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जरूरी है प्रदूषण से मुक्ति

संपादकीय ब्लॉग
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पंजाब में कैंसर तेजी से फैल रहा है। प्रदेश के पूरे मालवा क्षेत्र में इसके चलते लोगों को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ रही है। पंजाब में कैंसर की स्थिति अत्यंत चिंताजनक हो चुकी है। इन हालात को लेकर सरकार भी काफी चिंतित है और सरकारी स्तर पर इससे निपटने के प्रयास भी चल रहे हैं। इसके बावजूद अभी भी इस पर काबू नहीं पाया जा सका है और न ही ऐसे कोई आसार दिखाई दे रहे हैं, जिससे इस मामले में आश्वस्त हुआ जा सके कि निकट भविष्य में इसे नियंत्रित कर लिया जाएगा। इसका कारण केवल यह नहीं है कि सरकारी प्रयास आम धारणा के अनुसार आधे-अधूरे ढंग से चल रहे हैं, बल्कि स्वयं लोगों की अपनी लापरवाही भी इसके कई कारणों में से एक है। बीमारियों के फैलने के जो प्रमुख और महत्वपूर्ण कारण हैं, वे न केवल पंजाब, बल्कि पूरे देश में एक ही तरह के हैं और हैरत की बात यह है कि पूरे देश की लापरवाही इन वजहों के प्रति बढ़ती ही जा रही है।


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पंजाब ही नहीं, पूरे देश में प्रदूषण की स्थिति भयावह हो चली है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं नदियां। जिन नदियों की पवित्रता की हम कसमें खाते हैं, उन्हीं नदियों का हमने जो हाल बना दिया है, वह देखे जाने लायक नहीं है। देश की सबसे प्रमुख और पवित्र नदियों में एक यमुना दिल्ली से होकर गुजरती है। पिछले दो दशकों में यमुना के गंदे होते जाने की बात बड़े जोर-शोर से उठाई जाती रही है। इसके लिए अब किसी सर्वेक्षण या शोध की जरूरत नहीं रह गई है कि यमुना एक पवित्र नदी होने के बावजूद गंदे नाले में बदलती जा रही है। इसकी सबसे अधिक दुर्दशा दिल्ली में ही हो रही है। किसी नदी में गंदगी की मात्रा बढ़ने की वजहें क्या होती हैं, यह बात हम सभी जानते हैं। यह जानते हुए भी इसमें बढ़ रहे प्रदूषण को कम करना तो दूर, इस पर नियंत्रण की दिशा में भी कतई कोई गंभीर प्रयास नहीं हो रहा है। सरकार भले ही इसकी सफाई पर अरबों रुपये खर्च कर रही हो, लेकिन यमुना को साफ रखने के लिए आम जनता ने अपनी ओर से क्या किया? पढ़े-लिखे लोगों ने भी अपने घरों में पॉलीथिन और कूड़े पर काबू करने की कोई कोशिश की हो, ऐसा कहीं भी दिखाई नहीं देता है। अभी भी लोग बड़ी मात्रा में अपने घरों का कचरा बिना किसी संकोच के यमुना में फेंक रहे हैं। औद्योगिक उत्प्रवाह का भी यमुना और गंगा जैसी पवित्र नदियों में गंदगी की मात्रा बढ़ाने में बड़ा हाथ है। हालांकि इसे नियंत्रित करने के लिए कुछ सरकारी संस्थान भी बनाए गए हैं।


कहने के लिए ये संस्थान अपना काम भी कर रहे हैं, लेकिन वस्तुत: ये केवल फाइलों का पेट भर रहे हैं। अगर वास्तविकता यह नहीं होती तो आज देश भर की पवित्र नदियों की वैसी दुर्दशा तो नहीं ही होती जैसी हम देख रहे हैं। लेकिन, यह सच है कि दुनिया के किसी भी तंत्र पर सबसे बड़ा दबाव आम जनता का ही होता है, चाहे वह किसी भी प्रकार का तंत्र क्यों न हो। कष्टकर बात यह है कि हमारे देश में आम जनता ही अपनी परंपरागत मान्यताओं और मूल्यों के प्रति बेपरवाह हो गई है। स्वयं उसे ही इस बात की चिंता नहीं रह गई है कि वह जो कुछ कर रही है, उसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे। वह केवल अपना आज बेहतर बनाने की कोशिश में है और इसके लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखाई देती है। खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि उसकी इसी भावना का दोहन करने में कई तबके लग गए हैं। पंजाब में आज कैंसर जैसी बीमारी जो महामारी का रूप लेती जा रही है, उसके मूल में दरअसल यही वजह है। पंजाब के मालवा इलाके में पिछले दिनों किए गए एक सर्वेक्षण से यह बात उभर कर सामने आई है कि वहां हर दिन औसतन 18 लोग केवल कैंसर के चलते काल का ग्रास बन रहे हैं। अब तक वहां 33 हजार लोग इस बीमारी के चलते मर चुके हैं। फिलहाल करीब 85 हजार लोगों में इस भयावह बीमारी के लक्षण पाए जा चुके हैं।

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हालांकि राज्य सरकार इन व्यक्तियों को चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराने का आश्वासन देती है और बहुत हद तक उपलब्ध कराती भी है, लेकिन क्या इतने से ही समस्या का समाधान हो जाएगा? सबसे अधिक चिंता की बात तो यह है कि पंजाब, जिसे चार-पांच दशक पहले तक स्वास्थ्य और साहस का पर्याय समझा जाता था, उसकी यह दशा आखिर हुई कैसे और क्यों? इतिहास गवाह है कि सभी विदेशी आक्रांताओं का हमला हमेशा सबसे पहले पंजाब ने ही झेला। उसने सबसे लोहा लिया और हर हाल में विजेता साबित हुआ। अब वह कौन सी वजह है, जिसके सामने वह हार मानता दिखाई दे रहा है? अगर उस कारण को हम ढूंढ सकें तो उस पर विजय प्राप्त करना मुश्किल भले हो, पर असंभव तो नहीं ही रह जाएगा। यह कहने की जरूरत नहीं है कि समझदार सभ्यताएं मुश्किलों के नतीजों पर ध्यान केंद्रित नहीं करती हैं, उनका सबसे अधिक ध्यान उन वजहों पर होता है जिनके चलते हजारों लोग बेघर होते हैं, अपनी सेहत या जान से हाथ धोते हैं और तमाम जिंदगियां समय से पहले ही खत्म हो जाती हैं। यह गौर करने की बात है कि पंजाब के मालवा क्षेत्र में बहुत लंबे समय से पानी में यूरेनियम होने की बात की जा रही है। इस पर काफी हो-हल्ला मचा। सरकार ने इस पर अनुसंधान भी करवाया। जांच में यह बात पाई भी गई, लेकिन इसके कारणों की तलाश फिर भी नहीं की गई। इसके कारणों में जहां जमीन के नीचे यूरेनियम का  होना हो सकता है, वहीं रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अधाधुंध प्रयोग भी संभव है।


लेकिन व्यवस्था के स्तर से इनमें से एक भी वजह पर कोई खास ध्यान दिया गया हो, ऐसा दिखाई नहीं देता है। वास्तविकता तो यह है कि केवल कानून बनाने और किसी तरह की कड़ाई करने से इन कारणों का निदान हो भी नहीं पाएगा। दोनों में से जो भी कारण हो, उसके निदान के लिए सरकार को दीर्घकालिक योजना बनानी पड़ेगी। यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि देश भर में किसानों को न तो अपनी लागत का पूरा लाभ मिल पा रहा है और न ही उस जोखिम का, जो वे उठा रहे हैं। यह वह मूल वजह है, जिसके नाते आज किसानों को अधिक से अधिक उपज पाने के लिए उर्वरकों और कीटनाशकों का अधाधुंध इस्तेमाल करना पड़ रहा है। इसके कारण वातावरण और स्वयं उनकी जमीन भी प्रदूषित हो रही है। भूमि की उर्वरता पर इसका सीधा असर पड़ रहा है। किसानों को यह सब न करना पड़े, इसके लिए ऐसी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए जिससे उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य मिल सके। कुछ मामलों में सरकार के स्तर पर कड़ाई बरतना भी जरूरी है। यह एक कड़वा सत्य है कि अधिकतर बीमारियां किसी न किसी तरह वातावरण में प्रदूषण फैलने का ही नतीजा हैं। इनसे निपटने का एकमात्र रास्ता यह है कि प्रदूषण से मुक्त होने के उपाय किए जाएं। ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिससे लोग स्वयं प्रदूषण के कारणों के प्रति जागरूक हों और उनसे मुक्त होने के उपाय गंभीरतापूर्वक कर सकें।

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Tag: पंजाब,प्रदूषण, राज्य सरकार, कैंसर,स्वास्थ्य,सरकार , Punjab, pollution, state government, cancer, health, government

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