोचक शामिल हैं। आमतौर पर साइबर घुसपैठ ईमेल अकाउंट को हैक करके की जाती है। इसके अलावा ट्रोजन होर्स नामक वायरस भेजकर कंप्यूटर की कुछ फाइलें उड़ा दी जाती हैं या फिर इन फाइलों का मैटर हमलावर के पास स्थानांतरित कर दिया जाता है। यदि छद्मावरण का इस्तेमाल किया गया हो तो यह पता लगाना आसान नहीं होता कि साइबर हमला किस देश से किया गया है। अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके हमलों को किसी अन्य देश के माध्यम से किया जा सकता है। जिस प्रकार चीन ने अफ्रीका में मेड इन इंडिया लेबल लगाकर दवाइयां बेची हैं उसी प्रकार साइबर घुसपैठ को रूस, ईरान, क्यूबा और अन्य देशों के माध्यम से अंजाम दिया जा सकता है।

साइबर हमलावर जांचकर्ताओं के लिए कुछ संकेत जरूर छोड़ देते हैं, जिनसे पता चल जाता है कि यह घात चीन से की गई है। इसलिए यह अनुमान उचित ही है कि भारत के सरकारी कार्यालयों पर हुए अधिकांश साइबर हमले चीन से किए गए हैं। इसी निष्कर्ष पर गूगल भी पहुंचा था। साइबर हमले इस बात का प्रमाण हैं कि चीन किस प्रकार अन्य देशों पर घात लगा रहा है। साइबर हमलों के अलावा चीन अपनी मुद्रा युआन का जबरन मूल्य गिराकर और सस्ते सामान से दुनिया के तमाम देशों को पाट कर भी नुकसान पहुंचा रहा है। ये हरकतें उसके शांतिपूर्ण उदय के दावे की पोल खोल रही हैं। अगर चीन बेहद सफाई से अमेरिका की कम से कम 34 कंपनियों पर साइबर हमला करके महत्वपूर्ण बौद्धिक संपदा चुराने का प्रयास कर सकता है तो निश्चित तौर पर उसमें भारत के अधिकांश कंप्यूटरों में सेंध लगाने की क्षमता है, जिनमें निगरानी और सुरक्षा के उपाय प्राथमिक स्तर के हैं। आज गूगल हल्ला मचा रहा है कि चीन उस पर साइबर हमला करने का प्रयास कर रहा है, लेकिन एक ऐसे देश को जो सूचना के मुक्त प्रवाह से बेहद डरता है, इंटरनेट पर आनलाइन सेंसरशिप थोपने में इसी गूगल ने योगदान दिया है। गूगल ने चीन के लिए ऐसा सर्च इंजन बनाया है जो ऐसी साइटों को प्रतिबंधित कर देता है जिन्हें चीन अनुपयुक्त मानता है। अब गूगल खुद ही चीन की बढ़ती साइबर ताकत का शिकार हो गया है तो उसने चीन के खिलाफ मुंह खोला है। चीन में हैकरों को साफ्टवेयर प्रोग्रामों में कमियां निकालने का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जाता है।

उदाहरण के लिए हैकरों ने ऐसी तरकीबें निकाल ली हैं जो दस्तावेज को एक्रोबैट रीडर फारमेट में बदल देती है। इस प्रकार मैटर को खोलकर हैकर इन्हें स्कैन करके चीन में स्थित डिजिटल स्टोर में इकट्ठा कर लिया जाता है, जो विशाल निगरानी तंत्र का एक अंग है। इसे कनाडा के शोधकर्ताओं ने घोस्टनेट नाम दिया है। पिछले साल धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती सरकार के दस्तावेजों में इसी प्रकार सेंध लगाई गई थी। जर्मनी, इंग्लैंड और अमेरिका की सरकार भी स्वीकार कर चुकी है कि चीनी हैकर उनकी सरकार और सैन्य नेटवर्क में सेंध लगा चुके हैं। ऐसा नहीं लगता कि हैकरों का चीनी सरकार से कोई संबंध नहीं है। अधिक संभावना यही है कि इन हैकरों के तार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी से जुड़े हैं। पिछले सप्ताह अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इंटरनेट सेंसरशिप को लेकर चीन को चेतावनी दी थी कि दुनिया के काफी बड़े भाग को सूचना पर्दे से ढका जा रहा है। उनके बयान में शीत युद्ध जैसे तेवर थे। बयान में यह भी स्वीकारोक्ति है कि 1990 में चीन के आर्थिक उदय में सहयोग से राजनीतिक खुलेपन की अमेरिकी उम्मीद पूरी नहीं हुई है। बेहद तंग राजनीतिक व्यवस्था को खोलने के लिए बाजारी शक्तियों और इंटरनेट का इस्तेमाल करने की नीति कारगर नहीं रही है। असलियत यह है कि चीन जितनी अधिक आर्थिक ताकत हासिल कर रहा है उतना ही अधिक वह साइबर स्पेस पर सेंसरशिप कड़ी कर रहा है।

भारत पहले ही छद्म युद्ध-आतंकवाद के निशाने पर है। प्रभावी प्रतिक्रिया के अभाव में देश ने खुद को एक कमजोर निशाने के रूप में स्थापित कर लिया है। अब छद्म युद्ध का एक नया मोर्चा खुल गया है। यह सरकार प्रायोजित गैरसरकारी तत्वों द्वारा नहीं, बल्कि सरकारी तत्वों द्वारा लड़ा जा रहा है। ये दो छद्मयुद्ध यह रेखांकित करते हैं कि परंपरागत तरीकों से गैरपरंपरागत खतरों से नहीं निपटा जा सकता है। इसीलिए भारत को बढ़ते साइबर हमलों से चेत जाना चाहिए।

[ब्रह्मंा चेलानी: लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]

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